TIO, नई दिल्ली।

आंध्र प्रदेश में टीडीपी की एकतरफा जीत ने चंद्रबाबू नायडू को केंद्र में भी किंगमेकर बना दिया है। लोकसभा की 25 में से 16 सीटें जीतकर टीडीपी एनडीए में दूसरी बड़ी पार्टी बन गई है। भाजपा के अकेले बहुमत के आंकड़े से दूर रहने के चलते दिल्ली की सत्ता की चाबी फिर से चंद्रबाबू नायडू के हाथ में आ गई है। ऐसे में आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू की जीत को कई मायनों में अहम माना जा रहा है। उधर, 2019 में लैंडस्लाइड जीत दर्ज करने वाली वाईएसआरसीपी को हराकर लोगों ने मुफ्त की सियासत को नकार दिया है। पूर्व के कार्यों और नए आंध्र के रोडमैप को लेकर चुनावी अखाड़े में उतरे चंद्रबाबू के वादों पर भरोसा जताया है। चंद्रबाबू नायडू एवं अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की जुगलबंदी और जातीय समीकरणों की भी यहां एनडीए की जीत में अहम भूमिका रही है। साल 2019 में खाता खोलने में नाकाम रही भाजपा भी इस बार दक्षिण के दिग्गजों के सहारे धान के कटोरे में कमल खिलाने में कामयाब रही।

आंध्र प्रदेश में इस बार चंद्रबाबू की अगुवाई में एनडीए ने वाईएसआरसीपी सरकार के खिलाफ राजधानी, मंहगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी एवं कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाया। सीएम जगन लोगों के खातों में सीधा पैसा डालने के साथ मुफ्त की योजनाओं के दम पर जीत का दंभ भर रहे थे। वह सभाओं में कह रहे थे कि यदि उनकी सरकार में किसी को फायदा नहीं मिला तो उन्हें वोट मत देना। चुनाव नतीजे बताते हैं कि जनता ने मुफ्त की स्कीमों के बजाय चंद्रबाबू नायडू के नए आंध्र प्रदेश के सपने के वायदे पर ज्यादा भरोसा किया। बेरोजगारी के अतिरिक्त पिछड़े वर्गों को लुभाने के लिए कई तरह की रियायतों व मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण से आक्रोशित बड़े तबके ने चुनाव में रेड्डी सरकार के खिलाफ गुबार निकाल दिया। 14 मौजूदा सांसदों और 37 विधायकों को टिकट न देने का भी असर दिखा है। कौशल विकास निगम से जुड़े कथित घोटाले में गिरफ्तारी से चंद्रबाबू नायडू के लिए लोगों में सहानुभूति बनी। उधर, सियासी चक्रव्यूह में घिरे सीएम जगन मोहन रेड्डी को सगी बहन शर्मिला के विरोध का सामना करना पड़ा। भले ही शर्मिला की अगुवाई में कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली, पर जगन को इसका नुकसान जरूर हुआ। उधर, एनटी रामाराव की बेटी एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डी पुरंदेश्वरी की अगुवाई में भाजपा लोकसभा की तीन सीटें जीतने में कामयाब रही है। विधानसभा में उसने आठ सीटों पर जीत दर्ज की।

जिसने विधानसभा जीती, लोकसभा सीटें भी उसी को
आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते रहे हैं। पिछले ट्रेंड को देखें, तो जिस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की, लोकसभा की सीटें भी उसी के खाते में गईं। साल 2014 के चुनाव में टीडीपी ने अविभाजित आंध्र प्रदेश में 16 लोकसभा सीटें जीतीं, जबकि वाईएसआरसीपी को नौ सीटें मिलीं। विधानसभा चुनाव भी चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी के पक्ष में रहा। 2019 में वाईएसआरसीपी ने विधानसभा की 175 सीटों में से 151 पर जीत दर्ज की। लोकसभा की 25 सीटों में से 22 सीटें भी उसे ही मिलीं। इस बार भी यह ट्रेंड बरकरार रहा।

पवन के आने से कापू का मिला गठबंधन को साथ
चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी को प्रमुख कम्मा समुदाय का समर्थन मिलता रहा है। नायडू कम्मा समुदाय से हैं। इस बार अभिनेता व नेता पवन कल्याण के साथ आने से गठबंधन को कापू समुदाय का भी सर्मथन मिला है। जन सेना के प्रमुख पवन ने खुद को इस समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में पेश किया। अभिनेता पवन कल्याण कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सुपरस्टार चिरंजीवी के भाई हैं। दक्षिण के बड़े स्टार पवन की दस साल की सियासी मेहनत इन नतीजों में दिखी है। वाईएसआरसीपी को रेड्डी समुदाय का सर्मथन मिलता रहा है। सत्ता में रहते जगन रेड्डी ने एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के साथ बीसी को भी पाले में करने की कोशिश की है, लेकिन दूसरे तबकों में इसका नकारात्मक संदेश गया। आंध्र की राजनीति में कम्मा, कापू और रेड्डी समुदाय का खासा प्रभाव है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER