• डॉ. सुधीर सक्सेना
कर्नाटक में केन्द्र सरकारी की एजेंसियों का दवाब लगातार बढ़ता जा रहा है। घटनाक्रम कुछ ऐसा है कि कर्नाटक में सत्ता के गलियारे में घड़ी टिक-टिक की आवाज लगातार तेज होती जा रही है। कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना के 15 जनवरी को अपने पूर्व के अंतरिम स्थगन को रद्द करने और लोकायुक्त पुलिस को मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच जारी रखने की अनुमति देने और 27 जनवरी तक न्यायालय में जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के आदेश ने सूबे की सियासत के ठहरे हुए पानी में कंकड़ उछाल दिया है। मूडा-प्रकरण में अदालती फर्मान और प्रवर्तन निदेशालय की भूमिका से सियासत की मुंडेर पर इन अटकलों और आशंकाओं के गझिन सब्ज़े उग आये हैं कि 76 वर्षीय सिद्धरामैया मुख्यमंत्री के तौर पर कितने दिनों के मेहमान हैं? सियासी फिजां में प्रश्न तैर रहा है कि क्या सिद्धरामैया इस्तीफा देंगे या फिर उनका हश्र हेमंत सोरेन अथवा अरविंद केजरीवाल सरीखा होगा अथवा डीके शिवकुमार या कोई अन्य दावेदार उनकी जगह लेगा?
मुख्यमंत्री सिद्धरामैया के लिये अपशुकन लगातार घट रहे हैं। उनकी मुसीबतों का अंत नहीं है। बीजेपी को दक्षिण का सिंद्धार गंवाने का इतना गहरा दु:ख है कि वह येनकेन प्रकारेण उसे हासिल करना चाहती है। फिलवक्त राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रिश्ते बेहद तल्ख हैं। दरअसल, मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथार्टी (मूडा) से प्लॉटों के आवंटन में गड़बड़ी का मुद्दा शुरू ही राजभवन की सक्रियता और दिलचस्पी से हुआ। राज्यपाल गहलोत ने शिकायत पर अतिरिक्त तत्परता दिखाई। फलत: 3.1 एकड़ ज़मीन के बदले सीएम की पत्नी श्रीमती पार्वती को 14 बेशकीमती प्लाटों के आवंटन ने तूल पकड़ लिया। सिद्धरामैया का दुर्भाग्य कि उन्हें कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्यपाल की मुकदमे की स्वीकृति बहाल रखी। घड़ी के कांटे इस कदर तेजी से घूमे कि एक अक्टूबर को सिद्धरामैया की पत्नी पार्वती ने मूडा को उन्हें आवंटित सभी प्लॉटों का आवंटन रद्द करने का पत्र लिख डाला इस पर मूडा के आयुक्त एएन रघुनंदन ने उप पंजीयक को बिक्रीनामा रद्द करने को कहा। उन्होंने कहा कि स्वेच्छा से भूखंड लौटाने की स्थिति में प्राधिकरण द्वारा आवंटित स्थलों को अविलंब वापस लेने का प्रावधान है। रघुनंदन ने यह दायित्व मूडा के सचिव प्रसन्न कुमार को सौंपा, जिन्होंने तत्परता बरती और कहा कि इससे मूडा को वित्तीय लाभ होगा। इस मामले में जब पत्रकारों ने प्रश्न किये तो सिद्धरामैया ने कहा कि वह इस मुद्दे पर लंबी लड़ाई लड़ना चाहते थे, किन्तु गहरे तनाव के चलते उनकी पत्नी ने प्लॉट लौटाने का फैसला किया। उन्होंने राजनीतिक लड़ाई का सामना अदालती लड़ाई से करने का निश्चय अदालती फैसले के बाद भी व्यक्त किया था। गौरतलब है कि लोकायुक्त पुलिस ने इस मामले में अपने इस्तेगासे में सिद्धरामैया के अलावा उनकी पत्नी पार्वती, उनके साले मल्लिकार्जुन स्वामी और भूखंड-विक्रेता देवराजू को आरोपी बनाया है। इसके बाद सिद्ध के खिलाफ एक और शिकायत दर्ज हुई।
मूडा प्रकरण को मुद्दा बनाकर बीजेपी जहां लगातार सिद्धरामैया से इस्तीफे की मांग कर रही है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और जद (स) नेता कुमारस्वामी भी मुखर हो गये हैं। उन्होंने भूखंड वापसी को अदालत की अवमानना बताते हुए मूडा के आयुक्त के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। इस बीच विपक्ष ने सीएम के एमएलसी बेटे यतिन्द्र को भी आरोपों की जद में ले लिया है, जो मूडा के सदस्य रह चुके हैं। इस बीच एक अक्टूबर को तीन मंत्रियों-सतीश जर्किहोली, एचसी महादेवप्पा और जी. परमेश्वर की देर रात की लंबी बैठक ने नये कयासों को जनम दिया है। जर्किहोली तो दिल्ली जाकर खरगे से भी मिले।
यह बात सिद्धरामैया भी जानते हैं कि मुख्यमंत्री पद के अनार के लिये पार्टी में बीमारों की कमी नहीं है और चुनावी हार से हाथ मलने को मजबूर बीजेपी किसी भी हद तक जा सकती है। इस बीच मैसूर में चामुंडी हिल्स में दशहरा पर्व के शुभारंभ अवसर पर चामुंडेश्वरी के जद (एस) एमएलए जीटी देवेगौड़ा ने मंच पर सिद्धरामैया की मौजूदगी में कहा था कि एफआईआर दाखिल होने पर त्यागपत्र का कोई औचित्य नहीं है। क्या वे सभी इस्तीफा देंगे, जिनके खिलाफ इस्तेगासा है। ऐसे में तो नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक भी चपेट में आ जायेंगे। क्या केन्द्रीय मंत्री कुमारस्वामी मांग उठने पर इस्तीफा देंगे? जांच का अर्थ इस्तीफा या जेल नहीं होता। 136 विधायकों के साथ सत्ता में आये सिद्धरमैया से न तो कोई और न ही गवर्नर ने इस्तीफे को कहा है। प्रत्युत्तर में सिद्धरामैया ने कहा कि वह सत्य के साथ खड़े हैं। कांग्रेस को पांच साल के लिये जनादेश मिला है और वह अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। लगे हाथों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डीके सुरेश ने भी कहा कि देवी चामुंडेश्वरी के आशीर्वाद से सिद्धरामैया बेदाग निकलेंगे और पांच पूरे करेंगे। दिलचस्प बात है कि एजेंसियों की कारगुजारियों से सिद्धरामैया कतई भयभीत नहीं है और उन्होंने प्रधानमंत्री को खुला खत लिखकर उन्हें आड़े हाथों लिया है।