चौ. मदन मोहन समर

भोपाल। राष्ट्रवाद पर कुछ लोग गुरुवार रविंद्रनाथ टैगोर के किसी प्रसंग का उल्लेख कर राष्ट्रवाद के विरुद्ध उद्धृत कर रहे हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि राष्ट्रवाद के विचार को फ्रांस और यूरोप का मूल विचार बता रहे हैं। जबकि राष्ट्र का उल्लेख ऋग्वेद के दसों मंडलों के अनेक सूक्तों में आया है। मैं केवल राष्ट्रवाद ही नहीं प्रखर राष्ट्रवाद का समर्थक हूं। जब तक हमारा राष्ट्रवाद सशक्त था हम शक्तिशाली थे। जब जब हमारा राष्ट्रवाद गढ़े गए असत्य विचारों का शिकार हुआ हम पदाक्रांत हुए। आज भी राष्ट्रवाद के विचार को आघात पहुंचाने वाले भारत को एक राष्ट्र मानने को तैयार नहीं हैं। राष्ट्रवाद पर मेरी एक कविता है जो मेरे विचार प्रकट करती है। आपके लिए यहां पुन: पोस्ट कर रहा हूं

राष्ट्रवाद
राष्ट्रवाद की परिभाषा को जिसने खुलकर बांच लिया।
राष्ट्रवाद की खींच कसौटी जिसने खुद को जांच लिया।
राष्ट्रवाद के लिए तिरंगे को थामे जो खड़े रहे।
राष्ट्रवाद के शिखर बचाने जो नींवों में पड़े रहे।
राष्ट्रवाद की हरियाली पर अपना खून निचोड़ दिया।
राष्ट्रवाद के नाम जिन्होंने गुमनामी को ओढ़ लिया।

राष्टवाद के सागर में जो मोती नहीं तलाशता।
राष्ट्रवाद के लिए सुलभ की नहीं मानता दासता।
राष्ट्रवाद के लिए व्योम भर जो साहस उल्लास लिए।
राष्ट्रवाद के लिए जिन्दगी का जो पूरा विश्वास लिए।
राष्ट्रवाद के लिए धरोहर पर जा कर जो टिका नहीं।
राष्ट्रवाद के लिए विरासत पाने को जो बिका नहीं।

नहीं मिला जो अभिनन्दन के नारों और कतारों में।
नहीं मिला जो मालायों के प्रायोजित अवतारों में।
नहीं चखा है जिसने वैभव के झरनों का नीर कभी।
नहीं सुनाई जिसने अपने शुष्क गले की पीर कभी।
जड़ की जकडन का तापस जो तूफानों का ज्ञाता है।
राष्ट्रवाद का नायक है वो भारत भाग्य विधाता है।

राष्ट्रवाद के अर्थ किताबों की जिल्दों में छपे कहाँ।
राष्ट्रवाद के अर्थ श्वासों की रफ्तारों में नपे कहाँ।
राष्ट्रवाद को सूरज के उसपार तलाशा नहीं मिला।
राष्ट्रवाद की चाँद सितारों से की आशा तो नहीं मिला।
राष्ट्रवाद के लिए हवाओं की सारी तासीर पढ़ी।
राष्ट्रवाद के लिए बदलते हर मौसम की पीर पढ़ी।

राष्ट्रवाद के हर अक्षर पर जीने का उद्दघोष लिखा।
रोष कहाँ है राष्ट्रवाद में संघर्षों का जोश लिखा।
राष्ट्रवाद पर निष्ठा है तो आसमान का नाप सरल।
राष्ट्रवाद पर निष्ठा है तो मिष्ठानों सा लगे गरल।
साँसों की हर आवाजाही सिर्फ तिरंगा होती है।
राष्ट्रवाद की बूँद समूची पावन गंगा होती है।

राष्ट्रवाद आभूषण कब है कुनबे और समूहों का।
राष्ट्रवाद अहसास भरोसा कुछ पावन सी रूहों का।
राष्ट्रवाद के लिए जरूरत पड़ती नहीं नगाड़ों की।
राष्ट्रवाद के लिए जरुरत पड़ती नहीं जुगाड़ों की।
राष्ट्रवाद को नहीं जरूरत आसन की सिंहासन की।
राष्ट्रवाद के लिए परीक्षा पास करो अनुशासन की।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER