रंजन श्रीवास्तव

पहलगाम में 26 लोगों की नृशंस हत्या को घटित हुए एक सप्ताह से ज्यादा हो गया है। पूरे देश में रोष का वातावरण बना हुआ है। पाकिस्तान को चार टुकड़ों में विभाजित किये बिना उसके द्वारा पोषित आतंकवाद का खात्मा मुश्किल है ऐसा मानने वाले भी बहुत हैं। प्रधानमंत्री से जगह जगह मांग हो रही है कि पाकिस्तान को ऐसा करारा जवाब दिया जाए कि वह सदियों तक याद रखे और भारत की तरफ आँख उठाकर देखने की फिर जुर्रत ना करे। देश में इस बात पर भी गहरी चिंता, क्षोभ और रोष है कि कैसे कुछ मुट्ठी भर आतंकवादी बिना किसी रोकटोक के आराम से पहलगाम की बैसरन घाटी में प्रवेश करके पर्यटकों को महिलाओं और बच्चों से अलग करते हैं, उनसे उनका धर्म पूछते हैं, उनको कलमा पढ़ने को बोलते हैं और यह सुनिश्चित करने के बाद कि पर्यटक हिन्दू हैं उनको गोली मार देते हैं। हत्यारों ने हत्या को ऐसे अंजाम दिया जैसे उन्हें अच्छी तरह से पता हो कि उनके गोलियों की गूँज ना तो स्थानीय पुलिस तक पहुंचेगी और ना ही आर्मी और अन्य सुरक्षा बलों तक। और यही हुआ भी।

आतंकवादियों के द्वारा घटित इस नृशंस हत्याकांड ने भारत में सुरक्षा में कमियों की ऐसी पोल खोल कर रख दी जो पूरे देश को दशकों तक परेशान करता रहेगा। जम्मू और कश्मीर में विधान सभा चुनाव के बाद भी वहां की सुरक्षा व्यवस्था केंद्र सरकार के हाथों में है। कारण : जम्मू और कश्मीर को इस वक़्त पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है। वैसे भी कश्मीर में जो हालात हैं उसके मद्देनज़र जनमानस में यह धारणा बनी हुयी थी कि आर्मी वहां हर वक़्त और हर जगह चौकन्नी रहती है। पर पहलगाम में जब यह घटना हुयी तो कहा जाता है कि वहां 2000 से ज्यादा पर्यटक थे जिनके मन में भी यही भाव रहा होगा कि कश्मीर में आर्मी और अन्य सुरक्षा बलों की अत्यधिक उपस्थिति में उनका जीवन महफूज है और आतंकवादियों द्वारा किसी भी तरह की कुचेष्टा उनके लिए मंहगी साबित होगी। पर जो हुआ वह अप्रत्याशित था। वहां तो होमगार्ड का एक जवान तक नहीं था।

सुरक्षा के लिए जिम्मेदार लोगों के बचाव में भी सोशल मीडिया पर पोस्ट डाले जा रहे हैं जैसे बैसरन घाटी को पर्यटकों के लिए 1 -2 महीने बाद खोला जाना था पर उसे पहले ही खोल दिया गया। इस तरह के बचकाने बचाव के प्रयास सुरक्षा सिस्टम में गंभीर चूक की और भी पोल खोल रहे हैं। कारण यह है कि अगर हजारों पर्यटक आर्मी, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल, राष्ट्रीय राइफल्स और स्थानीय पुलिस के बिना जानकारी के पहलगाम पहुँच रहे थे तो क्या इन सुरक्षा एजेंसियों के आँख और कान बंद थे?

क्या स्थानीय पुलिस सिर्फ वीआईपी लोगों की सुरक्षा और ट्रैफिक मैनेजमेंट में लगी हुयी थी और उसे आम जनता के बारे में ना तो कोई जानकारी थी और ना ही कोई चिंता? क्या आर्मी भी इस बात से बेखबर थी कि पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकवादी जंगलों के रास्ते कहीं से भी आ सकते हैं और नृशंस हत्या करके जंगलों के रास्ते ही आराम से भाग सकते हैं ? हर सुरक्षा एजेंसी की अपनी अपनी इंटेलिजेंस विंग है। तो क्या इंटेलिजेंस विंग के अधिकारी और सुरक्षा के लिए अन्य जिम्मेदार लोग सोशल मीडिया पर सैकड़ों की संख्या ये उन फोटो और वीडियो से भी बेखबर थे जो रोजाना पहलगाम जा रहे पर्यटक पोस्ट कर रहे थे? क्या इंटेलिजेंस का काम यह नहीं होता है कि सोशल मीडिया पर नज़र रखते हुए जम्मू और कश्मीर में कहाँ और क्या हलचल हो रही है उसपर नज़र रखे?

जम्मू और कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर पिछले पांच वर्षों से मनोज सिन्हा हैं। यह वही मनोज सिन्हा हैं जिनको 2017 में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा थी। वे काशी विश्वनाथ जाकर वहां मंदिर में दर्शन भी कर चुके थे पर ऐन मौके पर उनको ना बनाकर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया। लेफ्टिनेंट गवर्नर होने के नाते प्रदेश में कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी उन्हीं के कन्धों पर है। क्या उनसे नहीं पूछा जाना चाहिए कि पहलगाम में इतनी बड़ी सुरक्षा चूक से उनका कार्यालय और अधिकारी बेखबर कैसे रहे? देश को यह जानने का हक़ है कि जम्मू कश्मीर से लेकर दिल्ली तक वो कौन लोग हैं जो इस गंभीर सुरक्षा चूक के लिए जिम्मेदार हैं और उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है।

वस्तुतः यह गंभीर सुरक्षा चूक एक गंभीर आपराधिक उदासीनता या लापरवाही को दर्शाता है जिसने आतंकवादियों के आका पाकिस्तान, आईयसआई और पाकिस्तानी सेना के चीफ असीम मुनीर के नापाक मंसूबों को कामयाब होने दिया। यह संयोग नहीं हो सकता कि असीम मुनीर द्वारा कश्मीर को पाकिस्तान के गले की नस बताने और हिन्दुओं और मुस्लिमों में बड़ा अंतर होने की बात करने के तुरंत बाद पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा 25 लोगों की नृशंस हत्या धर्म के आधार पर की गयी जबकि खच्चर के माध्यम से अपना और परिवार का जीविकोपार्जन करने वाले आदिल हुसैन शाह ने पर्यटकों को बचाने में अपनी जान गवां दी। केंद्र सरकार ने सुरक्षा में चूक की बात तो मानी है पर अभी तक यह नहीं बताया है कि इस सुरक्षा चूक के लिए जिम्मेदार कौन है और उसके खिलाफ क्या कार्रवाई हो रही है। अगर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की सख्त जरूरत है तो साथ में इस गंभीर सुरक्षा चूक के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई कि जरूरत है जिससे आने वाले समय के लिए एक नज़ीर बने और जिनकी हत्या हुई है उनके साथ और उनके परिवार के साथ सही न्याय हो।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER