ग़ज़ल का नाम लेते ही ज़ेहन में नाम आता है जगजीत सिंह का। जगजीत सिंह को इस दुनिया से गये तीन महीने बाद ग्यारह साल हो जायेंगे मगर लगता ही नहीं कि वो इस संसार में नहीं हैं क्योंकि हर दूसरे तीसरे दिन उनकी आवाज में गायी ग़ज़ल सुनने या गुनगुनाने को मिल जाती है। ऐसे में जब पत्रकार राजेश बादल अपनी किताब का नाम ‘कहाँ तुम चले गये : दास्तान-ए-जगजीत’ लिखते हैं तो मन में ऐतराज सा जागता है और दिल कहता है जगजीत कहीं नहीं गये वो यहीं हैं।
जगजीत सिंह की ज़िंदगी से जुड़े किस्सों की इस किताब की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। क्योंकि जगजीत सिंह ने ग़ज़ल को प्राइवेट पार्टियाँ और कुछ खास लोगों की बैठक से निकाल कर बड़े मंच और फिल्मी पर्दों तक पहुँचाया, फिर आम जनता के इस प्रिय गायक की ज़िंदगी पर लिखा-पढ़ा जाने लायक इतना कम क्यों है। यह किताब इस कमी को कुछ हद तक पूरा करती है।
राजस्थान के श्रीगंगानगर के सिख अमर सिंह और बच्चन कौर के सात बच्चों के परिवार में आठ फरवरी 1941 को जगमोहन का जन्म होता है। जिसका नाम परिवार के गुरुजी के कहने पर जगजीत सिंह हो जाता है। और यही जगजीत श्रीगंगानगर से स्कूली पढ़ाई कर कालेज में पढ़ने जालंधर जाता है और बाद में मुंबई पहुँचकर फिल्मों में गायन में किस्मत आजमाते-आजमाते फिल्म और गायकी की दुनिया में बेशुमार नाम कमाता है।
जगजीत सिंह को उनके पिता ने बचपन से ही गुरुवाणी और शबद गाने के लिये शास्त्रीय संगीत की शिक्षा और संस्कार डलवाए थे। यही वजह थी कि जब जगजीत की गायकी की रेंज बहुत विस्तृत और कई दफा चौंकाने वाली होती है। लोग कहते हैं कि इस जगजीत को तो हमने पहले कभी सुना ही नहीं।
जगजीत के मुंबई के संघर्ष के किस्से, उस दौर के साथी, उनसे किये वायदे सब कुछ को इस किताब में अच्छे से पिरोया गया है। लेखक ने बताया है कि उस दौर के सभी बड़े कलाकार जगजीत को अपने घर की प्राइवेट पार्टियों में गवाने के लिये तो बुलाते थे मगर काम नहीं देते थे। जगजीत ने मुंबई में अपने शुरुआती दिन इन्हीं पार्टियों में गाकर, नाच कर गुजारे। वो अपने दोस्तों से कहते थे यार ऐसी पार्टियों में इसलिये जाता हूँ कि खाना-पीना मिल जाता है ओर थोड़ी बड़े लोगों से पहचान बढ़ जाती है मगर काम मिलना कठिन होता है। लेकिन उनकी प्रतिभा ज्यादा दिन छिपी नहीं रह सकी। पहले कुछ फिल्मी गाने, एक-दो फिल्म में थोड़ा-बहुत काम और बाद में वो जब गजल की दुनिया में उतरे तो ‘जग जीत कर’ ही लौटे। जगजीत को गुलजार गजलजीत सिंह ही कहा करते थे। इस किताब में जगजीत सिंह के पारिवारिक जीवन के सुख-दुख का भी बेहद संजीदगी से चित्रण किया गया है। चित्रा से मुलाकात, चित्रा की पुरानी ज़िंदगी, इस जोड़ी के जवान बेटे विवेक की मौत के बाद परिवार में आया गम और उस गम से उबरना जगजीत सिंह की ज़िंदगी के इन उतार-चढ़ाव को भी लेखक ने विस्तार से लिखा है जो कई जगह दिल को छू जाता है।
जगजीत सिंह की पत्नी चित्रा और बेटा
जगजीत सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही कि उन्होंने ग़ज़ल गायकी में ढेर सारे प्रयोग कर उसे इतना आसान और कर्णप्रिय कर दिया कि अमीरों की ग़ज़ल आम जनता की हो गयी। जगजीत के सारे अलबमों की खासियत उनकी आसान और सुरीली गजलें रहीं जो आज भी गुनगुनायी जा रही हैं। इस किताब में जगजीत की गायकी के अलावा उनकी ज़िंदादिली और उदारता के भी किस्से हैं। जगजीत कैसे मुंबई की सड़कों पर मदद करने निकलते थे और बेटी की शादी के नाम पर कार्यक्रम का निमंत्रण देने वालों को मिठाई के डिब्बे में रुपये देकर विदा कर देते थे। जगजीत सिंह का हार्स रेसिंग का प्रेम उनके नये गायकों और शायरों से रिश्ते की भी इस किताब में विस्तार से चर्चा की गयी है।
राजेश बादल ने जगजीत की ज़िंदगी से जुड़े अनेक लोगों से मिलकर जो किस्से-कहानियाँ जुटाये हैं वो इस किताब की जान हैं। जगजीत सिंह के पुराने रिकार्ड्स और अलबम के बारे में भी लेखक ने अच्छी जानकारी एकत्रित की है।
दरअसल लेखक राजेश बादल ने अपने राज्यसभा टीवी के दिनों में जगजीत सिंह पर जब फिल्म बनाई थी उस दौरान हुई उनकी रिसर्च इस किताब के काम आयी और इस किताब की भाषा भी बहुत कुछ चित्र वाली है। इस किताब में जगजीत सिंह की ज़िंदगी से जुड़े कुछ अच्छे और दुर्लभ फोटोग्राफ भी हैं। इस तरह से राजेश बादल की ये किताब ‘कहाँ तुम चले गये’ जगजीत सिंह के चाहने वालों के लिये बेशकीमती तोहफे से कम नहीं है।
-ब्रजेश राजपूत
(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं)