TIO, नई दिल्ली।

तमाम प्रयासों के बावजूद 2500 किमी लंबे प्रवाह के दौरान गंगा में गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी गंगा सागर तक इसमें प्रतिदिन विभिन्न कचरों की एक विशाल मात्रा छोड़ी जाती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार उत्तर प्रदेश में गंगा नदी बेसिन के अधिकांश क्षेत्रों में जल गुणवत्ता नहाने योग्य पानी के लिए तय गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं है ।

सीपीसीबी ने 7 अगस्त को एनजीटी के समक्ष दायर रिपोर्ट में कहा है कि गंगा, ब्रह्मपुत्र के साथ उनकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता की जांच की गई थी। यह जानने का प्रयास किया गया था कि यह पानी नहाने के लिए तय निर्धारित मानकों के मुताबिक सुरक्षित है या नहीं। यूपी में 114 में से 97 स्थान मानकों पर खरे नहीं उतरे। इसी तरह बिहार में भी सभी 96 स्थान जल गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते हैं।

गंगा नदी बेसिन में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं, जबकि ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मेघालय, सिक्किम और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। पश्चिम बंगाल में ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन के अंतर्गत आने वाले सभी नौ क्षेत्र नहाने के लिए तय प्राथमिक जल गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं हैं। गौरतलब है कि गंगा की सफाई के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत 12 अगस्त 2011 को एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था। यह राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) के तहत आता है।

बहुत धीमी गति से की जा रही गंगा की सफाई
नमामि गंगे परियोजना के परिणामस्वरूप गंगा के जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। सरकार ने गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के पुनरुद्धार के लिए साल 2014-15 में नमामि गंगे कार्यक्रम (एनजीपी) शुरू किया था। इसका बजटीय परिव्यय पांच वर्ष यानी मार्च 2021 तक 20,000 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी किए गए मोशन पिक्चर बायोलॉजिकल आॅक्सीजन (डीओ) और फ्रॉस्टल कोली फॉर्म के आधार पर पानी की गुणवत्ता में संशोधित सुधार दिखाए गए हैं।गंगा की सफाई बहुत धीमी गति से की जा रही है।

इस तरह पूरी नदी को साफ करने और पानी को मानव उपभोग के लायक बनाने में दशकों लग जाएंगे। जल शक्ति मंत्रालय ने गंगा सफाई के लिए 28790 करोड़ रुपये की लागत पर 310 कंपनियों को मंजूरी दी है। पानी की गुणवत्ता में सबसे अधिक सुधार उत्तराखंड के शिखरों में देखा गया है। बिहार और बंगाल में 30 फीसदी सुधार हुआ है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER