शशी कुमार केसवानी, भोपाल

कांग्रेस में एक लंबे समय से मंथन चल रहा था कि पार्टी में बदलाव किया जाए। पर विधानसभा चुनाव के जो सर्वे आ रहे थे, उसके कारण कांग्रेस अपने-आप में बहुत खुश थी, लेकिन नतीजे बिल्कुल ही विपरीत आए। मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का दावा कर रही कांग्रेस को बड़ी हार का सामना पड़ा। इतना ही नहीं, पार्टी सिर्फ 66 सीटों पर सिमट गई। मप्र विधानसभा का चुनाव दो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ा गया था। इस हार से कांग्रेस के माथे पर बल पड़ गए और यह सोचने पर मजबूर हो गए कि पार्टी कहां पर गलती कर गई। जब कांग्रेस ने देखा कि भाजपा नए चेहरों पर दांव खेल सकती है, तो कांग्रेस यह काम बहुत पहले कर चुकी है। अब वहीं दांव खेलकर पुराने राजनीतिज्ञों से बिना सलाह अचानक भारी भरकम परिवर्तन करके यह साबित कर दिया हाईकमान आज भी पूरी तरह से ताकतवर है और बदलाव करके पार्टी में जान फूंक सकता है। यहीं मप्र में किया है। बड़े फेरबदल के बाद से दिग्वजय सिंह और कमलनाथ चिंता में आ गए हैं कि अब हमारी राजनीतिक भूमिका क्या रहेगी। अभी तक कांग्रेस को डिक्टेड करने वाले नेता माने जाते थे।अचानक ही ऐसा बम फटा की दोनों नेता आश्चर्य चकित रह गए। साथ ही साथ पूरी कांग्रेस भी सोच में पड़ गई। हालांकि यह बदलाव चुनाव से पहले होता तो नतीजे कुछ और हो सकते थे। चाहे अनचाहे लोकसभा चुनाव में यह देखने को मिलेगा।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस संगठन में बदलाव कर पार्टी ने जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया है। वहीं, उमंग सिंघार को विधायक दल का नेता और हेमंत कटारे को विधायक दल का उप नेता बनाया गया है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस भी जातीय समीकरण साध रही है। जीतू पटवारी ओबीसी, उमंग सिंघार अनुसूचित जनजाति और हेमंत कटारे ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। भाजपा की तरह कांग्रेस भी अब जातीय समीकरण साध रही है। कांग्रेस अब अपनी दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ा कर पीढ़ी परिवर्तन कर रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि 10 से 15 साल में पार्टी ने क्षत्रपों की दूसरी पीढ़ी तैयार ही नहीं की। इसका विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी अब कमलनाथ को कोई पद देने के मूड में नहीं है। इसके संकेत इससे भी मिल रहे हैं कि बगैर उनकी राय लिए सीधे नियुक्तियां कर दी गईं। ऐसे में आगे उनको कोई जिम्मेदारी मिलने की संभावना नहीं दिख रही है। वहीं, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह भी राज्यसभा में तो बने रहेंगे, पर उनको भी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी। हालांकि, वे नए युवाओं को मार्गदर्शन देते रहेंगे।

पिछली जीत से नहीं लिया सबक
2018 में कांग्रेस में पूर्व सीएम कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के साथ युवा के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। राजस्थान में अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट थे। इस वरिष्ठ और युवा नेता के समन्वय से कांग्रेस को बड़ी जीत मिली थी। इस बार मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जय और वीरू की जोड़ी मुख्य रोल में थी। इन दोनों के ही बीच द्वंद्व जैसे कई बार स्थितियां देखी गई। युवा को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, जीतू पटवारी जैसे नेताओं को साइड लाइन करके रखा गया। इस बार का चुनाव व्यक्ति विशेष केंद्रित हो गया था, जिसका कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER