शशी कुमार केसवानी
राजधानी भोपाल के लिए कलंक बनी यूनियन कार्बाइड जिसने हजारों जानें ली। और भूजल को भी बुरी तरह से प्रभावित किया। लाखों लोगों को अनेकों बीमारियों के घेरे में लाकर छोड़ दिया। 40 साल की लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार जहरीला कचरा हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। जिससे क्षेत्र के लोगों को राहत जरूर महसूस हुई है, पर प्लांट में अब भी काफी जहरीले पदार्थ उपलब्ध हैं। जब तक पूरा प्लांट सुरक्षित तरीके से हटाया नहीं जाता, तब तक भोपाल के लिए एक तनाव की स्थिति बनी ही रहेगी। जिस प्लांट को डिसमेंटिल किया जाएगा। उस समय भी भारी भरकम सुरक्षा की जरूरत होगी। कुल मिलाकर यह अच्छी शुरूआत है। भोपाल जरूर एक राहत की सांस महसूस कर रहा है। पर वहीं पीथमपुर के लोग भी तनावपूर्ण स्थिति में हैं, जबकि कचरे को जलाने से रहवासियों की सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए। साथ ही पर्यावरण विशेषज्ञों की राय लेकर इस जहरीले कचरे को जलाना चाहिए। पूरी कार्रवाई कोर्ट के फटकार के बाद की जा रही है।
बता दें कि भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा आखिरकार 40 साल बाद हट गया। भोपाल से बुधवार रात 9 बजे कचरे से भरे 12 कंटेनर हाई सिक्योरिटी के बीच पीथमपुर के लिए रवाना किए गए। कंटेनर आष्टा टोल पर पहुंचे तो 3 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। 250 किमी का सफर 8 घंटे में तय कर सुबह 5 बजे सभी कंटेनर पीथमपुर के आशापुरा गांव स्थित रामकी एनवायरो फैक्ट्री पहुंचे। यहां इस कचरे को जलाया जाएगा। यहां भी रातभर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रही।
इस बीच ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। कंटेनर निकालने के लिए आगे-पीछे 2 किमी तक ट्रैफिक रोका गया। कोहरे के कारण भी सफर थोड़ा मुश्किल रहा। कंटेनर्स के आगे पुलिस की 5 गाड़ियां थीं। 100 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। आष्टा के अलावा भी कुछ जगह जाम के हालात बने। बता दें, 10 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद भोपाल से ये जहरीला कचरा हटाया जा रहा है। इससे यूनियन कार्बाइड परिसर के 3 किलोमीटर दायरे की 42 बस्तियों का भूजल प्रदूषित हो चुका है।
हर घंटे जलाया गया था 90 किलो कचरा
बता दें कि पीथमपुर स्थित इंसीरेनेटर में 13 अगस्त 2015 को भी यूनियन कार्बाइड से 10 मीट्रिक टन जहरीला कचरा निष्पादन के लिए भेजा गया था। तब ट्रायल रन के तौर पर 3 दिन इसे जलाया गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रायल रन के दौरान इंसीरेनेटर में हर घंटे 90 किलो कचरा जलाया गया था। इसी ट्रायल रन रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने अब राज्य सरकार को यूनियन कार्बाइड कारखाने में रखे 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निपटान पीथमपुर में करने के निर्देश दिए हैं।
कचरा पीथमपुर ले जाने की प्रोसेस 4 दिन चली
कचरे की शिफ्टिंग की प्रोसेस रविवार दोपहर से शुरू हुई थी। 4 दिन बैग्स में 337 मीट्रिक टन कचरा पैक किया गया। मंगलवार रात से इसे कंटेनर्स में लोड करना शुरू किया। बुधवार दोपहर तक प्रोसेस पूरी कर ली गई और रात में इसे पीथमपुर रवाना किया गया। दरअसल, हाईकोर्ट ने 6 जनवरी तक इस जहरीले कचरे को हटाने के निर्देश दिए थे। 3 जनवरी यानी शुक्रवार को सरकार को हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश करना है।
40-50 किमी/घंटे की स्पीड से चले कंटेनर
कचरा ले जाने वाले ये खास कंटेनर्स की स्पीड लगभग 40 से 50 किमी प्रति घंटा की स्पीड थी। रास्ते में कुछ देर के लिए रोका भी जा रहा था। कंटेनर्स के साथ पुलिस सुरक्षा बल, एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और क्विक रिस्पॉन्स टीम मौजूद रही। हर कंटेनर में दो ड्राइवर थे।
कचरे के लिए 40 साल लंबी कानूनी लड़ाई
अगस्त 2004: भोपाल निवासी आलोक प्रताप सिंह ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़े जहरीले कचरे को हटाने की गुहार लगाई। साथ ही पर्यावरण को हुए नुकसान के निवारण की मांग भी की।
मार्च 2005: हाईकोर्ट ने यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निष्पादन को लेकर एक टास्क फोर्स समिति बनाई। इस समिति को कचरे के सुरक्षित निपटान करने को लेकर अपनी सिफारिशें देनी थी।
अप्रैल 2005: केंद्रीय रसायन और पेट्रोकेमिकल्स मंत्रालय ने एक आवेदन दायर कर हाईकोर्ट से कहा कि जहरीला कचरा हटाने में आने वाला पूरा खर्च, इसके लिए उत्तरदायी कंपनी डाउ केमिकल्स, यूसीआईएल से ही वसूला जाए।
जून 2005: हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार गैस राहत विभाग ने कचरे को पैक करने और भंडारण करने के लिए रामकी एनवायरो फार्मा लिमिटेड को नियुक्त किया। इस बीच परिसर में 346 ?टन जहरीले कचरे की पहचान की गई।
अक्टूबर 2006: हाईकोर्ट ने 346 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को अंकलेश्वर (गुजरात) भेजने का आदेश दिया। नवंबर 2006 में हाई कोर्ट ने पीथमपुर में टीएसडीएफ सुविधा के लिए 39 मीट्रिक टन चूना कीचड़ के परिवहन का आदेश दिया।
अक्टूबर 2007: गुजरात सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखकर यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा अंकलेश्वर स्थित भरूच एनवायर्नमेंटल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में जलाने में असमर्थता जाहिर की।
अक्टूबर 2009: टास्क फोर्स की 18वीं बैठक में पीथमपुर में 346 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को भेजने का फैसला लिया गया। यह काम अगले ही महीने यानी नवंबर में शुरू हो गया क्योंकि अंकलेश्वर में कचरा भेजना नामुमकिन लग रहा था।
अक्टूबर 2012: मंत्रियों के समूह ने ट्रायल के तौर पर 10 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को पीथमपुर में टीएसडीएफ सुविधा में जलाने का फैसला लिया। अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पीथमपुर में 10 टन कचरा नष्ट करने की योजना बनाने को कहा।
दिसंबर 2015: सुप्रीम कोर्ट ने 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को पीथमपुर संयंत्र में निपटाने का निर्देश दिया। इसके बाद अप्रैल 2021 में मप्र सरकार ने इस कचरे के निपटान के लिए टेंडर बुलाए। नवंबर में 2021 में रामकी को टेंडर दे दिया गया।
दिसंबर 2024: हाई कोर्ट ने जहरीले कचरे के निपटान में हो रही देरी पर फटकार लगाते हुए कहा कि एक महीने के भीतर यूका से कचरा हटाया जाए। इसके बाद कवायद तेज हुई।
धार जिले के पीथमपुर में एकमात्र प्लांट
एमपी में औद्योगिक इकाइयों में निकलने वाले रासायनिक और अन्य अपशिष्ट के निष्पादन के लिए धार जिले के पीथमपुर में एकमात्र प्लांट है। यहां पर कचरे को जलाने काम किया जाता है। यह प्लांट सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के दिशा-निदेर्शानुसार संचालित है।