दिव्या गोयल

प्रदेश की वर्तमान मुख्यसचिव वीरा राणा इस माह में सेवानिवृत्त हो रही है। सरकार इस बार उन्हें एक्सटेंशन देने के मूड में नहीं है । इस हफ्ते प्रदेश को जल्द ही अपना नया मुख्य सचिव मिल जाएगा।

लेकिन सबसे बड़ा कौतूहल का विषय यह है कि आखिर वीरा राणा से ऐसी क्या बेरूखी है जो मोहन सरकार ने उन्हें तीन माह का एक्सटेँशन दिलाने की कोशिश नहीं की। सरकार ने उन पर तब भी अपना भरोसा बनाए रखा जब उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। वीरा राणा ने भी इकबाल सिंह की कार्यशैली अपना ली थी लेकिन सरकार को उनकी यह वर्किंग स्टाईल पसंद नहीं आयी।

तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की दूसरी सेवावृद्धि समाप्त होने के बाद वीरा राणा को प्रभारी मुख्यसचिव बना दिया था। इसके बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव शुरू हो गए। चुनाव के बाद नव निर्वाचित मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने भी वीरा राणा पर अपना भरोसा जताते हुए उन्हें अपना मुख्यसचिव बनाए रखा । वीरा राणा ने भी सरकार के मंशा के अनुरूप बतौर एक बेहतर प्रशासनिक अधिकारी के रूप में तालमेल कर सरकार की कार्यों को धरताल पर अंजाम दिया जसमें लाड़ली बहना सबसे प्रमुख है। उनका साथ मिला तो मोहन यादव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कई महत्वपूर्ण फैसलों को भी बदल दिया जिसमें । उन्होंने सरकार के काम में कोई अड़ंगा नहीं लगाया , लेकिन मसला तब शुरू हुआ जब उन्होंने मोहन यादव सरकार में इकबाल सिंह बैस जैसी कार्यशैली अपनाने का प्रयास किया।

शिवराज सरकार में उनके मुख्यसचिव इकबाल सिंह बैस खासे नजदीक माने जाते थे। उस समय पूरी सरकार शिवराज और इकबाल ही थे बाकी सब साफ था। इकबाल सिंह बैंस सहित आईएएस अधिकारी इस कदर हावी थए कि खुद शिवराज सिंह के कई मंत्री और विधायकों ने इनके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें निरंकुश बताया था।

मोहन सरकार में भी अफसरशाह ने पूरी तरह हावी होने का प्रयास किया, लेकिन डॉ.मोहन यादव के पांच महारथियों ने इस सरकार में अफसरशाह की सवारी पर जैसे ब्रैक लगा दिया है। मामला तब ज्यादा बिगड़ा जब इन कद्दावर मंत्रियों की फाइल सीधे मुख्यमंत्री के पास ना जाकर सीधे मुख्य सचिव वीरा राणा के पास जाने लगी और वहीं खुद ही इन फाइलों में काट-छांट कर फैसले लेने लगी। डॉ.मोहन यादव के मंत्रियों को मुख्य सचिव की यह कार्यप्रणाली नागवार गुजरी। तब से ही मोहन सरकार वीरा राणा से असंतुष्ट हो गई।

इसी के बाद नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कैबिनेट में रखे जाने वाले मुद्दे मंत्रियों को ना भेजने पर सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जाहिर की थी। इसके बाद यह फैसला लिया गया कि कैबिनेट में आने वाले मुद्दों पर पहले विभागीय मंत्री से अनुमोदन लिया जाएगा। निगम मंडलों में भी आईएएस के स्थान पर राजनीतिक नियुक्ति भी अफसरशाही पर लगाम का एक और उदाहरण था।

राणा का कार्यकाल भी विवादों से परे नहीं रहा । उन पर माध्यमिक शिक्षा मंडल के अध्यक्ष को तौर पर कम्प्यूटर खरीदी में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। हाल ही में कांग्रेस उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटार ने मुख्य सचिव पर प्रशासनिक गलियारों पर सक्रिय दलालों से मेलजोल का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मनोज पाल सिंह नामक एक दलाल मुख्य सचिव के लिए उगाही का काम करता है ।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER