राकेश अचल

अभी नूपुरधुन के कारण उपजा तनाव समाप्त भी नहीं हुआ है कि अब बंगाल को बांटने के इरादे सामने आ आ गए हैं और इसके विरोध में बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी खून तक बहाने के लिए तैयार हैं. ऐसे ही सुर उत्तर प्रदेश के कानपुर में पिछले दिनों हुए उपद्रव के बाद चिन्हित आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने की तैयारियों के खिलाफ सुनाई दे रहे हैं.कानपुर के शहर काजी कह रहे हैं कि यदि बुलडोजर चला तो वे सब सर पर कफ़न बाँध लेंगे .

हाल की घटनाओं के बाद लगने लगा है कि देश को जानबूझकर आग में झोंका जा रहा है. सरकार को जब नूपुर शर्मा मामले को हिकमत अमली के साथ निबटाना था उस समय कानपुर की घटना को लेकर बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है .सरकार को जब नूपुर शर्मा और ज्ञानवापी मामले की सुनवाई कर रहे जज को मिल रही जान से मारने के धमकियों के खिलाफ सख्ती बरतना है तब उसकी और से बंगाल को बांटने की बात शुरू कर दी गयी है .
हम शुरू से छोटे प्रदेशों के समर्थक रहे हैं.हमने खुद उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ जिलों को मिलकर बुंदेलखंड बनाने की मांग के लिए आंदोलन किये हैं लेकिन आज जब हालात ठीक नहीं हैं तब अचानक बंगाल को विभाजित कर नया बंगाल बनाने की बात करना आग में घी डालने जैसा ही है .नपुरधुन से उपजे विवाद से देश-दुनिया का ध्यान हटाने के लिए नया विवाद खड़ा किया जा रहा है .अन्यथा अभी उत्तर बंगाल को अलग करने की मान का क्या औचित्य है ?
भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा पश्चिम बंगाल को काटकर अलग राज्य बनाने की मांग के मद्देनजर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य को विभाजित करने की कोशिशों को विफल करने के वास्ते जरूरत पड़ने पर वह अपना खून तक बहाने के लिए भी तैयार हैं। ममता ने भाजपा पर 2024 के आम चुनाव से पहले राज्य में ‘‘अलगाववाद’’ को बढ़ावा देने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उत्तर बंगाल में सभी समुदाय के लोग दशकों से एक-दूसरे के साथ मिलकर रह रहे हैं, लेकिन भाजपा लोगों को बांटने की कोशिश कर रही है।
आपको याद होगा कि बंगाल कि विभाजन की मांग कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन लगातार कर रहा है और परोक्ष रूप से इस आंदोलन को भाजपा का समर्थन प्प्राप्त है. संगठन के नेता जीवन सिंघा ने पिछले दिनों एक वीडियो जारी कर प्रदेश में रकपात की धमकी दी थी . उस कथित वीडियो के संदर्भ में, जिसमें कामतापुर की मांग नहीं मानने पर मुख्यमंत्री को ‘‘रक्तपात’’ की धमकी दी गई है, बनर्जी ने कहा कि वह इस तरह की धमकियों से नहीं डरती हैं। विपक्ष के नेता के तौर पर अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बनर्जी ने कहा कि वह जान की कई धमकियों का सामना कर चुकी हैं।
यानि अब भाजपा एक साथ दो मोर्चों पर लड़ना चाहती है. एक तरफ कानपुर है दूसरी तरफ बंगाल है .उत्तर प्रदेश के कानपुर में पिछले हफ्ते हुई हिंसा के सिलसिले में मंगलवार को 12 और लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसके साथ ही हिंसा के मामले में अब तक गिरफ्तार किए गए लोगों की कुल संख्या 50 हो गई है। इस बीच शहर काजी अब्दुल कुद्दूस ने कहा है कि यदि कानपुर में किसी के घर पर बुलडोजर चला तो सारे मुसलमान कफन बांधकर निकल पड़ेंगे। काजी ने कहा कि अब तो जो गिरफ्तारियां हुईं हैं वह हमारे हिसाब से ज्यादा हैं क्योंकि झगड़ा इतना बड़ा नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर कोई गलती हुई तो 20-25 लड़कों को अंदर करना चाहिए था, लेकिन अब 50 हो गए हैं।

सवाल ये है कि देश में इतना सब कैसे हो रहा है. कैसे लोग ममता बनर्जी को,नूपुर शर्मा को और ज्ञानवापी मामले की सुनवाई कर रहे मजिस्ट्रेट को जान से मारने की धमकी दे रहे हैं ? कैसे कानपुर कि शहर काजी सर पर कफ़न बाँधने की बात कह रहे हैं ?देश में क़ानून का राज है की नहीं ? या फिर जिसकी जो मर्जी आये सो कर सकता है,कह सकता है ? पिछले तीन दिन दिन में बात लगातार बढ़ती ही जा रही है. देश को एक बार फिर हिन्दू मुस्लिम में बांटने की कोशिश की जा रही है.यदि ऐसा न होता तो अब तक देश कि गृहमंत्री या प्रधानमंत्री जी को जनता कि बीच आ जाना चाहिए था .दूरदर्शन कि जरिये ही सही लेकिन देश की जनता को समझाना चाहिए था,बात करना थी .

सरकारी स्तर पर खामोशी ही ये संदेह पैदा करती है कि देश में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है .सरकार ने देश कि बाहर की प्रतिक्रियाओं पर ध्यान दे रही है और न देश कि भीतर हो रही प्रतिक्रियाओं पर ध्यान देना चाहती है.सरकार ने नूपुर शर्मा को जेल भिजवाने कि बजाय उन्हें सुरक्षा मुहैया करा दी .कल को यही ज्ञानवापी मामले की सुनवाई कर रहे जज साहब कि लिए किया जाएगा ,लेकिन ममता बनर्जी को जान की धमकियां मिलने पर केंद्र कुछ नहीं करेगी .क्योंकि वो तो वहां धमकियां देने वालों की पीठ पर हाथ रखे दिखाई दे रही है .

देश नीतियों से चलता है. क़ानून से चलता है,हिकमत अमली से चलता है. साजिशों से देश चलता नहीं बल्कि टूटता है .तो क्या सरकार यही सब चाहती है ? यदि नहीं तो क्यों नहीं अपना रुख स्पष्ट करती ? कानपुर में जो हुआ उसका समर्थन कोई नहीं करता लेकिन क्या उस वारदात कि बाद कानूनी कार्रवाई करने कि बजाय बुलडोजर सन्हिता का इस्तेमाल करना आवश्यक है ? बुलडोजर से मकान जमीदोज हो सकते हैं उपद्रव की मानसिकता नहीं . अब तक भाजपा शासित प्रदेशों में कितने बुलडोजर चले और इससे क्या हासिल हुआ ? भय से प्रीती पैदा अब नहीं होती .अब जमाना बदल गया है .
मैंने अपने पिछले लेख में सबको सन्मति देने कि लिए ईश्वर से प्रार्थना की थी.अब मै अपने सर्वशक्तिमान प्रधानमंत्री जी से विनती करता हों कि वे न खुद आग से न खेलें और न दूसरों को खेलने दें ,क्योंकि आग के इस खेल में आग का कुछ नहीं बिगड़ता,जलता केवल देश है .इसे फौरन रोका जाये .जिस नींव पर ये देश खड़ा है उस नींव में मठ्ठा न डाला जाये ,क्योंकि अंतत: हम सबको इसी जमीन पर रहना है .अब देश में कोई दूसरा पाकिस्तान नहीं बन सकता .75 साल में बहुत कुछ बदला है .बदले हुए परिदृश्य में देश की सम्प्रभुता,एकता,अखंडता और सार्वभौमिकता पर की आंच नहीं आना चाहिए .
@ राकेश अचल

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER