लेखक: डॉ रजनीश श्रीवास्तव

अभी कुछ दिन पूर्व एक मित्र महेश जी के निमंत्रण पर मेरा महू जाना हुआ । जिन्होंने मुझे आमंत्रित किया था उनके यहां एक और पुराने परिचित मित्र मिले। उन्होंने मुझे एक पुरानी घटना के बारे में याद दिलाते हुए कहा कि आप जब यहां 1998 में पदस्थ थे उस समय सात रास्ता चौराहे पर स्कूल में एक टाइम बम मिला था जिसे उस समय डिफ्यूज किया गया था। अब तो बात बहुत पुरानी हो गई है सही-सही बता दीजिए वह बम क्या और कैसा था?

वर्ष 1998 की घटना है। जाड़े का समय था सुबह-सुबह हमारे पड़ोसी एसडीओपी अंशुमान सिंह साहब के घर पर टेलीफोन पर हमारे तत्कालीन एसडीएम श्री नीतेश व्यास साहब का फोन आया और उनके द्वारा यह बताया गया कि महू में सात रास्ता चौराहे पर स्थित प्राइमरी स्कूल में एक टाइम बम जैसी चीज बच्चों ने देखी है,हम लोग तुरंत वहां पहुंचें और स्थित के बारे में जानकारी दें। इस पर हम और एसडीओपी साहब दोनों लोग तत्काल महू गांव स्थित घर से मौके के लिए रवाना हुए और मौके पर पहुंचे।

मौके पर देखा कि लाल रंग के चार छड़ों से लाल हरे नीले पीले चार रंग के तार निकले हुए हैं जो एक छोटी सी पीले रंग की घड़ी में गए हुए हैं,और घड़ी की टिक टिक आवाज सुनाई पड़ रही थी। हम लोगों ने सबसे पहले स्कूल की छुट्टी कराकर स्कूल के बच्चों को उनके घर रवाना किया।और आसपास के घरों को खाली कराया। उस बम जैसी चीज के चारों तरफ रेत की बोरियां रखवाई गई।उस जगह आने के सभी रास्ते की बैरिकेटिंग की गई। और भोपाल से बम डिस्पोजल स्क्वाड को बुलाने के लिए जिला मुख्यालय पर पुलिस अधीक्षक इंदौर को खबर किया गया।

स्कूल के आसपास के सभी घरों को रिक्त करा कर रहवासियों को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया गया। उस समय भोपाल से इंदौर आने में 5 से 6 घंटे लग जाते थे इसलिए बीडीएस स्क्वाड आने में समय लगा। कुछ लोगों का धैर्य समाप्त होने लगा और जज्बाती होकर यह कहने लगे कि पुलिस और प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है। एक सज्जन तो यह कहते हुए आगे आये कि हम कफन ओढ़ कर आ रहे हैं हम बम उठा कर फेंक देंगे आप हमें वहां जाने दीजिए। उनको समझाया गया कि बीडीएस के आने के बाद ही कुछ कार्रवाई की जाएगी आप थोड़ा सा धैर्य रखें।

इसके साथ ही मध्य भारत अस्पताल को हाई अलर्ट पर रखा गया ताकि किसी अपरिहार्य स्थिति में लोगों का इलाज किया जा सके। एंबुलेंस और कुछ अन्य वाहन भी अलर्ट मोड पर रखे गए। फायर ब्रिगेड भी बुलाया गया। लगभग 3:00 बजे भोपाल की बम डिस्पोजल स्क्वॉड की टीम महू पहुंच गई। बीडीएस के प्रभारी अधिकारी का नाम आज मुझे याद नहीं है, मगर यह याद है कि वह एक आकर्षक व्यक्तित्व के सरदार जी थे जो जींस और टीशर्ट पहने हुए थे। उन्होंने मौका देखा बम को देखा। आसपास के मकान और स्थान को देखकर बम को डिफ्यूज करने का निर्णय लिया।

पुलिस की बैरिकेटिंग वगैरा पूरी तरह से सुनिश्चित होने के बाद एक फायर ब्रिगेड को भी वहां पर खड़ा किया गया। उसके बाद सरदार जी ने यह कहा कि चलिए बम डिफ्यूज करने चलते हैं।हमारे साथ कौन-कौन चलेगा। वहां पर एसडीओपी अंशुमान सिंह साहब और हम खड़े थे। हम दोनों ने एक दूसरे का चेहरा दिखा और उनसे कहा कि चलिए हम साथ चलते हैं। इस तरह हम तीन लोग बम के पास पहुंचे। चारों तरफ से रेत की बोरियों के घेरे में टाइम बम पड़ा हुआ था और उसकी घड़ी सन्नाटे में टिक टिक की आवाज कर वातावरण को और भयावह कर रही थी।

वहां पहुंचकर मुझे अपने बचपन में देखी हुई एक अंग्रेजी फिल्म की याद आ गई जिसमें एक पनडुब्बी में शत्रु देश के जासूस ने एक टाइम बम फिट किया हुआ है जिसे डिफ्यूज करने के लिए वहां एक्सपर्ट अधिकारी पहुंचते हैं। एक्सपर्ट उस जासूस को भी पकड़ लेते हैं जिसने वहां बम फिट किया है और उससे पूछते हैं कि बम निष्क्रिय करने के लिए कौन-कौन से तार काटने हैं। वह जासूस बोलता है कि लाल तार काट देने से बम डिफ्यूज हो जाएगा मगर बीडीएस का वह अधिकारी लाल के बजाय हरा तार काट देता है और बम डिफ्यूज हो जाता है। वह कहता है कि इस जासूस ने जानबूझकर बम विस्फोट करने के लिए लाल तार बताया था यदि मैं वह लाल तार काट देता तो बम विस्फोट हो जाता और जासूस का मिशन सफल हो जाता और सभी मारे जाते।

मुझे उस फिल्म का वह दृश्य मेरी आंखों के सामने जीवंत हो गया था। अब सरदार जी ने प्लास से लाल हरे नीले पीले चारों रंग के तारों को एक-एक कर काट कर उस घड़ी को निकाल कर अलग कर दिया। किसी प्रकार का कोई विस्फोट नहीं हुआ तो हम लोगों की सांस में सांस आई। उसके बाद उन्होंने चारों राड निकालकर और घड़ी को बालू की बोरियों के बीच से निकाल कर बाहर किया। उसके बाद मुझसे बोले अपना हाथ मेरी टी शर्ट के पीछे रखिए । मैंने जब उनकी टी शर्ट के पीछे अपना हाथ रखा तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया की जनवरी की ठंड में उनकी पूरी शर्ट पसीने से गीली हो चुकी थी। फिर उन्होंने यह भी बताया कि बम डिफ्यूज करते समय विस्फोट भी हो सकता था और हम सभी मारे जा सकते थे। उन्होंने यह भी बताया कि ट्रेनिंग के दौरान कैसे उनके एक साथी का बम डिफ्यूज करते समय बम फट जाने से देहांत हो गया था। अब मैं मन ही मन सोच रहा था कि अगर यह कहानी इन्होंने पहले बता दी होती तो क्या हम लोग इतनी हिम्मत कर पाते की बम डिफ्यूज करते समय उसके सामने खड़े रहते।जांच करने पर यह पाया गया कि चार प्लास्टिक के खोखले पाइप थे जिन पर लाल टेप चिपका दिया गया था।और चार रंग के तार से प्लास्टिक की घड़ी को जोड़ दिया गया था।

बाद में सब सामान कोतवाली में लाकर पत्रकार वार्ता की गई जिसमें यह सब दिखाया और बताया गया कि कोई बम वगैरह कुछ भी नहीं था बल्कि किसी ने शरारत पूर्वक प्लास्टिक के चार पाइप लेकर उसपर लाल टेप चिपका दिया था और उसमें से चार रंग के तार निकाल कर पीले रंग की एक प्लास्टिक की घड़ी में जोड़ दिया था।और दहशत फैलाने के लिए स्कूल में सुनसान जगह पर रख दिया था।

पूर्व एडिशन कलेक्टर इंदौर

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER