SUDHIR NIGAM
दलबदलू मात्र एक शब्द नहीं है, इसमें पूरा इतिहास समाया हुआ है। ‘आयाराम, गयाराम’ की कहावत इन्हीं दलबदलुओं की देन है। देश की राजनीति में कई उलटफेर इन्हीं दलबदलुओं की बदौलत हुए। हाल में इसका सबसे बड़ा उदाहरण मप्र में देखने को मिला था, जहाँ दलबदलुओं के कारण कांग्रेस को सत्ता गँवानी पड़ी। विगत कुछ सालों में कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज पार्टी को टाटा कर चुके हैं। पर लगता है अब बयार दूसरी दिशा में बहने लगी है।
पिछले कुछ समय में जो नजर आया है, उससे लगता है कि समयचक्र बदल रहा है। चक्की ने उल्टी दिशा में पीसना शुरू कर दिया है। शुरुआत कर्नाटक से हुई, जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार कांग्रेस के हो गए। उनके अलावा कई विधायक व पूर्व विधायक भी कांग्रेस के पाले में आए। इससे वहाँ की राजनीतिक स्थिति का अंदाज लगाया जा सकता है। भाजपा को दूसरा बड़ा झटका छत्तीसगढ़ में लगा। कद्दावर आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने पार्टी को नमस्ते कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। वे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सयुंक्त मप्र से लेकर छत्तीसगढ़ तक कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। उनका भाजपा से मोहभंग होना गंभीर स्थिति को दर्शाता है।
अब बात मप्र की। छत्तीसगढ़ में साय के कांग्रेस में आने के बाद मप्र कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा भी है कि अभी तो ये ट्रेलर है, फ़िल्म बाकी है। मप्र में भी भाजपा के कई नेता पार्टी छोड़ने की कगार पर हैं। कई तो भाजपा छोड़ भी चुके हैं। इनमें सबसे पहला नाम है मुंगावली सीट से तीन बार विधायक रहे स्व. राव देशराज सिंह यादव के बेटे यादवेंद्र सिंह यादव का। भाजपा के लिए ये बड़ा झटका था। बसपा की शीला त्यागी भी कांग्रेस में आ चुकी हैं। अब जो सबसे बड़ा झटका भाजपा को लगने वाला है, वो है पूर्व मंत्री दीपक जोशी का। पूर्व मुख्यमंत्री और मप्र के संत नेता कहे जाने वाले कैलाश जोशी के पुत्र दीपक के कांग्रेस में जाने की कल्पना भी भाजपा के किसी नेता ने नहीं की होगी। तमाम मान मनोव्वल के बावजूद उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे 6 मई को कांग्रेस जॉइन कर रहे हैं। भाजपा में अपनी पूछपरख नहीं होने से नाराज दीपक को कांग्रेस में सहारा मिलने की आस है। वो कह रहे हैं कि उन्हें सहारे की जरूरत है। दूसरा बड़ा नाम जो भाजपा के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है, वो है मालवा के पुराने चावल भंवर सिंह शेखावत का। वो भाजपा में आये दलबदलुओं से खफा हैं। अगर उन्हें मनपसंद सीट नहीं मिली तो वो भी कांग्रेस का रुख कर सकते हैं। उनके कड़े तेवरों से पार्टी सकते में है। इनके अलावा अनूप मिश्रा, गौरीशंकर शेजवार-मुदित शेजवार, सुरेंद्र पटवा जैसे दिग्गज भी भाजपा नेतृत्व से खुश नहीं हैं। चुनाव नजदीक आते-आते ऐसे नेताओं की संख्या और बढ़ेगी।
भाजपा को सबसे ज्यादा चुनौती का सामना उन इलाकों में करना पड़ेगा, जहाँ से ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ पार्टी में आये नेताओं को उपचुनाव में टिकट मिले थे। इस बार टिकट के लिए वहीं सबसे अधिक मशक्कत करना होगी। दलबदल कर आये मंत्री व विधायकों को टिकट देने पर उस क्षेत्र के पुराने भाजपाई क्या रुख अपनाएंगे, ये देखना दिलचस्प होगा। उपचुनाव में तो सरकार दांव पर लगी थी, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। ऐसे में अब पुराने भाजपाई अपनी दावेदारी नहीं छोड़ेंगे। यदि उन्हें टिकट नहीं मिला, तो वे विद्रोह भी कर सकते हैं। ऐसे सभी क्षेत्र भाजपा के लिए दोधारी तलवार हैं। सारी स्थिति देखकर तो यही लगता है कि इस बार दलबदलुओं की मार भाजपा पर ही पड़ने वाली है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER