शशी कुमार केसवानी
यह बात कर रहा हूं कि लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव के बाद की। हम पहले दिन से लिख रहे हैं कि यह रास्ता उतना आसान नहीं है, जितना सरकार बनाकर एनडीए ने मान लिया है। जिस तरह से भाजपा के ही सांसदों ने अपनी नाराजगी का इजहार करना शुरू कर दिया है, खासतौर पर मंत्री पद को लेकर। आने वाले समय में मुश्किलें उतनी ही बढ़ती जाएंगी। यह हम पहले भी बता चुके हैं कि डीटीपी अपनी शर्तों पर काम करना चाह रही है। उसे तो एक विशेष पैकेज के साथ लोकसभा अध्यक्ष भी चाहिए। उसी तरह नायडू के पीछे नीतीश कुमार बड़ी खुशी से पीछे खड़े हो गए हैं क्योंकि उन्हें भी बिहार के लिए विशेष पैकेज और कुछ शर्तों पर अपने काम कराने हैं। इन सबसे बढ़कर यह है कि इन दोनों के पीछे इंडिया ब्लॉक भी खुशी से खड़ा हो गया है और खूब दोनों को चढ़ा रहा है कि अगर आज स्पीकर का पद नहीं लिया तो जो आंकड़ा भाजपा का 240 है वह कभी 272 को पार कर जाएगा यह किसी को कानो कान खबर भी न होगी। बस यही कारण है कि सब एक के पीछे एक खड़े होते जा रहे हैं, क्योंकि हर पार्टी को यह खतरा तो महसूस ही होता है कि हमारी पार्टी कब टूट जाए, उसका कोई भरोसा नही है।
शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी सभी पार्टियों को लंबे समय से सचेत करती आ रही हैं कि कब आपकी पार्टी के दो टुकड़े हो जाएं, आपको पता भी नहीं पड़ेगा। उन्हीं की जागरुकता की वजह से सभी को विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इतना ही सभी एक कतारबद्ध लाइन में खड़े होने को राजी हुए हैं। उन्होंने महाराष्ट्र में गिरी सरकार के सारे तजुर्बे सबके सामने तथ्यों के साथ प्रस्तुत किए हैं, जिसका असर सभी पार्टियों पर महसूस किया जा रहा है। पर मुश्किल यह है कि इस एनडीए में न तो अटल जी जैसा अनुभव है और न ही मनमोहन जैसी विनम्रता और ज्ञान है। सत्ता तो मिल गई है, पर उस सत्ता को चलाना एक बड़ी चुनौती बनती जाएगी। आने वाले 20 जून को लोकसभा में नव ननिर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण के बाद फ्लोर टेस्ट से पहले ही सारी व्यवस्थाएं और सारी शर्तों पर काम करना होगा। वर्ना जनता अटल जी की 13 दिन वाली सरकार को देख ही चुकी है। अगर यही हालात रहे तो आज नहीं तो कल कुछ वैसा फिर न हो जाए उसके लिए तो शर्तें माननी ही पड़ेंगी। हालांकि राजनाथ सिंह ने टीडीपी के इतर सभी सहयोगी दलों के नेताओं से बातचीत कर ली है। टीडीपी से बातचीत प्रारंभिक स्तर पर है। मंगलवार तक उससे बातचीत पूरी कर ली जाएगी। गौरतलब है कि जदयू, लोजपा जैसे सहयोगियों ने पहले ही स्पीकर पद के मामले में भाजपा को फ्री हैंड दिया है। पर इस पर अमल कितना होता है वह जिस दिन अध्यक्ष का चुनाव होगा उस दिन देखने को मिलेगा।
इस चुनाव में देश का भारी भरकम पैसा खर्च हुआ है और चुनाव में आम लोगों का रुाान भी कम हुआ है। बाकी कसर तो चुनाव बूथों पर चुनाव अधिकारियों के दुर्व्यवहार से और काउंटिंग में हुई गड़बड़ियों से आम लोगों का विश्वास टूटता जा रहा है। इन सबके बीच में आम आदमी के लिए सरकार कब काम करेगी, यह बड़ा सवाल देश के सामने खड़ा हुआ है। वादे तो बड़े-बड़े जो गए हैं पर उन पर अमल होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। आने वाला समय भाजपा के भारी मुश्किलों भरा रहेगा। आगे आप भी इंतजार करिए, हम भी अपनी पैनी नजर घटनाक्रमों पर बनाए हुए हैं। यह बात कर रहा हूं कि लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव के बाद की।