राघवेंद्र सिंह

मध्यप्रदेश- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में लाडली बहनों और किसानों की लहर पर सवार भाजपा ने इतिहास रच दिया। मप्र में मोदी और मामा शिवराज के मैजिक से कांग्रेस परास्त हो गई। राहुल गांधी ने कहा था मप्र – छग में कांग्रेस क्लीन स्वीप करेगी लेकिन कर दिया भाजपा ने। सम्भवतः पहली दफा कांग्रेस को सनातन विरोध व हिंदू विरोधियों को मौन समर्थन देने की भारी कीमत चुकानी पड़ी। विशेषज्ञ साफ्ट माने जाने वाले सनातनियों के इस बदलते रवैये को बड़े बदलाव के रूप में देख रहे हैं। जानकार और जिज्ञासु अवश्य इसका विश्लेषण करेंगे। चुनावी नतीजों ने साफ कर दिया कि मतदाताओं के मन मे क्या है यह कोई पता नही कर पा रहा था। क्योंकि ऐसे दो टूक जनादेश का अनुमान इक्का दुक्का मीडिया हाउस को छोड़ कोई नही लगा रहा था। लेकिन लाडली बहनों, भांजे- भांजियों, किसानों के साथ मतदाताओं ने तो संदेश दे दिया है कि “फिर भाजपा फिर शिवराज…” लेकिन अब कठोर प्रशासन के साथ करप्शन कंट्रोल करने और गुडगवर्नेन्स के नारे को हकीकत में बदलने का जिम्मा बड़ी शिद्दत से आ गया है। मध्यप्रदेश, यूपी की तरह तो नही है लेकिन सुधार कुछ वैसे ही होने व दिखने की जरूरत है। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि “खाऊंगा न खाने दूंगा”…बदलते और विकसित होते भारत में करप्शन को लेकर ज़ीरो टॉलरेंस का सपना दिखाया तो खूब जाता है लेकिन वह जमीन पर उतरता नजर नही आता। नए भारत का युवा राष्ट्रवाद, सामाजिक सुरक्षा, गुड़ गवर्नेंस के घोषणा पत्रों पर ही वोट दे रहा है।

जैसे कभी तत्कलीन पीएम राजीव गांधी ने कहा था कि वे जनता के लिए एक रुपया भेजते हैं लेकिन उसके पास 15 पैसे ही जाते हैं। लेकिन 85 पैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं। अभी भी सरकार की योजनाओं का करीब पचास फीसदी पैसा नेता-अफसर और दलालों के गिरोह खा जाता है। इस गठजोड़ को खत्म करने की जरूरत है।देश का युवा और आमजन पीएम मोदी के समयबद्ध विकास, भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था और नेशन फर्स्ट की नीति का मुरीद है और राज्यों में भी इन्ही मुद्दों पर काम करने वाला राज- तंत्र चाहता है। देश छोड़ने वाले और विदेशों में रहने वाले अनेक भारतीय करप्शन और काम काज में लेटलतीफी के चलते स्वदेश वापसी के लिए मन नही बनाते।

पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मामा शिवराज सिंह चौहान ने बहनों के भाई का जो रिश्ता जोड़ा उसने सूबे में भाजपा को तीसरे सबसे बड़े बहुमत से सरकार बनाने की तरफ अग्रसर किया। इसके पहले भाजपा 2003 और 2008 में भारी बहुमत से सत्ता में आई थी। संगठन की लाख कमजोरियों और सरकार में भ्रष्टाचार की शिकायतों के बाद अकल्पनीय बहुमत का कमाल लाडली बहना स्कीम के जरिए ही हो सका है। किसान पुत्र शिवराजसिंह चौहान लंबे समय से गरीब गुरबों का चेहरा बने हुए हैं। सदा सहज, सरल और संवेदनशील रहने व दिखने वाले शिवराज ने साबित किया कि सियासत में उन्हें जितना सीधा समझा जाता है उतने वे हैं नही। यह बात उन्होंने अपनी राजनैतिक यात्रा में समझाई और जताई भी है।
मार्च के महीने में आधी आबादी के मामले में लाडली बहना स्कीम का ऐलान कर संवेदना और राजनीतिक चतुराई दोनो का बखूबी इजहार कर दिया। इसके बाद किसानों के लिए करीब एक हजार रु धान व पांच सौ रुपये गेंहूं के समर्थन मूल्य में बढ़ा कर वोट और दिल दोनो लूट लिए। इन दोनो मुद्दों ने कांग्रेस से पिछड़ती और दिग्विजयसिंह की संगठन क्षमता के सामने पिटती भाजपा ने एक तरह से बाउंस बैक किया।

सनातन को खत्म करने के मुद्दे पर कांग्रेस की अगुवाई में बने इंडी गठबन्धन ने जो अपशब्द कहे वह भी कांग्रेस के लिए साइलेंट किलर बना। सीएम स्टालिन के पुत्र उदयनिधि स्टालिन ने जब सनातन धर्म को एड्स, मलेरिया और डेंगू कह कर खत्म करने की बात की तभी लगा कि यह भाजपा को चुनाव जीतने में मदद करेगी। इस पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पुत्र ने स्टालिन का समर्थन कर आग में घी डालने का कर डाला। सनातन के खात्मे के बयानों पर कांग्रेस की चुप्पी ने इसे और भी हवा दी। इस बीच खड़गे जी का एक पुराना भाषण भी रही सही कमी को पूरा कर गया जिसमें वे यह कहते सुने गए कि मोदी को जिताया तो इससे सनातन का प्रभाव बढेगा। ऐसे बहुत से मुद्दे थे जिसने हिंदी भाषी राज्य मप्र, छग और राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता से दूर धकेल दिया। आने वाले लोकसभा चुनाव में ये सब मुद्दे जो भाजपा के पक्ष में हवा बना रहे थे वे तूफान बनते लगे तो आश्चर्य नही होगा। सब जानते है ये चुनाव लोकसभा चुनाव के पहले का सेमी फाइनल थे। अभी तो 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ राम लला की स्थापना से भाजपा के समर्थन में हवा चलना शुरू हो जाएगी। इसके अलावा सबके लिए एक कानून के वास्ते समान नागरिक संहिता लागू करने का मामला भी पाइप लाइन में है। ये सब मोदी के मास्टर स्ट्रोक होंगे। देखिए आगे आगे होता है क्या..? लोकसभा का चार दिसंबर से शुरू होने वाला शीत कालीन सत्र भारतीय राजनीति की दशा और दिशा तय करने के मामले में मील का पत्थर साबित होगा। अभी तो मप्र , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत के जयकारों की गूंज ही सुनाई दे रही है जो 2024 तक सुनाई देगी…

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER