TIO, नई दिल्ली
कुछ लोग एक जैसी परिस्थितियों में रहने के बावजूद लम्बा और स्वस्थ जीवन व्यतीत करते हैं। इसका रहस्य जीन में छुपा है। जीन एक ब्लूप्रिंट की तरह हैं जो शरीर के विकास और काम करने के तरीके को निर्देशित करते हैं। नए अध्ययन से पता चला है कि 85 वर्ष से अधिक आयु के कुछ भारतीयों में ऐसे विशेष जीन होते हैं जो उन्हें लम्बे समय तक स्वस्थ रहने में मदद करते हैं।
क्या कहना है शोधकतार्ओं का
शोधकतार्ओं के अनुसार कुछ जीन इस बात को प्रभावित करते हैं कि हम बढ़ती उम्र के साथ कितना स्वस्थ जीवन व्यतीत करते हैं और कितने लंबे समय तक जीवित रहते हैं। ये विशेष जीन हमारे शरीर को नुकसान से बचाने के साथ-साथ हमारी कोशिकाओं को स्वस्थ रखने और बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं।
देखा जाए तो ये जीन धीमी हृदय गति और कमजोर हड्डियों के साथ सिजोफ्रेनिया और चिंता जैसी बीमारियों के कम जोखिम से जुड़े हैं। ये असाधारण आनुवंशिक लक्षण युवाओं की तुलना में लंबे समय तक जीवित रहने वाले बुजुर्गों में अधिक आम होते हैं। शोधकतार्ओं के एक दल ने इस अध्ययन में भारत में 85 वर्ष या उससे अधिक आयु के 133 लोगों का अध्ययन कर देश के सबसे बड़े जेनेटिक डेटाबेस जीनोमेगाडीबी से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है। इस दौरान तुलनात्मक समूह के रूप में 18 से 49 वर्ष की आयु के लोगों के 1,134 जीनोम के नमूनों का भी अध्ययन किया है।
पौष्टिक आहार और नियमित व्यायाम लंबे जीवन का मूल मंत्र
रश यूनिवर्सिटी प्रिवेंशन सेंटर शिकागो की मेडिकल डायरेक्टर लॉरा जिमरमैन कहती हैं कि अधिकतर लोगों के लिए पौष्टिक भोजन और नियमित व्यायाम करने जैसी जीवनशैली हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह , कैंसर और अल्जाइमर जैसी आयु संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के लिए बेहद लाभदायक है। इसमें भी जीन काफी मददगार होते हैं।
बढ़ती है जीवन प्रत्याशा
शोधकतार्ओं ने एक विशेष आनुवंशिक चिप का उपयोग करके नौ जीन स्वरूप की खोज की है जो लंबे जीवन से जुड़े हैं। इन जीनों में आने वाले बदलावों को शरीर की कार्यप्रणाली से जोड़कर ऐसे कारकों का पता लगाया जो लोगों को लंबे समय तक जीने में मदद करते हैं। यह भी पता चला है कि बुजुर्गों की लंबी उम्र के लिए ह्रदय गति को धीमा रखने से जुड़ा जीन जिम्मेदार है।
लंबी आयु प्रदान करने वाले इन जीनो का पता लगाने के लिए यह अध्ययन हैदराबाद स्थित मैप माय जीनोम इंडिया लिमिटेड से जुड़ी शोधकर्ता संध्या किरण पेम्मासानी के नेतृत्व में किया गया है। इसमें अहमदाबाद स्थित सोसाइटी फॉर रिसर्च एंड इनिशिएटिव्स फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजीज एंड इंस्टीट्यूशंस से जुड़े शोधकतार्ओं ने भी सहयोग किया है।