शशी कुमार केसवानी

आखिरकार 75 दिन का चुनावी शोरगुल गुरुवार को थम गया। लोकसभा चुनाव के सातवें यानि आखिरी चरण के लिए वोटिंग कल होगी। पर हमे एक आश्चर्य हुआ कि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस तरह से अपने भाषणों में शब्दों का उपयोग या फिर अपनी भाषा का दुरुपयोग कर रहे थे। वह प्रधानमंत्री पद की मर्यादा के अनुरूप नजर नहीं आया। हमें ही नहीं देश के अधिकतर लोग इस बात से खफा नजर आए कि प्रधानमंत्री किसी तरह की भाषा का उपयोग कर रहे हैं। आप कल्पना करिए, अगर आपका करीबी दोस्त इस तरह की भाषा का उपयोग करें तो आप क्या सोचेंगे। प्रधानमंत्री किसी एक पार्टी या कुछ व्यक्तियों का नहीं होता। वह पूरे देश का पीएम होता है और उससे उम्मीदें की जाती हैं कि वे जो बोले आने वाली नस्लें उस राह पर चलें। क्या आने वाली नस्लें इन शब्दों का और इस भाषा का उपयोग करेंगी तो कैसा लगेगा। मोदी जी ने 206 सभाएं की हैं। उनकी हर सभा में कुछ न कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग हुआ, जिससे लोग आश्चर्यचकित हुए। इसके साथ ही उन्होंने मीडिया को 80 इंटरव्यू दिए, जिसमें भी कुछ न कुछ अजीब नजर आया।

हम तो चाहते हैं कि प्रधानमंत्री एक ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सारे सवालों का जवाब एक साथ दे देते तो पूरा मीडिया खुश भी हो जाता और सबको अपने अपने जवाब भी मिल जाते। 80 अलग अलग इंटरव्यू करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। बुनियादी सवाल पूरी तरह से गायब नजर आए। बेहतर होता मोदी जी रोजगार, देश की स्थिति , अर्थव्यवस्था पर बात करते तो ज्यादा बेहतर होता। बजाय इसके किसके यहां टेंपों में पैसे भरकर गए हैं। अगर प्रधानमंत्री को इतनी जानकारी है कि टेंपों में पैसे गए हैं तो तुरंत जांच एजेंसियों को भेजना था। आखिरी चरण में जिस तरह से मोदी जी ने कहा कि मैं सात पीढ़ियों की पोल खोल दूंगा, तो देश चाहता है कि पोल खोल दें। वैसे भी आप मन की बात करते हैं। यह बात मन में क्यों रख ली आपने।

एक इंटरव्यू में आपने महात्मा गांधी के बारे में बताया कि उन्हें दुनिया में कम लोग ही जानते हैं। गांधी जी को लुइट वर्मन की फिल्म से पहचान मिली है। हमें नहीं लगता गांधी जी किसी फिल्म के मोहताज थे। उन्होंने एक लंगोटी और एक लाठी से अपने आपको ब्रांड बनाया था। वह तो दुनिया में कोई भी व्यक्ति काम नहीं कर पाया। नेल्सन मंडेला भी उन्हें पढ़कर ही अहिंसा के मार्ग पर चले थे। पूरी दुनिया में उनके पीछे चलने वालों की कोई कमी कभी नहीं थी। अल्बर्ट आइस्टीन ने कहा था कि हम बड़े भाग्यशाली हैं और हमें कृतज्ञ होना चाहिए कि ईश्वर ने गांधी जी जैसे प्रकाशमान समकालीन पुरुष दिया है। जो भावी पीढ़ियों के लिए भी प्रकाश स्तंभ का भी काम करेगा। जहां तक हमें जानकारी है कि 1930 और 40 के दशक में गांधी के कई बार टाइम मैग्जीन ने अपने कवर पिक्चर के साथ अनेकों किस्से कहानियां गांधी से जुड़े प्रकाशित किए हैं, जिसे दुनिया के कोने-कोने में पढ़ा जाता है।

आपने एक सभा में कह दिया था कि संडे की छुट्टी इसाई समुदाय से जुड़ी हुई है। इससे हिन्दू धर्म का कोई लेना-देना नहीं है। हमें तो यह जानकारी थी कि सातों दिन भगवान के होते हैं और संडे तो सूर्य का दिन माना जाता है तो फिर यह इसाइयों का कैसे हो गया। आपने अनेकों बार कहा कि मां के जाने के बाद हमें लगता है कि मेरा बायोलॉजिकली जन्म नहीं हुआ। हम मान भी लेते हैं कि आप अवतार हैं, फिर तो इस देश में कोई भी व्यक्ति दुखी नहीं होना चाहिए। सारे सुख साधनों से संपन्न होना चाहिए। यह इच्छा तो किसी भी शासक की होनी चाहिए और आपकी तो सबसे पहले। आपके के कई सवालों पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी आश्चर्य व्यक्त किया है। कहा है कि इससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ठेस पहुंची है। माननीय मोदी जी हम चाहते हैं कि आपके बयानों पर देश को फक्र होना चाहिए। न कि आपके बयानों पर सवाल करने की जरूरत पड़े। हां हमारा कोई दोस्त इस तरह की बातें तो हमें घबराहट होगी कि इसको अचानक क्या हो गया है कि इस तरह की बातें कर रहा है। पर आप तो देश के प्रधानमंत्री हैं। उम्मीद करते हैं कि आगे आने वाले सयम में ऐसी भाषा का उपयोग करेंगे जो लोगों के लिए प्ररेणा का स्त्रोत बनेंगे न कि मजाक का विषय।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER