ढाका। बांग्लादेश में एक बार फिर शेख हसीना प्रधानमंत्री बनने जा रहीं हैं। रविवार को हुए आम चुनाव में उनकी पार्टी आवामी लीग ने 300 में से दो-तिहाई सीटें जीत ली हैं। इसबार, एकतरफा चुनाव में वह लगातार चौथा कार्यकाल हासिल करने वाली हैं। उनका अब तक का यह पांचवां कार्यकाल होगा। वह पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनेंगी। हालांकि, शेख हसीना की जीत कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्योंकि कहीं न कहीं इसका अंदाजा सभी को था। पर इन सबके बीच ध्यान जाता है विपक्ष पर। छिटपुट हिंसा और मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) तथा उसके सहयोगी दलों के बहिष्कार के बीच हुए चुनाव में देखा जा सकता है कि जातीय पार्टी से आगे निर्दलीय उम्मीदवार रहे। बता दें, अवामी लीग ने 155 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की है, जबकि जातीय पार्टी ने महज आठ सीटें हासिल की हैं। इसमें कहा गया है कि 45 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है।

26 निर्वाचन क्षेत्रों में से आधे पर हार
यह आंकड़े संसद में विपक्ष की ताकत और भूमिका के बारे में सवाल उठाते हैं। खासकर तब जब सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया हो। सत्तारूढ़ पार्टी के निर्दलीय उम्मीदवारों ने अवामी लीग और जातीय पार्टी के मौजूदा सांसदों सहित दर्जनों दिग्गजों पर चौंकाने वाली जीत हासिल की है। जातीय पार्टी सिर्फ आठ सीटों के साथ संसद में फिर से आधिकारिक विपक्ष बनने के लिए तैयार है। जबकि आवामी लीग को उन्हीं सीटों पर नुकसान हुआ, जो सीटों के बंटवारे के समझौते के तहत छोड़ी गई थीं। सीटों के बंटवारे के समझौते में द्वारा छोड़ी गई 26 निर्वाचन क्षेत्रों में से आधे पर उसके उम्मीदवार हार गए हैं।

जीत ने राजनीतिक परिदृश्य को बदला
अवामी लीग के बागी उम्मीदवारों ने जातीय पार्टी की 61 सीटों की तुलना में लगभग छह गुना अधिक सीटें जीती हैं। अवामी लीग ने 299 निर्वाचन क्षेत्रों में से 211 के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया है। इन निर्दलीय उम्मीदवारों की अप्रत्याशित जीत ने राजनीतिक परिदृश्य को काफी बदल दिया है, जो सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर आंतरिक प्रतिस्पर्धा के एक नए युग का संकेत देता है। अवामी लीग के शासन के तहत बांग्लादेश नए कार्यकाल में कदम रख रहा है। वहीं, विपक्ष का नया रूप देश की संसदीय गतिशीलता और राजनीतिक संतुलन के भविष्य के बारे में महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है।

इस पार्टी को मिली इतनी सीट
अवामी लीग के सहयोगी जातीय समाजतांत्रिक दल और वर्कर्स पार्टी को एक-एक सीट मिली है। कभी बीएनपी के नेतृत्व वाले गठबंधन में रही कल्याण पार्टी ने भी एक सीट पर जीत हासिल की। बीएनपी देश की राजनीति में एक बड़ी ताकत होने के बावजूद संसद से बाहर रही है, ठीक उसी तरह जैसे 2014 के चुनावों के बाद 10वीं संसद का पार्टी ने बहिष्कार किया था। कम मतदान के बीच बीएनपी के वरिष्ठ नेता अब्दुल मोयिन खान ने दावा किया कि उनका बहिष्कार सफल रहा।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER