राघवेंद्र सिंह

देशभर में लोकसभा की 400 पार सीट का नारा देने वाली भाजपा को मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों पर जीत से कम कुछ भी मंजूर नही है। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए यह कोई आसमानी सुलतानी आंकड़ा भी नहीं है। तब केवल छिंदवाड़ा कांग्रेस जीती थी। याने इसबार छिंदवाड़ा टस से मस हुई और बस … सूबे की सभी 29 सीटें भाजपा के पास। चुनाव का दौर है नेता-कार्यकर्ताओं की जुबान जरा सी फिसली और समझो… बस। चुनाव की धड़ी गुजरी और फिर नेताओं का जनता और कार्यकर्ताओं से दिनरात प्यार से मिलने का मिशन …बस।

टस से मस और बस…
इस बस… पर मशहूर शायर
अम्मार इक़बाल की ग़ज़ल के चंद शेर बेहद मौजू हैं जो सियासत और उसमें खेलने वाले लीडरान के लिए नसीहत भी है।

रंग-ओ-रस की हवस और बस
मसअला दस्तरस और बस

यूँ बुनी हैं रगें जिस्म की
एक नस टस से मस और बस
सब तमाशा-ए-कुन ख़त्म शुद
कह दिया उस ने बस और बस

क्या है माबैन-ए-सय्याद-ओ-सैद
एक चाक-ए-क़फ़स और बस

उस मुसव्विर का हर शाहकार
साठ पैंसठ बरस और बस…

ग़ज़ल ने कह दिया है ज़िंदगी कुलजमा इससे ज्यादा कुछ भी नही। दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना से कांग्रेस के उम्मीदवार थे और तब कमलनाथ जी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। सिंधिया रियासत के ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस ने विधानसभा के टिकट जिताने की जिम्मेदारी के साथ महाराज की मर्जी से ही बांटे थे। कांग्रेस जीती भी भर पल्ले थी। ऐसे में सीएम बनने वालों में सिंधिया का भी नाम चल पड़ा था। लेकिन सीएम बने कमलनाथ। उन्हें पूर्व सीएम दिग्विजयसिंह का भी समर्थन था। दोनों दिग्गजों के कई कारणों से समीकरण ठीक नही थे। सरकार बनने के साथ ही सिंधिया समर्थक मंत्रियों की शपथ और विभागों को लेकर तनातनी शुरू हो गई थी। इस बीच कांग्रेस आला कमान ने उत्तरप्रदेश के एक हिस्से का चुनाव प्रभारी बना दिया। वहां कांग्रेस को जिताने के चक्कर में सिंधिया गुना सीट पर ज्यादा फोकस नही कर पाए। और वे अपनी परंपरागत सीट से चुनाव हार गए या कांग्रेस की गुटीय राजनीति के चलते हरा दिए गए। इससे महाराज के दिलो दिमाग पर जबरदस्त सदमा लगा था। बहरहाल प्रकारन्तर में असंतोष,अपमान, गुटबाजी इस कदर बढ़ी की सिंधिया ने समर्थक मंत्री- विधायकों के साथ बगावत की नतीजतन कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई। शिवराज सिंह चौथी बार सीएम बने। सिंधिया अपने साथियों को मंत्री पद दिलाकर भाजपा में शामिल हो गए। कुछ महीनों के बाद सिंधिया भी भाजपा से राज्यसभा सदस्य चुने गए और मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। इस कालखंड में गुना की हार दंश उन्हें भुलाए नही भूल रहा था। इस बार भाजपा ने यादव बहुल सीट से सिंधिया को पराजित करने वाले केपी यादव का टिकट काट फिर से महाराज को मैदान में उतारा है। पिछली शिकस्त के शूल इस कदर महाराज के सीने में लगे है कि वे यह चुनाव महाराज बनकर नही बल्कि आम आदमी के रूप में परिवार सहित पत्नी व बेटे के साथ लड़ रहे हैं। उनकी माताजी राजमाता माधवी राजे गम्भीर रूप से बीमार होने के कारण दिल्ली में भर्ती हैं। वे प्रचार के साथ उनकी तबीयत का भी ख्याल रख ज्यादातर वक्त संसदीय सीट को दे रहे हैं। पिछली पराजय के कारण वे इस बार कोई कसर नही छोड़ना चाहते हैं। दूध के जले जो हैं।इसलिए छाछ भी फूंक फूंक कर पी रहे हैं।

इसके अलावा विदिशा प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विदिशा को मध्यप्रदेश की तरह मथ रहे हैं। यहां से जीत को लेकर भाजपा में कोई संदेह नहीं है लेकिन प्रदेश के बेटा और बेटियों के मामा और बहनों के भाई शिवराज सिंह बड़े मार्जिन से विदिशा का चुनाव जीतना चाहते हैं । ऐसा लगता है उन्होंने विदिशा को ही मध्य प्रदेश मान लिया है। एक-एक गांव मजरे टोले खासतौर से आदिवासी इलाकों में उन्होंने जो दस्तक दी है उससे लगता है वह मध्य प्रदेश में रिकॉर्ड जीत की तरफ बढ़ने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। उनका भी कहना है मजा तब है जब जीत का कीर्तिमान बने। उनके इस मिशन में उनकी पत्नी साधना सिंह और पुत्र कार्तिकेय भी खूब पसीना बहा रहे हैं।

राजगढ़- राजा का गढ़ या भाजपागढ़…
मध्य प्रदेश में सबसे सुर्खियों में रहने वाली और कांटे के मुकाबले के लिए चर्चित सीटों में राजगढ़ का भी नाम खूब चर्चाओं में है यहां से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मैदान में है और जनता से उनके जुड़ाव और भावनात्मक लगाव को देखते हुए उन्होंने ऐलान किया है कि यह उनका आखिरी चुनाव है। उनके कामकाज पर जनता की मुहर का समय है। उनकी चुनावी रणनीति चुनाव प्रबंधन और जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ जनता से सीधा संवाद भाजपा को चिंता में डाले हुए है। यहां से भाजपा के सांसद रहे उम्मीदवार रोडमल नागर अपनी कार्यप्रणाली और जनता के असंतोष को देखते हुए सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांग रहे हैं। साथ ही बड़े काम करने का वादा करते हुए वे कहते हैं इस बार का वोट सीधा मोदी जी को जाएगा। कुल मिलाकर राजगढ़ में चुनाव मोदी की गारंटी पर केंद्रित है। देखना है अबकी बार राजगढ़-राजा का गढ़ रहेगा या भाजपा का गढ़ बना रहेगा। मुकाबला दिलचस्प है।सबकी निगाहें लगी है कि ऊंट किस करवट बैठता है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER