TIO, रायपुर/दिल्ली।

जांच एजेंसियां कुछ लोगों के हमेशा पक्ष में काम करती हैं। कोर्ट में इस तरह की चीजें पेश की जाती हैं, जिससे माफिया हमेशा बच जाता है। कई बार तो कुछ बेगुनाह लोगों की बलि देकर गुनाहगारों को बचा लिया जाता है। रायपुर शराब कांड भी इसी तरह से सरकार और एजेंसियों की मिलीभगत से मलाई खाता रहा। कोर्ट भी वहीं निर्णय लेते है, जो एजेंसिया सबूत पेश करती है। इतने लंबे समय से कई सरकारी एजेंसियों पर आरोप दर आरोप लगते जा रहे हैं कि भ्रष्टाचार के चलते एजेंसिया चंद लोगों की जेब पड़ी में रहती हैं। या फिर उनकी ही कठपुतलिया बनकर काम करती हैं। सौम्या समेत टुटेजा एंड कंपनी के खिलाफ नामजद प्रकरण होने के बावजूद एजेंसियां कुछ माफियाओं को तो कुछ अधिकारियों को अलग-अलग रास्तों से बचाकर बाहर निकालने में लगी रहती है। अगर इसी तरीके से जांच एजेंसियां भी काम करती रहीं तो इन एजेंसियों के ऊपर भी एक निगरानी कमेटी या एजेंसी बैठानी पड़ेगी। पर सरकार के तो मजे ही मजे हैं। चाहे खजाना खाली जो जाए, अपनी जेब भरकर मित्रों को फायदा किस तरह पहुंचाया जाता है, यह कई नेता भलीभांति जानते हैं। इसी तरह की खबर छत्तीसगढ़ के 22 सौ करोड़ के शराब घोटाले को लेकर सामने आ रही है। ताजा जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में राज्य के शराब घोटाले को लेकर दिए गए फैसले के अध्ययन के बाद केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी के हौसले बुलंद नजर आ रहे हैं। अब वो पूरी सजकता के साथ नई कार्यवाही को नियमानुसार अंजाम दे रही है। यद्यपि तकनीकी त्रुटि के चलते ईडी को सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी हो लेकिन सुप्रीम फरमान के अध्ययन के बाद उसकी जांच की राह तय हो गई है। ईडी और ईओडब्ल्यू की सक्रियता ने टुटेजा एंड कंपनी समेत आरोपियों के अरमानों पर पानी फेर दिया है।

पर गौरतलब बात यह है कि छत्तीसगढ़ का लोकल निर्माता और वहां का ट्रेडर्स पूरे प्रकरण से किस तरह अलग हो सकता है। इस तरह के कांड में इनकी भागीदारी के बिना कार्य असंभव रहता है। पर पूरे प्रकरण में यह दोनों पक्ष काफी बचे हुए नजर आ रहे हैं। एजेंसियों और कोर्ट को भी इस पर नजर डालनी चाहिए और इसकी जांच एक बार फिर से कराकर सरकार को लगे चूने के बारे में विचार करना चाहिए। आश्चर्य की बात है कि इतने बड़े कांड में कोई अधिकारी और कोई नेता बात करने को राजी नहीं है। यहीं परिस्थितियां रहीं तो आने वाले दिनों में यह माफिया के साथ साथ लोकल ट्रेडर्स और निर्माता के हौसले बुलंद होंगे और सरकार को भी रेवेन्यू का भारी नुकसान होगा।

सूत्रों के मुताबिक राज्य के सबसे बड़े शराब घोटाले के आरोपी जल्द ही ईडी की गिरफ्त में होंगे? इसके लिए नई ईसीआईआर दर्ज करने पर विचार विमर्श जारी है। बताते हैं कि एडह में दर्ज एफआईआर को प्रेडिकेट अफेंस के रूप में संज्ञान लेकर प्रवर्तन निदेशालय नई ईसीआईआर दर्ज कर सकता है, इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। इसके साथ ही आरोपियों से पूछताछ को लेकर ईओडब्ल्यू भी सक्रिय हो गया है। कारोबारी अनवर ढेबर और अरविंद सिंह की गिरफ्तारी के बाद नए आरोपियों की तलाश शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि अभी कई और आरोपी ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ सकते हैं।

छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अनिल टुटेजा एंड कंपनी समेत लगभग आधा दर्जन आरोपियों को राहत दी थी। अदालत में एऊ की पूर्व में दर्ज ईसीआईआर खारिज कर दी गई थी। अदालत में आयकर विभाग की कार्यवाही को ईडी के लिए प्रेडिकेट अफेंस के दायरे में नही पाया था। जबकि दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में आयकर विभाग द्वारा दायर एक परिवाद को आरोपी अनिल टुटेजा और उनके पुत्र यश टुटेजा ने कोर्ट में चुनौती दी थी। इसमें ईडी की कार्यवाही को गैर कानूनी बताया गया था। बताया जाता है कि भू-पे राज में शराब घोटाले के आरोपियों को एडह और विधि विभाग के कई तत्कालीन अधिकारियों का सहयोग और संरक्षण प्राप्त था। नतीजतन जांच कार्यवाही को लेकर ईडी की टीम अलग थलग पड़ गईं थी। कई सरकार विभाग अपने नियमों का खुद ही उल्लंघन करते हैं। अगर एक केस में एक पार्टी गुनाहगार है, उसी तरह के केस में किसी को भी राहत कैसे दी जा सकती है। पर सरकार की सांठगांठ से कुछ शराब माफिया सारे नियम कायदों को ताक पर रखते हुए अपने पक्ष में कोर्ट से व सरकार जांच एजेंसियों से मनचाहे फैसले करवा लेते हैं। यहां पर भी यही हुआ है। कायदे-कानून से हटकर अपने पक्ष में निर्णय कराए गए हैं।

उसने आयकर विभाग के परिवाद में दर्ज धारा 120 इ को आधार बनाकर टुटेजा एंड कंपनी के खिलाफ ईसीआईआर दर्ज किया था। अदालत में यह कार्यवाही टांय-टांय फिस्स हो गई। कानून के जानकार बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने आयकर की धाराओं के तहत कार्यवाही को तो उपयुक्त माना, लेकिन उसमें आईपीसी की धारा 120 इ को भी दर्ज किए जाने के मामले को आपत्ति जनक और गैर जरूरी पाया गया। उनके मुताबिक आयकर विभाग अपनी कार्यवाही में आईपीसी की धाराओं का उपयोग करने के बजाए सिर्फ आयकर एक्ट की धाराओं के तहत ही सीमित रहना था। इस तकनीकी त्रुटि के चलते टुटेजा एंड कंपनी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली थी। उनके खिलाफ ईडी में दर्ज ईसीआईआर को कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

सूत्रों का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अध्ययन के बाद एजेंसियों ने तकनीकी त्रुटि और भूल सुधार करने में जोर दिया है।इसके तहत आरोपियों के खिलाफ नई ईसीआईआर दर्ज करने का फैसला भी लिया गया है। इस एउकफ में आबकारी विभाग के कई दागी अधिकारियों के खिलाफ भी नामजद अपराध पंजीबद्ध करने के फरमान प्राप्त हुए हैं। सूत्रों का दावा है कि नई ईसीआईआर में लगभग एक दर्जन आरोपियों के खिलाफ नामजद प्रकरण दर्ज किए जाने की एक सूचि तैयार कर ली गई है। इस सूचि में शामिल किए गए संभावित आरोपियों के नाम चौंकाने वाले बताए जाते है।

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के बीच दागी अधिकारियों और भ्रष्टाचार में लिप्त आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर राजनैतिक सरगर्मियां तेज हैं। एजेंसियों ने अपनी कार्यवाही शुरू कर दी है, इसमें उन आरोपियों पर लगातार शिकंजा कस रहा है, जिनका नाता शराब घोटाले से जुड़ा था। राज्य की लगभग सभी 11 सीटों पर भ्रष्टाचार के मुद्दे ने मतदाताओं को प्रभावित करना शुरू कर दिया है।

जनता आरोपियों की धर-पकड़ और कड़ी कार्यवाही की उम्मीद कर रही है, जबकि कानूनी दांव-पेचों का सहारा लेकर आरोपियों और जांच एजेंसियों के बीच आंख मिचौली का खेल जारी है। इस बीच कानून के जानकारों की निगाहें विष्णुदेव साय सरकार के रूख पर टिकी हुई हैं। कयास लगाया जा रहा है कि शराब घोटाले की निष्पक्ष जांच के लिए राज्य सरकार सीबीआई का दरवाजा भी खटखटा सकती है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER