TIO, नई दिल्ली
गर्मियों के दिनों में भारत की भुजिया राजधानी बीकानेर भट्ठी की तरह धधकती है। रेत के टीलों से भरे सूखे मैदानों के बीच राव बीका द्वारा 1488 में स्थापित पश्चिमी राजस्थान के इस शहर में तापमान अक्सर 50 डिग्री तक बढ़ जाता है, इस प्रचंड ताप के असर में आने वाली हर चीज पिघल जाती है। शुष्क, झुलसाने वाली गर्मी में इंसान की चमड़ी के खुले हिस्से कोयले जैसे काले हो जाते हैं। इस इलाके में रहने वाले व्यक्ति की त्वचा दिन-रात हवा में उड़ते रहने वाली दानेदार रेत की परतों से खुरदरी हो जाती है।
2011 के गर्मियों से पहले की बात है। तब भारत क्रिकेट वर्ल्ड कप जीत चुका था। तभी बीकानेर की बंजर जमीनों के दाम वैसे बुखार की तरह बढ़ रही थीं जिसका इलाज नहीं हो पाया हो। खबर फैली थी कि दिल्ली का कोई व्यक्ति एकड़ दर एकड़ बंजर जमीन खरीद रहा था और इसके लिए बहुत ज्यादा कीमत चुकाने को तैयार था।
‘मौका-मौका’ के इसी दौर में स्थानीय व्यवसायी और निवेशक विनीत असोपा तब बालू से सने अपने हाथ आंखों पर मलने लगे जब उन्हें एक हैरान करने वाला सौदा मिला। ये ‘दिल्लीवाला’ जैसा कि उन्हें तब कहा जाता था, एक हेक्टेयर (3.95 एकड़) जमीन के लिए 65000 हजार देने का तैयार था। जबकि उस समय वहां एक हेक्टेयर जमीन की कीमत 25000 रुपये से भी कम थी।
कुछ समय के लिए असोपा को यकीन हो गया कि उनकी जमीन में तेल के भंडार या कुछ कीमती खनिज छिपे हुए हैं। लेकिन, जब कई फीट तक खुदाई की गई तो कुछ नहीं मिला। इसलिए, उन्होंने इसे 65,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खुशी-खुशी बेच दिया। जब सौदे का चेक आया, तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि कुछ बड़ा होने वाला है। क्योंकि इस चेक पर तत्कालीन कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के हस्ताक्षर थे, जो कि यूपीए के दौर में देश के प्रभावशाली व्यक्ति थे। रॉबर्ट वाड्रा जैसा व्यक्ति इस प्रकृति की ओर से बिसार दिए गए रेगिस्तान में बंजर भूमि के विशाल क्षेत्र को क्यों खरीदेंगे, जहां लाल चींटियों, धतूरे की झाड़ियों और रेगिस्तानी छिपकलियों के अलावा कुछ भी नहीं मिलता?
मिस्ट्री बढ़ती गई
रॉबर्ट वाड्रा के लिए जमीन की तलाश करने वालों की टीम, जिसका नेतृत्व हरियाणा के एक कांग्रेस नेता के रिश्तेदार फरीदाबाद निवासी महेश नागर कर रहे थे, ने जब बीकानेर में जमीन की तलाश शुरू की थी, उससे पहले भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घोषणा की थी कि सौर और पवन ऊर्जा ही एनर्जी सेक्टर का भविष्य है। इसके बाद राष्ट्रीय सौर मिशन की शुरूआत हुई जिसने निजी निवेशकों को स्वतंत्र सौर ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने की अनुमति दी।
राजस्थान में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए बोलियां 2010 और 2011 के बीच दो बैचों में आमंत्रित की गईं। जीतने वाली बोलियां 7.49 रुपये प्रति किलोवाट घंटा से लेकर 12.76 रुपये प्रति किलोवाट घंटा तक थीं। सौर ऊर्जा क्षेत्र जबर्दस्त प्रतिस्पर्द्धा का क्षेत्र है। यहां किसी भी विद्युत परियोजना की सफलता दो बातों पर निर्भर करती है – सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता, और परियोजना की ग्रिड सेवा स्टेशन से निकटता। थार रेगिस्तान के बीचोबीच बसे बीकानेर में चकमक और तीखी धूप मिलती है। 2009 से 2011 के बीच वाड्रा की कंपनियों के नेटवर्क ने ग्रिड स्टेशनों के नजदीक रणनीतिक रूप से प्रचुर मात्रा में जमीन खरीदी थी।
आप उस पुरानी कहावत की ट्विस्ट करते हुए ये भी कह सकते हैं कि आवश्यकता ही मूल्य वृद्धि की जननी है। एक बार जब निवेशक किसी बिजली परियोजना के लिए सफलतापूर्वक बोली लगा देते हैं, तो उन्हें ट्रांसमिशन लागत को न्यूनतम रखने के लिए ग्रिड स्टेशन के नजदीक जमीन की जरूरत होती है। और वे इस सुविधा के लिए कीमत चुकाने को तैयार थे। यहीं पर वाड्रा का आगमन होता है। कई स्थानों पर जमीन बिक्री मामले में उनका एकाधिकार था।
राजस्थान में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर एक मामले के अनुसार वाड्रा की कंपनियों ने बीकानेर के सिर्फ़ एक सबडिवीजन में 275 एकड़ जमीन खरीदी। और कुछ मामलों में उन्होंने इसे ऐसी कीमत पर बेचा जो मूल खरीद की लागत से 45 गुना ज्यादा थी। उदाहरण के लिए, उनकी कंपनी स्काई लाइट रियल्टी ने 30 हेक्टेयर के प्लॉट के लिए 4।45 लाख रुपए चुकाए। दो साल बाद इस जमीन में बिना कुछ जोड़े, उन्होंने इस जमीन की 2 करोड़ रुपये में बोली लगा दी। इस तरह उन्होंने बहुत छोटे समय में 45 गुना ठोस रिटर्न हासिल किया। क्या वाड्रा का ग्रिड स्टेशनों के पास जमीन खरीदना महज लक की बात थी? या फिर उन्हें पहले से पता था कि सौर ऊर्जा परियोजनाएं कहां स्थापित की जाएंगी और कहां जमीन की मांग बहुत अधिक होगी?