सुधीर निगम
पूरा देश राममय हो चला है। श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद भक्ति का नया सैलाब दिखाई दे रहा है। देश की राजनीति पर भी इसकी छाप पड़ना तय है। भाजपा पूरी तरह ‘विन-विन सिचुएशन’ में है और उससे टक्कर लेना ‘इंडिया’ के लिए बहुत मुश्किल नजर आ रहा है।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह की ‘टाइमिंग’ भाजपा के लिए एकदम ‘परफेक्ट’ रही। यदि नियत समय पर लोकसभा चुनाव होंगे, तो उसके लिए तीन से चार महीने का वक्त है। देश में उठा ये भक्ति का ज्वार इतने समय में कम होने की कोई संभावना नहीं है। भाजपा इस काम को और बढ़ा-चढ़ा कर जनता के सामने पेश करेगी। राम मंदिर हमेशा से उसके लिए जीवनदायिनी मुद्दा रहा है। वो इस मौके को यूँ ही जाने देगी, ये सोचना भी मूर्खता होगी। और भाजपा इस मौके का फायदा उठाये भी क्यों न? सिद्धांतवादी कहते हैं कि राजनीति और धर्म को अलग-अलग रखना चाहिए। लेकिन, जनाब ये भारत है, यहाँ आप दोनों को अलग कर ही नहीं सकते। यहाँ अधिकतर लोग जाति और धर्म के नाम पर ही वोटिंग करते हैं। जहाँ चुनाव में भी ज्यादातर टिकट (चाहे किसी पार्टी के हों) ही जाति और धर्म के नाम पर बांटे जाते हो, वहाँ वोटर को आप इससे दूर कैसे रख सकते हैं?
अपने लिए समय मुफीद होने पर कौन फायदा नहीं उठाएगा? याद कीजिये इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के चुनाव। सहानुभूति की जो लहर उस समय चली थी, क्या उसका फायदा कांग्रेस ने नहीं उठाया था? इंदिरा जी की हत्या के दो महीने के अंदर चुनाव हो गए थे। 400 से ज्यादा सीट जीतकर कांग्रेस ने इतिहास रच दिया था, तो अब भाजपा की बारी है और वो इस मौके को जाने नहीं देगी। कांग्रेस या कहें तो ‘इंडिया’ के पास इसका कोई तोड़ नहीं दिख रहा। राहुल गांधी न्याय यात्रा निकाल रहे हैं, नितीश कुमार का कोई भरोसा नहीं, ममता बनर्जी अपना अलग राग आलाप रही हैं। ऐसे में वो भाजपा का मुकाबला कर पाएंगे, इसमें बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है।
हालाँकि अभी समय से पहले चुनाव के कोई संकेत नहीं मिले हैं, लेकिन मान लीजिए कि थोड़ा पहले भी चुनाव की घोषणा हो गई तो क्या होगा? ‘इंडिया’ की तैयारी क्या हैं? भाजपा ने गरम लोहे पर हथौड़ा मार दिया, तो विपक्ष कहीं का नहीं रहेगा। यदि ‘इंडिया’ ने अपने सीट बँटवारे को लेकर और देर की, तो बहुत देर हो जाएगी। भाजपा या कोई भी सत्ताधारी दल कभी नहीं चाहेगा कि जब सारी चीजें उसके पक्ष में हों, तो दूसरे दल को संभलने का अवसर दिया जाए। भाजपा में इस बात की चर्चा अवश्य हो रही होगी कि वक्त रहते हथौड़ा मार दिया जाए और विपक्ष को छिन्न-भिन्न कर दिया जाए। कोई आश्चर्य नहीं कि चुनाव समय से पहले हो जाएं और विपक्ष को चीजें समझने का मौका ही न मिले। फिर वो तो है ही
‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा।।’