अरुंधति रॉय ने वास्तुकला का अध्ययन किया है। आप द गॉड आॅफ स्माल थिंग्स-जिसके लिए आपको 1997 का ‘बुकर पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और ‘द मिनिस्ट्री आॅफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ की लेखिका हैं। दुनियाभर में इन दोनों उपन्यासों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आपकी पुस्तकें ‘मामूली चीजों का देवता’, ‘अपार खुशी का घराना’, ‘बेपनाह शादमानी की ममलिकत’ (उर्दू में), ‘न्याय का गणित’, ‘आहत देश’, ‘भूमकाल : कॉमरेडों के साथ’, ‘कठघरे में लोकतंत्र’, ‘एक था डॉक्टर एक था संत’ और ‘आजादी’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं। ‘माय सीडिशियस हार्ट’ आपकी समग्र कथेतर रचनाओं का संकलन है। आप 2002 के ‘लनन कल्चरल फ्रीडम पुरस्कार’, 2015 के ‘आंबेडकर सुदार पुरस्कार’ और ‘महात्मा जोतिबा फुले पुरस्कार’ से सम्मानित हैं। आज इस किताब की चर्चा बेहद आवश्यक हो जाती है इसका कारण इस किताब में लिखे शब्द ही नहीं बल्कि इसके वह भाव जो पाठक के मन को लेखक के शब्द चित्रण वाले स्थान पर स्वयं ही ले जाते हैं फोल्डिंग कुर्सियों के घेरे से परे एक समुद्र तट था, समुद्र काला था और मछलियां कांच के चूरे को खा रही थी यह पंक्तियां बेशक स्वप्न रचित थी।
परंतु पाठक को लेखिका की दूरदर्शिता और गहन भाव की तरफ ले जाने में सफल रहीं, स्वप्न सुंदर और मन भावन हो तो जाग जाने के बाद भी कुछ समय तक गुदगुदाता रहता है, “अगर सपने में कोई खुश हो तो क्या वह खुशी गिनती में शामिल होती है, एस्ता का प्रश्न बालबोध के रूप में तो सहज था लेकिन सपनो वाली खुशियों को गिनती में गिनना जैसे एक संपूर्ण जीवन का अलग अध्याय लिख देना, कहानी के बीच मछुआरों का गीत “पंडोरू मुकूवन मुथिनू पोई” यह भाषा अलग थी लेकिन इसका अनुवाद भी देकर लेखिका ने पाठकों की भाषा क्षुधा को भी शांत करने में सफलता प्राप्त की इसके बाद की पंक्तियों का अनुवाद बेहद ही ज्यादा मार्मिक कटाक्ष और पीड़ा से भरा हुआ प्रतीत हुआ, बिजली के झटके से मरे हुए हाथी के दांत संबंधित महापालिका के इंजीनियरों ने उसके दांत आरी से काटकर निकाल लिए और उन्हें गैर-सरकारी तौर पर आपस में बांट लिया।
इधर 80 टिन देशी घी आहुति के लिए हाथी के ऊपर उड़ेले गए और उधर चांडाल गिद्ध हाथी की अंत्येष्टि के निरीक्षण का निरीक्षण करने के लिए पास के पेड़ो पर उतर कर बैठ गए, अकारण ही नहीं बल्कि मृत हाथी की विशाल आंतों को भोजन के रूप में पाने की उम्मीद में, गजब का व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण का परिचय दिया लेखिका ने, जैसे आम जनता की मौत पर उनसे मिलने वाले लाभ को सरकारी विभाग की बंदरबांट से जोड़ते हुए वास्तविक लाभार्थी को भूखा, प्यासा और लाभ से वंचित ही रह जाने दिया, अक्सर करके बाथरूम में नहाते समय हम स्वयं को आईने को अपनी सुंदरता निहारने या स्वयं को दुरस्त करने के लिए ही प्रयोग करते हैं लेकिन आईने में स्वय के प्रतिबिंब को देखते हुए कोई बिरला लेखक ही स्वयं को भविष्य की प्रेतीली छाया की उपमा दे सकेगा और स्वयं पर स्वयं को अट्टहास करता हुआ पाएगा, यह भावों का वह उच्चतर स्तर हैं।
जहां आप स्वयं दृष्टा से दृश्य हो जातें हैं और चराचर जगत में स्वयं को कृष्ण की मानिंद पाते हैं और एक नई गीता का निर्माण करने लगते हैं, “मेरा घर, मेरे अन्नानास, मेरा अचार” कहने को मात्र छह शब्द लेकिन इन शब्दों के गहन भाव की परिक्रमा में न जाने कितने सूरज डूबेंगे, कितनी ही शामें विदा ले जाएंगी कितनी रातों की नींदें लगेंगी और न जाने कितने सपनो की आहुति देनी पड़ेगी, लिखने को शब्दों की वर्णमाला से शब्द चुन चुन कर लिखे जा सकते हैं लेकिन अगर आप इस पुस्तक को अब स्वयं से पढ़ेंगे तो ज्ञान के अमृतपान का आनंद ले सकेंगे लेकिन यह भी प्रतीत होता है कि अनुवादक को लेखक के अनुवाद को और बेहतर तरीके से समझते हुए हिंदी पट्टी के भाषावादियों के लिए कुशलता से लिखना तय करना होगा अन्यथा अनुवादक का अनुवाद कई जगह सुधि पाठकों के दिमाग को घनचक्कर बनाता नजर आएगा और अनुवादक एक कुशल अनुवादक न होकर ट्रेनी अनुवादक के तौर पर नजर आने लगेगा और इस से मूल लेखक की पुस्तक की गांभीर्य छवि को धक्का लगेगा तो अब इसी पुस्तक के लिखी पंक्ति ” मुझसे वादा करो कि तुम लिखोगे ? तब भी जब तुम्हारे पास कोई खबर न हो” के साथ अपनी लेखनी को इस लेख पर विराम देता हूं।