सुधीर निगम, वरिष्ठ पत्रकार

प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस, अब पूरी तरह चुनावी मोड पर आ चुकी हैं। अपनी-अपनी रणनीति पर काम फुल फोर्स में शुरू हो चुका है। दोनों ही दलों का फोकस कठिन सीटों पर ज्यादा है। दोनों ही ऐसी सीटों पर ज्यादा ध्यान दे रही है, जहां उनका प्रदर्शन लगातार खराब रहा है।
भाजपा ने समय की नजाकत को पहचानते हुए, अपने पुराने दिग्गजों को मैदान में उतार दिया है। पिछले काफी समय से जिन दिग्गजों की कोई पूछ परख नहीं थी, अचानक वो पार्टी के लिए अहम हो गए। इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्षों सहित अपने-अपने क्षेत्र के कद्दावर नेता शामिल हैं। दरअसल पिछले कुछ वर्षों में भाजपा में बड़ा बदलाव आया है, जिसके कारण पार्टी के कई पुराने और समर्पित कार्यकर्ता ठगा सा महसूस कर रहे हैं। बाहर से आए नेता मलाई खा रहे हैं और पूरी जिंदगी पार्टी के लिए तन, मन और धन से जुटे कार्यकर्ता अब भी दरी बिछाने का काम ही कर रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं के दम पर ही भाजपा ने लोकसभा में मात्र दो सीटों से लेकर अब तक का सफर पूरा किया है। अगर ये कार्यकर्ता घर बैठ गए तो चुनावों में क्या होगा, ये आसानी से समझा जा सकता है। यही कारण है कि भाजपा ने अपने पुराने दिग्गजों की सुध ली है। अब देखते हैं कि ये दिग्गज पार्टी को उसके मकसद में कितना कामयाब बना पाते हैं। हालांकि भाजपा के कार्यकर्ता आज भी कितने ही नाराज हों, लेकिन ऐन मौके पर पार्टी का साथ दे ही देते हैं। यही हाल उनके अधिकतर पुराने भुला दिए गए नेताओं का है। भले उन्हें बिसरा दिया जाए, लेकिन जब पार्टी उनकी और देखती है, वो भी पिघल जाते हैं। और यही भाजपा की सबसे बड़ी ताकत है।
कांग्रेस के चुनावी अभियान की कमान प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह संभाले हुए हैं। पिछली बार की तरह दिग्विजय सिंह ही रूठे नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने में लगे हैं। भले कोई कुछ भी कहे, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सन 2018 के चुनाव में कांग्रेस की जीत में सबसे बड़ा रोल सिंह ने ही निभाया था। कांग्रेस अगर इस बार भी चुनाव जीतती है, तो उसमें भी सिंह का किरदार सबसे अहम होगा। क्योंकि, सिर्फ वही एक नेता हैं, जिनका पूरे प्रदेश में तगड़ा नेटवर्क है। जैसे भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की स्वीकार्यता पूरे प्रदेश में है, वैसी किसी और नेता की नहीं। कांग्रेस भी अपने पुराने चावलों पर भरोसा कर रही है। उसके भी पुराने प्रदेश अध्यक्ष अलग-अलग क्षेत्रों में कमान संभालेंगे। कांग्रेस ने खासतौर पर कुछ मंत्रियों को घेरने की तैयारी चालू की है। इसमें नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ भाजपा के ही एक नेता पर नजर है। गोविंद सिंह राजपूत, महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रभुराम चौधरी जैसे उन मंत्रियों को कांग्रेस किसी भी कीमत पर हराना चाहेगी, जिन्होंने वर्ष 2020 में पाला बदला था। इसके लिए अंदरूनी तौर पर काम शुरू है।
खैर, रणनीति बन रही हैं और कुछ बिगड़ रही हैं। भाजपा-कांग्रेस में अंतिम दौर तक रस्साकशी चलेगी। अंततः जीत उसी की होगी, जो जनता के नजदीक जाकर अपनी बात उसे समझा पाएगा।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER