राकेश अचल

आज का विषय न भाजपा है और न कांग्रेस.न नेहरू हैं और न मोदी जी.आज का विषय है पूरी दुनिया,जो लगातार पागलपन की और बढ़ रही है .और इस पागलपन की जड़ में है सत्ता की भूख ,वजूद बचाये रखने की मजबूरी .इसी के चलते यूक्रेन के ऊपर रूस ने युद्ध थोपा जो पिछले 53 दिन से जारी है और इसी के चलते पाकिस्तान ने अपने पड़ौसी अफगानिस्तान के ऊपर एयर स्ट्राइक कर 47 लोगों को मार डाला .

पागलपन का दौर दुनिया के हर हिस्से में कहीं न कहीं ,किसी न किसी रूप में नजर आ जाएगा . हमारे अपने मुल्क में ये पागलपन अब साम्प्रदायिकता के रूप में तेजी से उभर रहा है .साम्प्रदायिकता का जहर आजादी की पिचहत्तर साल में खड़ी की गयी सदभाव की फसल को नष्ट करने पर आमादा है .देश के अलग-अलग हिस्सों में साम्प्रदायिक दंगे होने लगे हैं और इन दंगों के लिए एक ख़ास धर्म के लोगों को आरोपित किया जा रहा है .लेकिन कोई है ही नहीं लगाम लगाने वाला.सब स्वयंभू हैं फिर चाहे रूस के राष्ट्रपति पुतिन हों या विश्वगुरु भारत के पंत प्रधान माननीय नरेंद्र मोदी जी .सब की अपनी-अपनी शैली है .

पाकिस्तान में सत्ता परीवर्तन होते ही जनता में अपना वजूद दिखाने के लिए भारत की नकल करते हुए पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के खोस्त और कुनार प्रांतों पर हवाई हमले किए हैं. पाकिस्तान के हवाई हमले में अफगानिस्तान के 47 से ज्यादा नागरिकों की मौत हो गई . मरने वालों में बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं. पाकिस्तानी सेना ने ये हमला पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में दो आतंकी हमलों के बाद किया है. इस हमले मे पाकिस्तानी सेना के 8 जवान मारे गए थे.अफगानिस्तान में स्थानीय अधिकारियों ने पुष्टि की कि पाकिस्तानी विमानों ने शुक्रवार की रात खोस्त प्रांत पर हवाई हमले किए. इस हमले में बच्चे और महिलाओं समेत 47 लोगों की मौत हुई है.

जाहिर है कि पाकिस्तान की इस कार्रवाई से एक बार फिर माहौल गर्माएगा .अफगानिस्तान और पाकिस्तान हमारे पड़ौसी मुल्क हैं,इन दोनों के बीच तकरार का फौरी असर हमारे ऊपर भी पड़ने वाला है .हमारे पड़ौस में पहले से श्रीलंका में अशांति है. वहां अराजकता के चलते बड़ी संख्या में शरणार्थी भारत आ रहे हैं .वर्मा में अशांति के चलते पहले ही भारत शरणार्थियों की समस्या से दो-चार हो चुका है .ये तब है जब हमारे अपने मुल्क में एक बार फिर से तेजी से साम्प्रदायिकता ने सर उठाया है. मध्य्प्रदेश के खरगोन के अलावा बिहार,गुजरात और बंगाल के बाद अब देश की राजधानी में साम्प्रदायिक हिंसा हुई है .

देश में साम्प्रदायिक हिंसा रातों-रात पैदा नहीं हुई. इसके लिए हमेशा एक अलग तरह की सियासत जिम्मेदार रही है. इस बार भी शायद यही सब इस अशांति की जड़ में हो .जरा गौर से सोचिये तो देश में अचानक धार्मिक उन्माद की लहर सी आ गयी है. देश हिंदुत्व के ज्वर से पीड़ित है .सबको धार्मिक जुलूस निकालने की याद आ गयी है.यहां तक कि अल्पसंख्यक कहे जाने वाले जैन समाज में भी जुलूसप्रियता बढ़ी है. डॉ आम्बेडकर के अनुयायी हों या किसी वीरांगना के समर्थक सब जुलूस निकालकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं .दुर्भाग्य है कि इस होड़ में ही साम्प्रदायिक शक्तियां अपना वजूद दिखने की हिमाकत कर रहीं हैं .
भारत में साम्प्रदायिकता का ठीकरा हमेशा से मुस्लिमों के सर फोड़ा जाता रहा है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक साम्प्रदायिकता के मूल में मुसलमान माने जाते हैं .और इसमें सच्चाई भी हो सकती है .इस समाज में उग्रता और असुरक्षा का भाव किसी बाहर वाले ने नहीं हमारी सियासत और हमारे सिस्टम ने पैदा किया है और अब तो समाज तथा सरकार की अपनी मान्यता है कि मुस्लिम बच्चे तो पैदा ही हाथ में पत्थर लेकर होते हैं .क्या दुर्भाग्य है देश का .

दिल्ली के दंगों में जो 22 लोग गिरफ्तार किये गए वे सब एक ही जाती-बिरादरी के हैं.मध्यप्रदेश के खरगोन में जितने कथित दंगाइयों के घर जमींदोज किये गए वे सब एक ही जाति-बिरादरी के हैं ,क्योंकि हमारी मजबूत धारणा है कि दंगा करना तो केवल मुसलमानों को ही आता है .अब स्थिति ये है कि देश के मुसलमानों को इसे गलत साबित करने के लिए सद्भाव की खेती खुद करना होगी अन्यथा उनका सामान्य जीवन भी असमान्य हो जाएगा .मुझे आशंका है कि देश के मैदानी राज्यों में आने वाले दिनों में मुसलमानों की स्थिति कश्मीर के पंडितों जैसी न हो जाये ?

दुनिया से ये पागलपन आखिर कैसे खत्म होगा ?जाति,धर्म और रंग के आधार पर लड़ी जा रहीं छोटी-बड़ी लड़ाइयां कब तीसरे विश्व युद्ध की आग में दुनिया को झोंक देंगी कोई नहीं जानता ,अगर जानता होता तो तमाम अंतर्राष्ट्रीय मंच मिलकर रूस-यूक्रेन युद्ध को अब तक रोक चुके होते .पाकिस्तान अपने पड़ौसी अफगानिस्तान पर हमला नहीं करता ,भारत में साम्प्रदायिक दंगे नहीं होते रूस-यूक्रेन युद्ध में पिछले 52 दिनों में 25 हजार से अधिक नागरिक और सैनिक मारे जा चुके हैं ,लेकिन दुनिया को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा क्योंकि दुनिया लगातार जड़ होती जा रही है. असंवेदनशील होती जा रही है .परहित का धर्म भुला चुकी है दुनिया .सब अपने -अपने पांवों में फटी बिमाइयाँ ठीक करने में लगे हैं .
लगातार पागल होती जा रही दुनिया में अभी भी बहुत कुछ बाक़ी है जो अच्छा है ,हमें मिलजुलकर इस अच्छे को और अच्छा करना है .बुराई पर अच्छाई की विजय हमेशा से होती आयी है .आप तय मानिये कि बुराई हारेगी ,फिर चाहे वो पाकिस्तान में हो ,अफगानिस्तान में हो ,रूस में हो ,यूक्रेन में हो ,श्रीलंका में हो या दुनिया के ऐसे ही किसी दूसरे हिस्से में हो .जरा सी हिकमत अमली से सब कुछ ठीक हो सकता है और होगा .शर्त सिर्फ इतनी है कि हम समूची मनुष्यता के बारे में सोचें,करें केवल हिन्दू-मुसलमान जैसा करने से बात बनने के बजाय और बिगड़ेगी .दुनिया को जान लेना चाहिए कि-
रोजी-रोटी की,ईमान की दुश्मन है
ये दाढ़ी,ये टोपी जान की दुश्मन है
कुल मिलाकर समाज के देश के ,मनुष्यता के दुश्मनों को पहचानिये ,उनके खिलाफ एकजुट होइए ,अभी इस धरती पर अमन-चैन कायम रह पायेगा .

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER