डा पंडित गणेश शर्मा स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य सीहोर
नागपंचमी का त्योहार सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। डा पंडित गणेश शर्मा स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य के अनुसार मंगलवार के दिन यह पर्व मनाया जाएगा। नागपंचमी पर नाग देवता की पूजा होती है। शिवजी के गले में स्थित नाग का नाम वासुकी है।
पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। इस दिन अष्ट नागों की पूजा प्रधान रूप से की जाती है। अष्टनागों के नाम है- अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख। इसकी के साथ नागों की देवी वासुकी की बहन मनसादेवी और उनके पुत्र आस्तिक मुनि की पूजा भी करते हैं। मनसा देवी और आस्तिक के साथ ही माता कद्रू, बलराम पत्नी रेवती, बलराम माता रोहिणी और सर्पो की माता सुरसा की वंदना भी करें।
इसी दिन काल सर्प योग की शांति भी विधि विधान से कराना चाइए ब नाग देवता को बंधन से मुक्त कराने से बहुत शुभ फलों की प्राप्ति होती है
इस दिन व्रत रख रहे हैं तो चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें तथा पंचमी के दिन उपवास करके शाम को अन्न ग्रहण किया जाता है। यदि दूसरे दिन पंचमी तीन मुहूर्त से कम हो और पहले दिन तीन मुहूर्त से कम रहने वाली चतुर्थी से वह युक्त हो तो पहले ही दिन यह व्रत किया जाता है। और यदि पहले दिन पंचमी तीन मुहूर्त से अधिक रहने वाली चतुर्थी से युक्त हो तो दूसरे दिन दो मुहूर्त तक रहने वाली पंचमी में भी यह व्रत किया जाता है। यानी चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें तथा पंचमी लगने के बाद पंचमी के दिन उपवास करके शाम को भोजन करना चाहिए। उज्जैन में आज के दिन नाग देवता के मंदिर पर साल में एक बार दर्शन होते है
नाग पंचमी पर नागों की पूजा ।
नित्यकर्म से निवृत्त होकर नाग पूजा के स्थान को साफ करें।
. पूजा स्थान पर उचित दिशा में लकड़ी का एक पाट या चौकी लगाएं और उस पर लाल कपड़ा बिछा दें।
अब उस पाट पर नाग का चित्र, मिट्टी की मूर्ति या चांकी के नाग को विराजमान करें।
अब चित्र या मूर्ति पर गंगाजल छिड़कर उन्हें स्नान कराएं और उनको नमस्कार करके उनका आह्वान करें।
फिर हल्दी, रोली (लाल सिंदूर), चावल और फूल लेकर नाग देवता को अर्पित करें। उनकी पंचोपचार पूजा करें।
उसके बाद कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर नाग मूर्ति को अर्पित करते हैं।
पूजन करने के बाद सर्प देवता की आरती उतारी जाती है।
अंत में नागपंचमी की कथा अवश्य सुनते हैं।
इसी तरह से संध्या को भी पूजा आरती करें।
पूजा आरती के बाद दान आदि देकर व्रत का पारण कर सकते हैं।