TIO, नई दिल्ली।
भाजपा को अपने नए अध्यक्ष के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है और पार्टी फिलहाल किसी को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है। दरअसल, वर्तमान पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के केंद्र में मंत्री बनने के बाद यह तो तय माना जा रहा है कि पार्टी में अध्यक्ष का चेहरा बदलेगा, लेकिन यह तत्काल नहीं होगा। अध्यक्ष पद पर नड्डा का कार्यकाल 30 जून को खत्म हो रहा है।
पार्टी नए अध्यक्ष के चयन से पहले नए सदस्यता अभियान की शुरूआत करेगी और उसके बाद राज्यों में संगठन के चुनाव कराएगी। राजनीतिक दलों के अध्यक्ष के चुनाव के लिए तय नियमों के अनुसार अध्यक्ष के चयन से पहले कम से कम 50 फीसदी राज्यों में पार्टी संगठन का चुनाव पूरा होना जरूरी है। ऐसे में या तो नड्डा का कार्यकाल बढ़ाया जाएगा या किसी नेता को फिलहाल कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर काम चलाया जाएगा।
ऐसा करने के लिए भाजपा ने हाल ही में अपने संविधान में संशोधन कर पार्टी के शीर्ष निकाय संसदीय बोर्ड को आपातकालीन स्थिति में अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने सहित अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार दिया है। चुनाव नतीजे आने के बाद नड्डा के मंत्री बनने पर नए अध्यक्ष पर कयासों का दौर शुरू हो गया है। इस पद के लिए मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल के नाम चल रहे थे। हालांकि इन तीनों को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के बाद अब पार्टी महासचिव विनोद तावड़े, सुनील बंसल या फिर नरेंद्र सिंह तोमर को इस पद पर बैठाने के कयास लगाए जा रहे हैं।
कई राज्यों के अध्यक्ष को नया दायित्व
पार्टी को कई राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्ष भी तय करने हैं। बिहार में सम्राट चौधरी डिप्टी सीएम के साथ अध्यक्ष पद संभाल रहे हैं। प. बंगाल के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार केंद्र में मंत्री तो हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी राज्य के सीएम बन गए हैं। पार्टी को राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में सामाजिक समीकरण साधने के लिए नए अध्यक्ष की जरूरत है।
कई चुनौतियों का करना होगा सामना
आम चुनाव में यूपी सहित कई राज्यों में औसत प्रदर्शन के कारण भाजपा बहुमत से चूक गई है। पार्टी के नए अध्यक्ष को ऐसे राज्यों में संगठन को चुस्त दुरुस्त करना होगा। इसके अलावा इसी साल झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल की शुरूआत में ही दिल्ली में भी चुनाव होने हैं। इन राज्यों के परिणाम सीधे तौर पर पार्टी और मोदी सरकार की संभावनाओं पर असर डालेंगे।
नए सिरे से करना होगा बूथ प्रबंधन
बीते दस साल में बूथ प्रबंधन भाजपा की बड़ी ताकत रही है। हालांकि इस आम चुनाव के नतीजे ने साबित किया है कि पार्टी का बूथ प्रबंधन सबसे कमजोर कड़ी साबित हुआ है। इसके अलावा संविधान और आरक्षण खत्म होने का भ्रम अब भी वंचित वर्ग में कायम है। जाहिर तौर पर इन चुनौतियों का नए अध्यक्ष को पद संभालते ही सामना करना होगा।