राकेश अचल

रतौंधी जब तेजी से फैलती है तो सब कुछ धुंधला दिखने लगता है.भाजपा की बर्खास्तशुदा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में कुवैत में प्रदर्शन करने वाले प्रवासी भारतीय अब मुश्किल में पड़ गए हैं ,उन्हें कुवैत से बाहर किया जा रहा है . सवाल ये है कि क्या अब भारत सरकार अपने नागरिकों को इस संकट से मुक्ति दिला पाएगी ?

क्रिया की प्रतिक्रिया होती है .भारत में अल्पसंख्यकों की मुठ्ठी भर कूढ़मगज भीड़ ने अलग-अलग शहरों में जुमे की नमाज के बाद माहौल बिगाड़ने की कोशिश की ,लेकिन उनके खिलाफ बुलडोजर चलने के अलावा और कोई कार्रवाई नहीं हुई ,क्योंकि भारत में प्रदर्शन करने मि मुमानियत नहीं है लेकिन भावावेशमें कुवैत में रहने वाले भारतीयों ने नूपुर शर्मा के समर्थन में प्रदर्शन कर आफत मोल ले ली .कुवैत सरकार सभी प्रदर्शनकारियों को चिन्हित कर उन्हें देशनिकाला देने की तैयारी कर रही है ,प्रदर्शनकारियों की संख्या भले ही कम है लेकिन उनके खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई एक खतरनाक भविष्य का संकेत दे रही है .

दुनिया के सबसे पावरफुल माने या कहे जाने वाले हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी क्या कुवैत से भगाये जा रहे नूपुर समर्थकों की किसी तरह की मदद कर पाएंगे.? क्या उनका देशनिकाला टाला जा सकेगा या उन्हें भारत आने पर रोजगार की गारंटी दी जाएगी ?सवाल ये है कि जिस तरीके से नूपुर शर्मा के बयान को लेकर इस्लामिक देशों ने पिछले दिनों प्रतिक्रिया जताई है उसे लेकर क्या भारत सरकार ने अपनी रणनीति बनाई है ?भारत सरकार इस मुद्दे पर लगातार मौन साधे बैठी है .इससे लगता है कि वो अभी और अनहोनी की प्रतीक्षा कर रही है .

देश में होने वाली इस तरह की तमाम अप्रिय और गैर जरूरी घटनाओं को लेकर भारत सरकार का मौन ही बहुत कुछ कहता है.कभी -कभी तो लगता है कि सरकार जानबूझकर ही ये सब करा रही है .सरकार ने नूपुर के खिलाफ मामा दर्ज किया लेकिन उसकी गिरफ्तारी नहीं होने दी उलटे उसे अतिरिक्त सूरकः मुहैया करा दी .यदि नूपुर को दूसरे आरोपियों की तरह दाखिल जेल कर दिया जाता तो शायद न कोई प्रतिक्रिया होती है और न कोई बबाल .
इन दिनों देश में और देश को लेकर देश के बाहर जो कुछ हो रहा है वो सब दुर्भाग्यपूर्ण है ,किन्तु भारत की सरकार ये सब नहीं मानती .यदि मानती होती तो अब तक कुछ न कुछ गंभीर कदम उठाती .सरकार की चुप्पी ने ही आग में घी डालने का काम किया है .मान लीजिये जैसा कुवैत में भारतीयों के साथ हो रहा है यदि वैसा ही दूसरे इस्लामिक मुल्क करने लगें तो उन देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों का क्या होगा ? क्या जरा सी बात को लेकर सबके सब हिन्दुस्तानी खदेड़ दिए जायेंगे .कम से कम पिछले पचहत्तर साल में तो इस तरह की कोई घटना मुझे याद नहीं आती .
समाचार एजेंसी ‘अल राय’ की रिपोर्ट के अनुसार, जासूस नूपुर शर्मा के समर्थकों को गिरफ्तार करने और निर्वासन केंद्र को सौंपने के काम में लग गए हैं। यहीं से इन प्रवासियों को उनके देशों में निर्वासित किया जाएगा। ऐसे लोगों को कुवैत में फिर से प्रवेश करने पर प्रतिबंध भी लगाया जा रहा है। प्रशासन ने अपने आदेश में कहा कि कुवैत में सभी प्रवासियों को कुवैती कानूनों का सम्मान करना चाहिए और किसी भी प्रकार के प्रदर्शनों में भाग नहीं लेना चाहिए।

क्या ये आवश्यक नहीं है कि भारत सरकार दुनिया भर में मौजूद हिन्दुस्तानियों से कहे कि वे प्रवासी होने के कारण ऐसी किसी गतिविधि में शामिल न हों .भारत सरकार कुवैत सरकार से कहे कि वो प्रदर्शन में शामिल लोगों को न खदेड़े .कुवैत से जो शरुवात हो रही है वो दूसरे इस्लामिक देशों में भी फ़ैल सकती है .हमें इसे मुस्तैदी से रोकना चाहिए .दुनिया के बाहर कम ऐसे देश हैं जिनके नागरिकों को इस तरह की अपमानजनक स्थितियों का सामना कर रहे हैं .
बहुत साफ़ है कि जैसे कुवैत प्रवासी भारतीयों को देश निकाला दे रही है उसी तर्ज पर भारतीय मुसलमानों को किसी अन्य इस्लामिक देश के लिए रवाना नहीं किया सकता .उन्हें भारत में ही रहना है. भारत-पाक विभाजन के समय हिंदुस्तान में रुके मुसलमान अब पाकिस्तानी नहीं हैं ,उन्हें अपना मानना ही पडेगा ,नहीं मानेंगे तो पछतायेंगे .भारत में रह रहे मुसलमानों को भी ये मानना ही पडेगा कि वे हिन्दुस्तानी हैं और उन्हें समर्थन ,संरक्षण भारत में ही सविधान से मिलेगा किसी बाहरी देश से नहीं .भारत की मुख्यधारा में रहे बिना अल्पसंख्यकों का कल्याण नामुमकिन है .

आपको पता होना छाइये कि जिस तरह से भारत में सरकार मुसलमानों के प्रति अचानक अपना रवैया बदल बैठी है उसी तरह कुवैत सरकार ने भी भारतीयों के प्रति अपना नजरिया बदल दिया है .प्रवासियों को लेकर कुवैत में तैयार हो रहे क़ानून ने खाड़ी देश में रह रहे भारतीयों के मन में उन ‘चिंताओं को फिर से जगा दिया है’ जब दो साल पहले नियमों में बदलाव के चलते सैकड़ों भारतीय इंजीनियरों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था.अंग्रेज़ी अख़बार ‘अरब न्यूज़’ के मुताबिक़ कुवैत की नेशनल एसेंबली की क़ानूनी समीति ने प्रवासियों पर तैयार हो रहे एक बिल के प्रावधान को विधिसम्मत माना है.
ख़बरों के मुताबिक़ मंज़ूरी के लिए इस प्रस्ताव को दूसरी समितियों के पास भेजा जाने वाला है. इस क़ानून के मसौदे में कहा गया है कि कुवैत में रहने वाले भारतीयों की तादाद को देश की कुल आबादी के 15 फ़ीसद तक सीमित किया जाना चाहिए.समझा जाता है कि वहां रहने वाले तक़रीबन 10 लाख प्रवासी भारतीयों में से आठ या साढ़े आठ लाख लोगों को बिल के पास होने की सूरत में वापस लौटना पड़ सकता है.

दुर्भाग्य ये भी है कि देश में मुसलमानों के प्रति घृणा की नयी फसल आजादी के अमृतकाल में रोपी जा रही है. उन्हें किनारे करने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है. उपद्रवियों के खिलाफ विधिक कार्रवाई के बजाय बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल किया जा रहा .सत्तारूढ़ दल और उसके समर्थकों को न जाने ये लगने लगा है कि भारतीय मुसलमान तो पाकिस्तानी हैं और उन्हें काबू में रखने के लिए बुलडोजर संहिता की सख्त जरूरत है .बुलडोजर मामले को सुल्ताने के बजाय उसे और गंभीर बना रहे हैं. अल्पसंख्यकों के मन में भी ये धारणा तेजी से मजबूत हो रही है कि आने वाले दिन खतरनाक हैं .

एक,दो तीन अल्पसख्यकों को आप देशद्रोही मान सकते हैं. वे आतंकवादी भी हो सकते हैं लेकिन किसी देश की 18 करोड़ से अधिक की आबादी न देशद्रोही हो सकती है और न आतंकी .इस आबादी के लिए अब अलग देश बनाने की बात सोचना भी मूर्खता है अलग देश तो छोड़िये अलग सूबा बनाना भी नामुनकिन है .हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले मुमकिन है कि अपनी जगह सही हों किन्तु हकीकत ये है कि भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच बड़ी संख्या में रोटी-बेटी के रिश्ते भी हैं .खुद सत्तारूढ़ दल में अनेक ऐसे परिवार ऐसे हैं .उन्हें बार-बार चिन्हित करने की कोई आवश्यकता नहीं है .
अब वक्त आ चुका है जब भारत सरकार देश और देश के बाहर रह रहे भारतीय आबादी के हितों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम उठाये .यदि देर हो गयी तो देश को गंभीर नतीजे भुगतना पड़ सकते हैं .देश को तोड़िये मत,देश को जोड़िये तभी बात बन सकेगी .

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER