सुधीर निगम

मप्र के विधानसभा चुनाव के परिणामों ने सभी के साथ भाजपा को भी चौंकाया है। भाजपा को भी ऐसी बम्पर जीत की उम्मीद नहीं थी और कांग्रेस तो हतप्रभ है, वो तो सरकार बनाने का हसीन सपना देख रही थी। लाडली बहना, शिवराज की हाड़तोड़ मेहनत और मोदी मैजिक ने वो कर दिखाया, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। परिणामों की समीक्षा से एक बात स्पष्ट है कि एसी रूम में बैठकर मैदान की राजनीति के दिन अब लद गए हैं। राजनीति 24×7 का फुलटाइम काम है, सिर्फ चुनाव का पार्टटाइम काम नहीं। अब राजनीति ‘चलो-चलो’ से नहीं, ‘मोहि कहाँ विश्राम’ से ही सफल होगी। जो विश्राम करने जाएगा, जनता उसे लंबे विश्राम पर भेज देगी।

एक-दो महीने पहले भी किसी से पूछा जाता कि कौन सरकार बना रहा है, तो जवाब शायद कांग्रेस ही होता, यहाँ तक कि भाजपा के कार्यकर्ता तक कहते थे इस बार सरकार बनाना मुश्किल है। लेकिन, जमीनी स्तर पर काम करके भाजपा ने हारी बाजी को कैसे पलटा है, ये राजनीति के विद्यार्थियों के लिए शोध का विषय होना चाहिए। मामाजी जानते हैं कि जनता की नब्ज कहाँ है। सही समय पर उसे कैसे ट्रिगर किया जाता है। चुनाव के ठीक पहले लाडली बहना का ब्रह्मास्त्र इसका उदाहरण है। महिलाओं की एकतरफा वोटिंग ने भाजपा की राह आसान कर दी। ऊपर से ‘मप्र के मन में मोदी’ जैसे नारे ने, मतदाताओं के मन से मोदी मैजिक को जोड़ दिया। पहली बार देखा गया कि विधानसभा चुनाव में बहुत से वोटर ने स्थानीय के बजाय राष्ट्रीय मुद्दे पर वोटिंग की।

इन सबके बीच शिवराज सिंह चौहान की मेहनत को अनदेखा नहीं किया जा सकता। बिन रुके, बिना थके 24 घंटों उन्होंने काम किया। उनकी जो सहज-सरल छवि बनी हुई है, उसे उन्होंने लगातार बरकरार रखा है। लगभग 18 साल मुख्यमंत्री रहने के बावजूद अहंकार उन्हें छू भी नहीं पाया है। बड़े-बड़े विश्लेषक वर्षों से यह कहकर उन्हें खारिज करने की कोशिश करते हैं कि लोग उनका चेहरा देख-देख कर उकता गए हैं। वहीं मामा बार-बार उन विश्लेषकों को उनकी औकात बता देते हैं। उन्होंने कहा भी कि मैं फीनिक्स हूँ और उसे साबित भी कर रहे हैं। आप उन्हें खारिज करो, वो दोगुनी ताकत से उभर कर आते हैं।

मामाजी की राजनीति दूसरों से अलग है। अब कौन बनेगा मुख्यमंत्री की कवायद चल रही है। सारे दावेदार दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं और मामा फिर मैदान में उतर गए हैं। चुनाव जीतने के बाद नेता थोड़ा रिलेक्स हो जाते हैं, लेकिन मामाजी अगले ही दिन रैनबसेरा पहुंच जाते हैं, फिर आंगनबाड़ी। जब सब नेता दिल्ली परिक्रमा में हैं, वो छिंदवाड़ा का रुख कर लेते हैं। कारण बताते हैं कि वहाँ सात विधानसभा सीट हारे हैं और लोकसभा में भी 29 में से एकमात्र वही सीट है, जहाँ भाजपा हारी है। इस सीट को भी अगले लोकसभा चुनाव में हमें जीतना है। दरअसल वो दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद की कोई लालसा नहीं है, वो सिर्फ मोदी जी के हाथ मजबूत करना चाहते हैं। हालांकि इसके पीछे का संदेश स्प्ष्ट है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER