राकेश अचल
तीसों दिन मन से ही लिखा जाये ये आवश्यक नहीं है. आज इसीलिए बेमन से लिख रहा हूँ. रोजाना सियासत पर लिखना लगभग उबाऊ सा है लेकिन घटनाक्रम ही कुछ ऐसा होता है कि आप उसकी अनदेखी नहीं कर सकते.आप आँखें बंद कर सकते हैं लेकिन कानों में उँगलियाँ नहीं डाले रख सकते .बहरहाल आज लिखने के लिए सियासत भी है और अदालत भी.अदालत का ऊँट अब पहाड़ कि नीचे खड़ा है . सबसे पहले अदालत की बात करते हैं .
देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पिछले दिनों भाजपा की बर्खास्तशुदा प्रवक्ता सुश्री नूपुर शर्मा के बारे में सोशल मीडिया पर की गयी बेलगाम टिप्पड़ियों ने सुप्रीम कोर्ट को भी आहत किया है. मुझे तो लगता है आहत ही नहीं किया बल्कि आतंकित भी किया है ,और इसी वजह से टिप्पणियां करने वाले माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेबी पारदीवालाको सामने आना पड़ा उन्होंने देश को आगाह किया कि न्यायाधीशों पर उनके निर्णयों के लिए व्यक्तिगत हमले एक “खतरनाक परिदृश्य” की ओर ले जाएंगे।
आपको याद होगा कि शीर्ष अदालत की टिप्पणियों को लेकर उसे ‘ कोठा’ और ‘शाखा’ तक कहा गया. टिप्पणी करने वाले न्यायाधीशों के निजी जीवन पर आक्षेप करने की कोशिश की गयी .कहा गया कि यदि कोर्ट में साहस था तो माननीयों को अपनी टिप्पणियां फैसले के रूप में सामने लाना चाहिए थीं .इस विषय पर मैंने पिछले दिनों अपनी बात रखी थी कि आप किसी अदालत के फैसले से असहमत और अप्रसन्न हो सकते हैं लेकिन आपको उन पर अमर्यादित टिप्पणियां करने का हक नहीं है .अब शीर्ष अदालत को भी यही सब कहना पड़ रहा है क्योंकि ऊँट पहाड़ के नीचे खड़ा है .
देर से ही सही लेकिन न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला ने अपना मुंह खोला और सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों पर ह्यव्यक्तिगत, एजेंडा संचालित हमलोंह्ण के लिए ह्यलक्ष्मण रेखाह्ण पार करने की प्रवृत्ति को खतरनाक करार दिया। पारदीवाला ने कहा कि देश में संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को रेगुलेट किया जाना जरूरी है।मीडिया को रेगुलेट करने की बात करना सेंसरशिप लगाने की सलाह देना नहीं है. कोर्ट ये काम खुद भी कर सकती है किन्तु माननीय ने इस काम को संसद के जरिये करने की बात कही है .यानि न्यायपालिका ने विधायिका का सम्मान किया है . शीर्ष अदालत ने कहा था कि – ‘नूपुर की ह्यबेलगाम जुबानह्ण ने ह्यपूरे देश को आग में झोंक दिया है और उन्हें माफी मांगनी चाहिए।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ह्यह्यभारत को परिपक्व और सुविज्ञ लोकतंत्र के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, ऐसे में सोशल और डिजिटल मीडिया का पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक मुद्दों के राजनीतिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।ह्णह्ण उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया द्वारा किसी मामले का ट्रायल न्याय व्यवस्था में अनुचित हस्तक्षेप है।यकीनन यही हस्तक्षेप लोकतंत्र के सभी स्तम्भों के कामकाज में भी रोज हो रहा है. कार्यपालिका विधायका के इशारों पर नाचती ही तो न्यायपालिका भी येनकेन ऐसी ही कोशिशें जब तब करती है .एक-दुसरे को डुगडुगी बजाकर इशारों पर नचाने की कोशिश ही लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है .अच्छी बात ये है कि अब इस खतरे को नीचे से लेकर ऊपर तक महसूस किया जाने लगा है .अब देखना ये है कि क्या सरकार माननीय की बातों को गंभीरता से लेती है या अनसुनी करती है ?
अब चलिए हैदराबाद की तरफ जहाँ भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारणी में एक अलग तरह की राजनीति करने के संकेत दिए हैं. यहां अपनी पार्टी को सम्बोधित करते हुए माननीय प्रधानमंत्री ने न सिर्फ अपने गले से पार्टी का गमछा उतार फेंका बल्कि पार्टी से भी अपना स्वरूप बदलने का आव्हान किया.प्रधानमंत्री कि गले में अब नीला गमछा दिखाई दिया . उन्होंने कहा कि भाजपा को अब हिंदुओं के साथ अन्य समुदायों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने ऐसे समुदायों पर ध्यान देने की बात कही, जो शोषित है।मोदी ने भाजपा नेतृत्व को लंबे समय तक शासन करने वाले अन्य दलों का मजाक उड़ाने से भी मना किया।
मोदी जी कि इशारों से साफ़ जाहिर है कि वे समझ चुके हैं की भविष्य की राजनीति हिन्दू-हिन्दू का राग अलापने से ज्यादा दिन तक चलने वाली नहीं है .वे समझ चुके हैं कि कांग्रेस की आलोचना सुन-सुनकर देश को अजीर्ण होने लगा है .इसलिए बेहतर है कि दोनों मुद्दों पर पार्टी अपना रंग-ढंग बदले .भाजपा कि लिए ऐसा करना कोई कठिन काम नहीं है,क्योंकि रूप बदलने में पार्टी का नेतृत्व खुद माहिर है .भाजपा की छटपटाहट ये है कि देश का चक्रवर्ती बनने कि लिए उसे भारत कि हर हिस्से में सत्ता चाहिए जो दुर्भाग्य से दक्षिण में उसके पास नहीं है .दक्षिण में क्षेत्रीय दलों कि तिलिस्म को तोड़ने कि लिए भाजपा का ‘ डबल इंजिन की सरकार ‘ का नारा भी बहुत ज्यादा प्रभावी साबित नहीं हुआ है .
पर उपदेश कुशल बहुतेरे की तर्ज पर प्रधानमंत्री जी की ताजा सलाहों को सुनकर आप हंस सकते हैं क्योंकि वे अब जो करने को कह रहे हैं उस पर उन्होंने खुद कभी अमल नहीं किया .प्रधानमंत्री ने भाजपा नेतृत्व को लंबे समय तक देश पर शासन करने वाली पार्टियों का मजाक बनाने से भी बचने के लिए कहा है।जबकि सबसे ज्यादा मजाक उन्होंने खुद बनाया . मोदी ने कहा कि इन पार्टियों ने लंबे समय तक शासन तो किया लेकिन उन्होंने गलतियां कीं और अब तेजी से पीछे जा रहे हैं। हमें इससे सबक सीखना है और उनके जैसी गलतियां नहीं दोहरानी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत परिवारवादी राजनीति और परिवारवादी पार्टियों से ऊब चुका है।हैदराबाद में ये बातें कहने कि पीछे कोई मजबूरी है या नहीं ये कहना तो कठिन है लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा अब केसीआर के तेलंगाना के साथ ही तमिलनाडु,आंध्र और केरल जैसे बड़े राज्यों में भी चुनावी जमीन को दलदली बनाकर कमल खिलाना चाहती है .
भाजपा की प्रबल इच्छाशक्ति को देखते हुए उसकी रणनीति पर नजर रखी जाना चाहिए .भाजपा बंगाल नहीं जीत पायी.भाजपा केरल नहीं जीत पायी. भाजपा के लिए तमिलनाडु अभेद्य है .आंध्र उसकी चाहतों में बसा है .बामुश्किल कर्नाटक में उसका प्रपंच कामयाब हुआ था देश के 29 में से 20 राज्यों में खुद या सहयोगियों के जरिये सत्ता में बैठी भाजपा के लिए जितना महत्वपूर्ण राजस्थान और छत्तीसग़ढ है उतना ही अब तेलंगाना भी है और तमिलनाडु भी .दक्षिण के ये सभी राज्य अपनी ताकत पर केंद्र को चुनौती देते रहे हैं .अतीत में इन राज्यों में कांग्रेस भी एक ताकत थी ,लेकिन अब परिदृश्य बदला हुआ है .कांग्रेस के लिए भी दक्षिण उतना ही अभेद्य है जितना की भाजपा के लिए .