शशी कुमार केसवानी

नमस्कार आज एक ऐसी अभिनेत्री से आपको रूबरू करा रहे है जो नायिका व खलनायिका के रूप में खूब प्रसिद्ध हुई। भारतीय फिल्मी दुनिया में एक दौर वो भी था, जब महिलाओं का फिल्मों में काम करना गलत माना जाता था। उस समय अपनों के खिलाफ जाकर अपनी मेहनत से सबकी बोलती बंद कर देना कोई आसान बात नहीं थीं। लेकिन 50-60 के दशक की अदाकारा फ्लोरेंस एजेकेल यानि नादिरा ने ऐसा कर दिखाया था। वे अपने रौबदार अंदाज की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में फीयरलेस नादिरा के नाम से मशहूर हुईं। हाथ में सिगरेट, तीखे नैन-नख़्श, डार्क मेकअप, फैशनेबल कपड़े, हीरो से खुलकर प्यार का इजहार करने वाली बॉलीवुड खलनायिका की यही तस्वीर हमारे सामने उकेरी है।

बॉलीवुड फिल्मों में हीरोईन को अकसर शर्मीली, सताई हुई और खलनायिका को हीरोईन पर जुल्म ढहाते दिखाया गया है। जाहिर सी बात है कि कोई भी अभिनेत्री फिल्म की हीरोईन बनना ही चुनेगी? लेकिन कुछ जाबांज, रिस्क उठाने वाली अभिनेत्रियां ऐसी भी थीं, जो किसी की परवाह किए बगैर, आत्मविश्वास के पंख लगाए बेबाक होकर खलनायिका का किरदार निभाती थी। नादिरा का जन्म 5 दिसंबर, 1932 को इराक के बगदाद शहर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनके दो भाई हैं जिनमें से एक अमेरिका और दूसरे इजराइल में हैं। कुछ रिपोर्ट्स में उनका नाम फरहत भी बताया जाता है। नादिरा के जन्म के स्थान को लेकर भी मतांतर है, कुछ रिपोर्ट्स उनका जन्म बगदाद, इराक बताती हैं, कुछ इजरायल बताती हैं। नादिरा ने 12 साल की उम्र में बॉलीवुड में एंट्री की। नादिरा की मां को अभिनय के क्षेत्र में काम पसंद नहीं था। उनका मानना था कि फिल्मों में काम करना बुरा होता है और अब नादिरा ना तो कभी सिनेगांग (यहूदी पूजा स्थल) जा सकेंगी और ना ही कोई यहूदी उनसे शादी करने के लिए तैयार होगा।

अपनी मां के इस बर्ताव पर नादिरा का कहना था कि फिलहाल तो हमारी बुनियादी जरूरत शाम के खाने का इंतजाम करना है। उनका मानना था, हो सकता है कि फिल्मों में काम करना बुरा है, लेकिन भूखा मरना उससे भी ज्यादा बुरा होगा। महबूब खान देश की पहली रंगीन फिल्म आन (1952) में बना रहे थे। इस फिल्म की एक हीरोइन निम्मी मिल गई थी और दूसरी के लिए नरगिस या मधुबाला के नाम पर विचार किया जा रहा था, लेकिन बात नहीं बनीं। तब बगदाद से एक शादी में शामिल होने के लिए भारत में आई 16-17 साल की नादिरा को महबूब खान ने अपनी फिल्म की हीरोइन बनाया। महबूब खान ने ही फ्लोरेंस एजेकेल को एक नया नाम नादिरा दिया था। उन्होंने 1200 रुपए महीने की तनख्वाह पर अपनी फिल्म आन के लिए नादिरा को साइन किया था। इस फिल्म ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई कीं।

यह पहली फिल्म थी, जो 17 भाषाओं के सब टाइटल्स के साथ 28 देशों में रिलीज हुईं। इस फिल्म का प्रीमियर लंदन में आयोजित किया गया था। भले ही शुरूआत में नादिरा के परिवार वाले भी उनके खिलाफ रहे, लेकिन इस फिल्म ने उन्हें रातों-रात बॉलीवुड की नई स्टार बना दिया था। नादिरा को 1952 में आई आन में पहला बड़ा ब्रेक मिला। इस फिल्म में उन्होंने एक राजपूत राजकुमारी का रोल किया, फिल्म में उन्होंने एक बोल्ड सीन दिया था। नादिरा को राज कपूर की फिल्म श्री 420 (1956) में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में उनका सिगरेट पकड़ने के अंदाज काफी मशहूर हुआ। यह फिल्म भी ब्लॉकबस्टर साबित हुईं, लेकिन इसने नादिरा के कॅरियर की दिशा ही बदल दीं। दरअसल, फिल्म में वो नेगेटिव किरदार में थी, जिसके कारण उनके पास हीरोइन के प्रस्ताव आने ही बंद हो गए थे। कई महीनों उन्हें काम नहीं मिला, जिसके बाद वो खलनायिका की भूमिकाएं ही करने लगीं। जब बॉलीवुड में महिलाएं, साफ-सुथरी छवि, पतिव्रता और किस्मत की मारी टाइप के रोल चुना करती थीं नादिरा ने अलग किरदारों का चुनाव किया। नादिरा ने अपने किरदारों के साथ एक्सपेरिमेंट्स किए। 50 और 60 के दशक में नादिरा ने 70 से ज्यादा फिल्में की। नादिरा को फिल्मी दुनिया से निर्देशक महबूब खान की पत्नी सरदार बेगम ने मुखातिब करवाया। इसके अलावा वे दिल अपना और प्रीत पराई , पाकिजा, जूली, अमर अकबर एंथनी जैसी फिल्मों में भी नजर आईं। जूली के लिए नादिरा को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला। 2000 में आई जोश नादिरा की आखिरी
फिल्म थी।

नादिरा शौहरत की सीढ़ियां चढ़ती हुई तेजी से आगे बढ़ रही थीं। 1200 रुपए के बाद उन्हें 2500 और फिर 3600 रुपए मिलने लगे। नादिरा को जब 3600 रुपए मिले तब उन्हें यकीन नहीं हुआ और उन्होंने कहा कि वो इतने रुपए लेकर अकेले घर नहीं जा सकती। जब उन्होंने घर पहुंचकर मां के हाथ में पैसे रखे, तब मां ने कहा- ‘कहीं तू चोरी करके तो नहीं लाई?’ नादिरा ने शायर नख्शाब से शादी की थी। गौरतलब है कि ये शादी ज्यादा दिन नहीं चली और एक हफ़्ते में ही टूट गई थी। मोतीलाल राजवंश से भी नादिरा का नाम जोड़ा गया।

नादिरा का जीने का एक अंदाज ही अलग था। नादिरा की दोस्ती फिल्म इंडस्ट्री की किसी हीरोइनों से रही और न ही उनकी अक्सर दोस्ती पड़े लिखे उद्योगपति, आईएएस और आईपीएस अफसरों से ही रही। वे अक्सर उनके साथ पार्टियों में होती थी। उसका जीने का अंदाज सचमुच एक रायल परिवार की तरह था पर वक्त के साथ शराब की लत ने चीजे खराब करना शुरू कर दी थी। एक बार तो राजकपूर के साथ जब शराब पी रही थी । उस वक्त अभिनेत्री नरगिस भी उनके साथ थी तब नादिरा को शराब सर चढ़कर बोलने लगी तब राज साहब नाराज हो गए और तबीयत से नादिरा की लू उतार दी। तब नादिरा ने तय किया कि अब कभी राजकपूर के साथ शराब नहीं पीएंगी। वैसे ही उनके फिल्म इंडस्ट्री में बहुत करीब के रिश्ते नहंी थे। कुल मिलाकर फिल्म अभिनेत्री शम्मी उनकी दोस्त हुआ करती थी। लेकिन नादिरा की जिन लोगों से दोस्ती थी। कभी विवाद नहीं हुआ।

यह अभिनेत्री नादिरा की कामयाबी ही मानी जाएगी कि उन्हें हर बड़े हीरो के साथ काम करने का अवसर मिला। उस समय की तिकड़ी भी उनकी उपेक्षा नहीं कर सकी। नादिरा दिलीप कुमार के साथ ‘आन में’ आई और देव आनंद के साथ ‘पॉकेटमार’ में। राजकपूर ने उन्हें फिल्म ‘श्री 420’ में ‘माया’ का अलग अंदाजवाली भूमिका दी। अशोक कुमार के साथ ‘नगमा’, शम्मी कपूर के साथ ‘सिपहसालर’, प्रदीप कुमार के साथ ‘पुलिस’ और भारत भूषण के साथ ‘ग्यारह हजार लड़कियाँ’ आई। सन 1954 में गायक-अभिनेता तलत महमूद के साथ दो फिल्मों ‘डाक बाबू’ और ‘वारिस’ में भी काम किया। ये फिल्में कामयाब रहीं।

विशेष बात यह थी कि इन फिल्मों में नादिरा ने तलत महमूद के साथ कई गीत भी गाए और अपनी आवाज से लोगों को दीवाना बनाया। इस तरह नादिरा ने तीस सालों तक फिल्मों में लगातार काम किया। पूरे कैरियर में नादिरा ने कुछ और अभिनेताओं के साथ भी काम किया, उनमें मोतीलाल, आगा, अनवर हुसैन, जयराज, बलराज साहनी, उत्पल दत्त, दलजीत, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती और ऋषि कपूर आदि उल्लेखनीय हैं। शाहरुख खान और ऐश्वर्या राय अभिनीत फिल्म ‘जोश’ नादिरा की अंतिम फिल्म थी। फिल्म ‘जूली’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का ‘फिल्म फेयर पुरस्कार’ भी मिला था। इस फिल्म में उन्होंने नायिका ‘जूली’ की माँ मार्गरेट का किरदार निभाया था। नादिरा का पूरा परिवार वापस इजराइल चला गया था। लेकिन नादिरा को भारत छोड़ना मंजूर नहंी था लिहाजा वे यहीं रह गई। उनका कहना था जिस मिट्टी में नाम, पैसा, इज्जत, शोहरत हासिल की है वो जगह छोड़कर कभी नहीं जाऊंगी। हालांकि परिवार ने बहुत समझाया पर नहीं मानी।

यहीं कारण था कि अंतिम समय में नादिरा के साथ कोई नहीं था, सिवाय उनकी हाउसहेल्प शोभा के अलावा। नादिरा पेद्दार रोड, मुंबई स्थित वसुंधरा बिल्डिंग की तीसरी मंजिÞल पर रहती थीं। शोभा का कहना था कि वो अपनी चीजें किसी को नहीं छूने देती थीं और अपनी जिÞन्दगी के किस्से सुनाया करती थी। वे बहुत ज्यादा शराब पीने लगी थी। शरीर की कमजोरी के कारण उन्हें कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया। साल 2006 में 9 फरवरी के दिन बॉलीवुड अभिनेत्री नादिरा का निधन हो गया। उसके बाद बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष पीएम रूंगटा ने उनकी वसीयत सार्वजनिक की थी, जिसमें लिखा था कि नादिरा ने यहूदी होने के बावजूद खुद को दफनाने के बजाय हिंदू रीति-रिवाजों से जला कर अंतिम संस्कार करने की इच्छा जताई है। यह मामला काफी संवेदनशील था। लिहाजा यहूदियों की द शेपर्डी फेडरेशन आॅफ इंडिया के अध्यक्ष सोलोमन एफ सोफर को स्वीकृति के लिए सार्वजनिक बयान जारी करना पड़ा था। जय हो…

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER