TIO, खास खबर

मेरा बचपन बुंदेलखंड के एक बेहद पिछड़े आदिवासी गाँव में बीता। वहाँ बिजली ,पानी ,अस्पताल और सड़क जैसी कोई बुनियादी सुविधाएँ तक नहीं थीं।एक टूटा फूटा स्कूल था। उसमें कोई पुस्तकालय नहीं था। ऐसे में पत्र पत्रिकाएँ प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता था।आठवीं कक्षा में आने के बाद पहली दफे बच्चों की पत्रिका बाल भारती देखी। यह मेरा पहला पुस्तक -प्यार था। इसके बाद किताबों का जो चस्का लगा ,वह अब तक बरक़रार है।इसलिए कल जब नेशनल बुक ट्रस्ट के श्री राकेश त्रिवेदी ने राष्ट्रीय पठन दिवस पर मुझे छोटे छोटे बच्चों को किताबों के बारे में चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया तो मेरे सामने बचपन का वही गाँव नाचने लगा।

इन बच्चों से मिलकर अच्छा लगा।वे महानगर में रहते हैं ,लेकिन उनके घरों में अख़बार नहीं आते।वे बाल पुस्तकें या पत्रिकाएँ नहीं पढ़ पाते। घर की तनाव भरी आर्थिक स्थिति के चलते उनकी सहज बाल इच्छाएँ दम तोड़ देती हैं। जब नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से त्रिवेदी जी ने उन्हें कुछ बाल पुस्तकें उपहार में दीं ,तो उनके चेहरे पर चमक देखने लायक थी। जब मैनें बच्चों के मानसिक स्तर पर जाकर उन्हें कहानी की शक़्ल में किताबों की अहमियत समझाई तो तो वे ख़ुशी से दमकने लगे। आज की ज़िंदगी में हमारे यही सुख हैं। छोटा सा प्रयास करिए और आनंद सागर में गोते लगाइए। एक बचपन को मुरझाने से रोकने में यदि आप कामयाब होते हैं तो उससे बड़ा सुख और क्या हो सकता है ? अब मैं प्रत्येक महीने सौ बाल पत्रिकाएँ ऐसे बच्चों तक पहुँचाऊँगा,जिनके पास पुस्तकें नहीं पहुँच पातीं .इस कड़ी में पहली खेप मैंने बाबई से आगे मित्र जय प्रकाश दीवान के गाँव खैरी दीवान में बाँटने का फ़ैसला किया है।

बहरहाल ! नेशनल बुक ट्रस्ट के इस पवित्र अनुष्ठान में भागीदार बना ,इसका संतोष है। दिलचस्प है कि मेरी और नेशनल बुक ट्रस्ट की उमर लगभग बराबर है।भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बच्चों की पढ़ाई को लेकर बड़े संवेदनशील थे। उन्होंने ही इस महान संस्था की नींव डाली थी और पुस्तक संस्कृति पर ज़ोर दिया था।यहाँ संलग्न चित्र कल के कार्यक्रम के हैं।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER