TIO, वाशिंगटन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के फैसलों से प्रभावित अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की मदद के लिए शुक्रवार को एक बड़ा मुकदमा दायर किया गया है। इस मुकदमे में अदालत से अनुरोध किया गया है कि इन छात्रों की कानूनी स्थिति फिर से बहाल की जाए। इस फैसले से करीब 1100 से ज्यादा विदेशी छात्र प्रभावित हुए हैं, जिन्हें अमेरिका से निकाले जाने का डर सता रहा है। बता दें कि यह मुकदमा अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) और उससे जुड़े कई संगठनों ने मिलकर दायर किया है। ये न्यू इंग्लैंड और प्यूर्टो रिको के 100 से अधिक छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
ट्रंप प्रशासन के खिलाफ एसीएलयू का तर्क
मामले में एसीएलयू न्यू हैम्पशायर के कानूनी निदेशक गिल्स बिस्नोनेट ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय छात्र हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का एक अहम हिस्सा हैं। किसी भी सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वो छात्रों की स्थिति अचानक खत्म कर दे और उन्हें उनकी पढ़ाई पूरी किए बिना देश से निकालने की कोशिश करे।
क्या हुआ छात्रों के साथ?
मार्च के अंत से अब तक 170 से ज्यादा यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में पढ़ रहे करीब 1,100 छात्रों के वीजा या कानूनी स्थिति को खत्म कर दिया गया। ये सब बिना किसी उचित सूचना के हुआ। मीडिया रिपोर्ट की माने तो अभी और भी छात्रों के ट्रंप के इस फैसले से प्रभावित होने की संभावना है। वहीं छात्रों का कहना है कि उन्हें न तो कोई चेतावनी दी गई, न ही सफाई का मौका मिला। कुछ मामलों में तो बहुत पुराने और मामूली ट्रैफिक उल्लंघन को भी बहाना बना लिया गया।
भारत और चीन के छात्रों का जिक्र
ट्रंप के इस फैसले से भारत और चीन के भी कई छात्र प्रभावित हुए है। इसमें भारत के मणिकांत पासुला, जो न्यू हैम्पशायर के रिवियर यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स कर रहे थे, अब अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने और नौकरी की संभावना खो चुके हैं। वहीं, चीन के हंगरुई झांग, जो मैसाचुसेट्स में वॉर्सेस्टर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट में पीएचडी कर रहे थे, अब अपना रिसर्च असिस्टेंट का काम नहीं कर पा रहे, जो उनकी कमाई का एकमात्र जरिया था।
अब समझिए पूरा मामला
गौरतलब है कि ट्रंप प्रशासन की कुछ हालिया कार्रवाइयों की वजह से अमेरिका में पढ़ाई कर रहे 1,000 से ज्यादा विदेशी छात्रों का वीजा या कानूनी दर्जा खत्म कर दिया गया है। इसके चलते अब ये छात्र न सिर्फ पढ़ाई जारी नहीं रख पा रहे हैं, बल्कि उन्हें देश से निकाले जाने का डर भी सता रहा है। वहीं एसीएलयू का कहना है कि सरकार ने छात्रों की कानूनी स्थिति को बिना किसी चेतावनी या उचित प्रक्रिया के खत्म कर दिया, जो कि न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।