TIO, भोपाल।

मध्यप्रदेश विधानसभा का 4 दिवसीय शीतकालीन सत्र की शुरुआत आज से होने जा रही है। सत्र की अंतिम बैठक 21 दिसंबर निर्धारित की गई है। सत्र के पहले दिन सबसे पहले प्रोटेम स्पीकर गोपाल भार्गव नव निर्वाचित सभी 230 विधायकों को शपथ दिलाएंगे। इसके बाद राज्यपाल मंगूभाई पटेल का अभिभाषण होगा। खास बात यह है इस बार कई बड़े चेहरे विधानसभा में दिखाई नहीं देंगे। इसमें पूर्व संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल, पूर्व कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी और डॉ. गोविंद का नाम भी शामिल है।

हालांकि नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, रीति पाठक, पूर्व सांसद राकेश सिंह, और पूर्व सांसद उदय राव प्रताप सिंह जेसे कई वरिष्ठ नेता ऐसे हैं जो पहली बार विधायक के तौर पर विधानसभा सत्र में शामिल होंगे। इनके अलावा कई युवा चेहरे भी पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे हैं। यह उनका पहला सत्र होगा। विधानसभा के प्रमुख सचिव अवधेश प्रताप सिंह ने बताया कि सोलहवीं विधानसभा के नवनिर्वाचित माननीय सदस्यों के विधानसभा में प्रवेश हेतु परिचय पत्र न होने पर उनके द्वारा निर्वाचन प्रमाण पत्र तथा आधार कार्ड दिखाए जाने पर प्रवेश की पात्रता रहेगी। साथ ही शपथ ग्रहण के दौरान यदि उनके साथ उनके परिजन आते हैं तो किसी एक परिजन को ही विधानसभा में प्रवेश की अनुमति रहेगी और इनका भी आधार कार्ड इत्यादि साथ में लाना आवश्यक होगा।

ये बड़े नेता नहीं दिखेंगे
पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा समेत 12 मंत्री ऐसे हैं जो विधानसभा का चुनाव हार गए हैं। इनमें कमल पटेल, महेंद्र सिसोदिया, गौरीशंकर बिसेन, सुरेश राजखेड़ा, राज्यवर्धन दत्तिगांव, भारत सिंह कुशवाह, रामखिलावन पटेल, राहुल सिंह लोधी, प्रेम सिंह पटेल, अरविंद भदौरिया और राम किशोर कांवरे के नाम शामिल हैं। ये सभी इस बार विधान सभा सत्र में नहीं दिखाई देंगे। वहीं कांग्रेस से पूर्व नेताप्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह, कांग्रेस के नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, कुणाल चौधरी, पूर्व मंत्री प्रियव्रत सिंह, पूर्व मंत्री तरुण भनोट, केपी सिंह कक्का जी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति और लक्ष्मण सिंह जेसे कांग्रेस के कई दिग्गज नेता इस बार सत्र में नहीं होंगे।

उपाध्यक्ष के पद को लेकर बना हआ है सवाल
इधर, विधानसभा में उपाध्यक्ष के पद को लेकर सवाल बना हुआ है। देखना होगा कि क्या भारतीय जनता पार्टी इस बार विपक्ष को यह पद देती है या नहीं। पहले आपसी सहमति से अध्यक्ष का पद सत्ता पक्ष और उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिया जाता था लेकिन बाद में कांग्रेस ने इस परंपरा को तोड़ कर ये दोनों ही पद अपने पास रख लिए। इसके बाद से भाजपा ने तय किया कि सत्ता में आने पर वो अब उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को नहीं देगी।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER