संजीव शर्मा

आमतौर पर राजनीतिक पत्रकार वार्ताएं नीरस होती हैं क्योंकि नेता या तो पत्रकार वार्ता के पहले ही सब बता चुके होते हैं या फिर कुछ बताना नहीं चाहते। ऐसे में यदि पत्रकार वार्ता निवेश और आर्थिक विषय पर हो तो उसके और भी बोझिल होने के खतरे रहते हैं क्योंकि हजारों लाखों करोड़ रुपए के आंकड़े और उनका घिसा पिटा सा प्रस्तुतीकरण खबर के केंद्र होता है जो रुचिकर तो नहीं हो सकता । इसलिए जब यूनाइटेड किंगडम (यूके) और जर्मनी की यात्रा से लौटने के बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की पत्रकार वार्ता की सूचना मिली तो यही उम्मीद थी कि रोज छप रहे निवेश प्रस्तावों और आंकड़ों के अलावा कुछ नहीं होगा। वैसे भी पत्रकार वार्ता का विषय भी इन देशों की यात्रा से जुटाए गए निवेश की जानकारी देना था इसलिए बिना कोई उम्मीदें पाले अपन भी मुख्यमंत्री निवास पहुंच गए।

मुख्यमंत्री निवास का सभागार ठसाठस भरा था। दर्जनों कैमरे मशीनगन की तर्ज पर सीधे उस स्थान पर निशाना साधे थे जहां मुख्यमंत्री को बैठना था। वहीं, रिवॉल्वर और बंदूकों जैसे छोटे मोटे हथियारों की तरह यूट्यूबर्स और पोर्टल वीरों के कैमरे सभागार में यत्र तत्र सर्वत्र बिखरे पड़े थे। बेचारे स्टिल कैमरे वाले अपने लिए ढंग की फोटो लेने लायक जगह जुगाड़ रहे थे। मुख्यमंत्री के हवाई अड्डे से यहां तक आने में कुछ देर हुई तो मीडिया के साथियों के लिए चाय और स्वल्पाहार के द्वार खोल दिए गए परंतु आलम यह था कि अग्रिम पंक्ति की कुर्सियां छिन जाने के डर से हम जैसे कई साथियों ने खानपान का बलिदान दे दिया और जो यह मोह नहीं छोड़ पाए उन्हें पहली से आखिरी पंक्ति में बैठना पड़ गया।

खैर, अपने चिरपरिचित अंदाज़ में मुस्कराते हुए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव हम से रूबरू हुए। कुछ देर की औपचारिक जानकारी के बाद वे अपने रंग में आ गए और ठेठ मालवी अंदाज़ में उन्होंने अपने अनुभव बांटने शुरू किए। फिर क्या था बोरिंग सी पत्रकार वार्ता में आंकड़ों के साथ हंसी और ठहाकों के रंग घुल गए। मुख्यमंत्री ने अपने निजी अनुभव से कई दिलचस्प बातें साझा की मसलन कारों की स्पीड पर उन्होंने ठेठ मालवी अंदाज़ में कहा कि कार में दो ढाई सौ की स्पीड में ऐसा लग रहा था जैसे हवा में उड़ रहे हैं और डर भी लग रहा था कि कहीं उड़ा ही न दे। एक और किस्सा बताते हुए उन्होंने कहा कि विदेशी राजनयिकों से चर्चा के दौरान जब वहां की एक महिला अधिकारी ने भारत और मध्य प्रदेश की तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरू किए तो हमने ही इशारे से रोक दिया क्योंकि बहनजी नौकरी तो वहीं की कर रही थीं और भारत प्रेम कहीं उनकी नौकरी न ले बैठे।

जैसे जैसे बात आगे बढ़ी मुख्यमंत्री का अंदाज बिल्कुल परिवार के मुखिया या उस वरिष्ठ सदस्य की तरह होता गया जो कौतूहल के साथ अपने परिजनों को यात्रा के किस्से सुनाता है। डॉ यादव भी किस्सागो बन गए फिर चाहे वह डायनासोर को कीचड़ में फंसा कर शिकार करने की बात हो या दुनिया के इस विशालतम प्राणी को कैंसर होने की, ब्रिटेन की संसद के भीतर चर्च खोजकर उनकी धर्मनिरपेक्षता पर कटाक्ष हो या वहां राज्यसभा में मिलने वाली जीवनभर की सदस्यता…मुख्यमंत्री ने खूब चुटकियां ली। उन्होंने कहा कि वहां आप एक बार सदस्य बने तो बस फिर फोटो टंगने तक बने रहते हैं और हमारे यहां छह साल भी लोगों को भारी लगने लगते हैं। स्वामीनारायण मंदिर के निर्माण की कहानी सुना कर न केवल उन्होंने बातों ही बातों में भारतीय मंदिर निर्माण की उच्च शैली,स्थापत्य कला और एकजुटता की महत्ता साबित कर दी।

वहीं, ब्रिटेन में डॉ भीमराव आंबेडकर के पंचतीर्थ की स्थापना के प्रति गोरों की शुरुआती प्रतिक्रिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने यह समझाने की कोशिश। की कि यदि सरकार मजबूत और दृढ़ इच्छा शक्ति वाली हो तो किसी भी बाधा को दूर किया जा सकता है। निवेश के आंकड़ों पर कुरेद रहे एक साथी को उन्होंने यह कहकर लाजवाब कर दिया कि 78 हजार करोड़ रुपए के निवेश प्रस्तावों का उल्लेख करने बैठूंगा तो बहुत समय लग जाएगा इसलिए आज नकारात्मकता छोड़िए,आंकड़े आप तक पहुंच जाएंगे।

कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि यदि आप पद की गरिमा के साथ अपनी सहजता,सरलता,जड़ों से जुड़ाव और अपनेपन को कायम रखते हैं तो नीरस विषय पर भी सकारात्मक और उल्लासपूर्ण बातचीत हो सकती है। यह सहजता आजकल कम देखने को मिलती है क्योंकि जैसे ही व्यक्ति उच्च पद पर पहुंचता है,वह अपनी जड़ों से दूर होने लगता है और सहज हास्य उसे अपने कद के प्रतिकूल लगने लगता है। लेकिन, डॉ मोहन यादव ने उच्च पद के बाद भी अपने मूल स्वभाव,सहजता,सरलता और खांटी मालवी शैली को नहीं छोड़ा है…अपने इस अंदाज़ को,सरलता को और ठेठ देसीपन को बनाए रखिए मुख्यमंत्री जी।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER