TIO, मुंबई।
विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही महाराष्ट्र के दोनों गठबंधनों सत्तारूढ़ महायुति और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की चुनौतियां बढ़ गई हैं। महायुति की चुनौती जीत की हैट्रिक लगाने की है तो एमवीए के सामने लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन बरकरार रखते हुए बीते दो चुनाव से जारी सूखा खत्म करने की। सवाल यही है कि क्या भाजपा की अगुवाई में महायुति महाराष्ट्र में हरियाणा जैसा चमत्कार दोहरा पाएगा या फिर एमवीए हरियाणा की हार से सबक सीखते हुए इस बार बाजी मार सकेगा?
लोकसभा चुनाव के नजरिए से देखें, तो महाराष्ट्र और हरियाणा में कई समानताएं नजर आएंगी। हरियाणा में पांच सीटें छीनने वाली कांग्रेस को भाजपा से महज डेढ़ फीसदी अधिक वोट मिले थे। महाराष्ट्र में महायुति को 17 सीटों पर सीमित करने वाले एमवीए को महज 0.16 फीसदी वोट अधिक मिले। दोनों ही राज्यों में भाजपा की अगुवाई वाले राजग को ओबीसी-दलित वोट बैंक में सेंध लगने का नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाकर भाजपा ने कांग्रेस से हिसाब-किताब बराबर कर लिया।
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में लगे झटके से उबरने के लिए महायुति ने हरियाणा के फॉमूर्ले को जमीन पर उतारने की पहल की है। महायुति की निगाहें छिटक चुके 40 फीसदी आबादी वाले ओबीसी और 10 फीसदी आबादी वाले दलित वोट बैंक पर है, जिसकी नाराजगी की कीमत उसे आम चुनाव में उठानी पड़ी थी। चुनाव नतीजे के बाद राज्य की एकनाथ शिंदे सरकार ने महिलाओं को साधने के लिए लाडली बहना योजना शुरू की है। ओबीसी वर्ग को साधने के लिए क्रीमीलेयर की सीमा 8 लाख से बढ़ाकर 15 लाख करने की सिफारिश की है। इसके अलावा शहरी वोट बैंक को साधने की रणनीति के तहत पांच अहम टोल नाकों से गुजरने वाले हल्के वाहनों को टोल फ्री कर दिया गया है।
तीन क्षेत्रों को साधने की मशक्कत
लोकसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना शिंदे गुट को ओबीसी बहुल पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र में सर्वाधिक नुकसान हुआ था। इन तीन क्षेत्रों की 26 सीटों में महज नौ सीटें ही जीत पाई और महायुति को 14 सीटों का बड़ा नुकसान हुआ। एमवीए सिर्फ कोंकण इलाके में ही बेहतर प्रदर्शन कर पाया, जबकि मुंबई में शिवसेना यूटीबी ने अपना दबदबा साबित किया। एमवीए अब ओबीसी व दलितों की नाराजगी दूर करने, समर्थक मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने की रणनीति पर जोर लगा रहा है।
एमवीए में सीट फॉमूर्ले और चेहरे पर अब भी सस्पेंस…महायुति का चेहरा होंगे सीएम शिंदे
एमवीए अब तक सीट बंटवारे का फॉमूर्ला और चेहरा घोषित नहीं कर पाई है। शिवसेना-यूबीटी उद्धव ठाकरे को चेहरा बनाने पर अड़ी है। जबकि, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) चाहती है कि इसका फैसला चुनाव के बाद हो।
वहीं, महायुति में सीट बंटवारे पर सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है…इसके तहत भाजपा 160, शिवसेना शिंदे 95 और एनसीपी (अजीत) तीन दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ेगी। गठबंधन का चेहरा सीएम एकनाथ शिंदे ही होंगे।
शिवसेना, एनसीपी : असली-नकली का फैसला
इस चुनाव में असली-नकली पार्टी का भी फैसला होगा। लोकसभा चुनाव में एनसीपी (अजीत) को सिर्फ एक सीट वहीं, शरद पवार गुट को 8 सीटों पर जीत मिली। इसी तरह, शिवसेना यूटीबी ने 9, तो शिवसेना शिंदे ने 7 सीटें जीती।
विपक्ष ने कहा-महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के लिए मिला कम समय
वहीं, महाराष्ट्र के विपक्षी दलों ने कहा कि चुनाव आयोग की ओर से 35 दिनों में विधानसभा चुनाव प्रक्रिया संपन्न करने की घोषणा आमतौर पर मिलने वाले समय से कम है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा, आयोग उम्मीदवार तय करने, नामांकन दाखिल करने और प्रचार के लिए राजनीतिक दलों को आम तौर पर 40 दिन का समय देता है। इस बार यह समय 35 दिन का है, जो असामान्य है। इससे हमें प्रचार के लिए भी कम समय मिलेगा। राकांपा (एसपी) की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष जयंत पाटिल ने कहा, आयोग ने लोकसभा चुनाव पांच चरण में कराए थे, लेकिन विधानसभा चुनाव एक चरण में कराने का फैसला किया है। यह अच्छा है कि एनडीए एक झटके में ही हार जाएगी। वहीं, शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने दावा किया कि ईवीएम के संभावित दुरुपयोग पर कई विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए सवालों का निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने समुचित समाधान नहीं किया है।