राघवेंद्र सिंह
लोकसभा चुनाव को लेकर उम्मीदवारों के नाम को लेकर चिंतन मनन और मंथन का दौर शुरू हो गया है लेकिन जानकारों का मानना है कि विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा के लिए उम्मीदवारों का चयन चौंकाने वाला होगा। दरअसल भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री राज्यसभा सदस्य,विधानसभा प्रत्याशी और लोकसभा प्रत्याशियों के मामले में भी सबको सरप्राइज करेगा। हमेशा की तरह प्रदेश नेतृत्व के हाथ में कुछ नहीं रहेगा इसलिए उम्मीदवारों को लेकर जब कोई सवाल राज्य के नेताओं से पूछे जाते हैं तो वह जवाब देने के बजाय मुस्कुरा कर चुप रहते हैं। इसके मौटे तौर पर दो फायदे होते हैं। नेतागण यह संकेत देने का प्रयास करते हैं कि उन्हें सब पता तो है लेकिन मोटा भाई छोटा भाई की धमक के चलते उसे किसी से साझा नही कर रहे हैं। एक तो बेचारे मीडिया कर्मी से लेकर दावेदार, छोटे बड़े कार्यकर्ता बोल भी नहीं खुलती और चाणक्य की भांति छवि भी बन जाती है।
उधर दावेदार और नेता कार्यकर्ता यह पता करने के लिए प्रदेश के दिग्गजों के चक्कर काटते रहते हैं कि आगे क्या होने वाला है। वैसे भी इन दिनों सूबे की सियासत में सन्नाटा सा पसरा हुआ है। कुछ भी होना होगा तो वह राष्ट्रीय नेतृत्व के तय करने के बाद ही होगा। आमतौर पर सब मानने लगें लगे हैं कि छोटे – बड़े निर्णय आलाकमान के जो आंख कान बने हुए हैं उनकी सूचना और सलाह से ही होंगे। इससे आम कार्यकर्ता को यह संदेश चला गया है कि गणेश परिक्रमा से ज्यादा लाभ होने वाला नही है। इसलिए आने वाले दिनों में नेताओं के आसपास पद पाने के लिए चंप्पुओं की भीड़ घटने लगे तो हैरत नही होगी। इसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी और एचएम अमित शाह की नीति के लिए भाजपा में अनेक नेता-कार्यकर्ता जरूर साधुवाद दे रहे होंगे। भाजपा कार्यकर्ताओं को अब यह तो समझ में आ रहा है कि चुनाव में उम्मीदवार बनने से लेकर निगम मंडलों में पदाधिकारी बने और भाजपा संगठन में पद पाने के मामले में जोड़ जुगाड़ और चंपू गिरी से काम चलने वाला नहीं है क्योंकि लगभग अब सारे फैसले दिल्ली दरबार से होंगे और उसमें स्थानीय नेताओं की कोई ज्यादा भूमिका रहने वाली नहीं है बस निर्णय के मामले में कुछ ना बोलकर खामोशी अख्तियार कर नेता लोग अपनी इज्जत बचाने में कामयाब जरूर हो जाएंगे कि उन्हें तो सब पता था लेकिन गोपनीयता जरूरी थी इसलिए कुछ नहीं बताया। जैसे विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन और उसके बाद मुख्यमंत्री चयन फिर राज्यसभा प्रत्याशियों का ऐलान बताता है कि मुख्यमंत्री के नाम लिफाफे से निकलते हैं और प्रत्याशियों की सूची दिल्ली से जारी होती है। लगता है अब किसी माई के लाल की कोई भूमिका नही होती। ये है बदलती भाजपा। इसमे एक लाभ यह है कि आम कार्यकर्ता को लगता है कि उसकी लॉटरी खुल सकती है। सीएम सिलेक्शन के मामले में एमपी में डॉ मोहन यादव, से लेकर राजस्थान में पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा और छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता विष्णु देव साय बड़े उदाहरण है। इससे आम कार्यकर्ता में उम्मीद जगी है कि कभी उसका भी सितारा चमक सकता है। यह अलग बात है कि इस प्रक्रिया ने भाजपा संगठन सिस्टम पर सवाल भी खड़े किए हैं। लेकिन अभी इस पर किसी ने कुछ बोला नही है।
एक बार मोदी ने कहा था…
आदिवासी सीएम के मामले में एक बार पीएम मोदी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ और झारखंड दो जनजातीय बहुल राज्य हैं लेकिन यहां आदिवासी सीएम नही हैं। इसके जब छग में भाजपा बहुमत में आई तो आदिवासी नेता विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई गई। इसके पहले छग में डॉ रमन सिंह सीएम रहे थे। अब उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है। आने वाले सालों में झारखंड व अन्य राज्यो में इसी तरह के हैरत में डालने वाले निर्णय देखने सुनने को मिल सकते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के कामकाज की भी समीक्षा होगी इसमें करप्शन में कमी, लॉ एंड ऑर्डर, गुड गवर्नेंस के साथ विकास कार्यों को समय सीमाओं में पूरा करना महत्वपूर्ण होगा और इन्हीं के नतीजे मुख्यमंत्री को ताकतवर और कमजोर बनाएंगे और जहां स्थिति गड़बड़ होगी वहां विदाई का रास्ता भी इसी तरह के पैमाने तय करेंगे।मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने निगम मंडल व प्राधिकरण भंग करने का जो निर्णय किया था उससे भी सब चकित रह गए थे। अब संगठन सरकार की तरफ से यह कहा जा रहा है कि लोकसभा में प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर भाजपा को भारी मतों से जिताने में जो जमीन आसमान एक कर देंगे उन्हें निगम-मंडल और प्राधिकरण में पदों से नवाजा जाएगा। इस रणनीति के चलते भाजपाईयों में प्रतिस्पर्धा का नया दौर शुरु हो गया है। इसके उत्साहजनक नतीजे आने के अनुमान हैं।
अध्यक्ष के मामले में भाजपा संसदीय बोर्ड शक्तिशाली…
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के मनोनयन और बिना निर्वाचन के कार्यकाल से जुड़े मसले पर सुब्रमण्यम स्वामी ने अलबत्ता एक पत्र लिख कर एक माह में कोर्ट जाने की बात कही थी। लेकिन उस पर बात कुछ आगे बढ़ती उसके पहले ही राष्ट्रीय कार्यसमिति में अध्यक्ष के कार्यकाल और उसे बढ़ाने के अधिकार संसदीय बोर्ड को देकर चर्चा शुरू होने के पहले ही समाप्त कर दी गई। कमोबेश यही हालात राज्यों में देखने मिल सकते हैं। भाजपा में एक तरह से नए युग का सूत्रपात हो चुका है।इसकी झलक राज्यों में सरकारों के गठन में देखने को मिलती रहेगी।