शशी कुमार केसवानी, फिल्मी इतिहास

नमस्कार दोस्तो,आईए आज बात करते हैं एक ऐसे बालीवुड अभिनेता की , जिसने तो पहले लोगों को खूब हंसाया और फिर खूब रुलाया भी। अपने अभियन के दम पर फिल्म जगत में जगह बनाने वाला इस अभिनेता ने एक फिल्म ठुकरा दी कि उसे पृथ्वी थिएटर छोड़ना पड़ रहा था। सच में पृथ्वी थिएटर से जुड़े लोग इस तरह से वहां से जुड़ जाते हैं कि वहां से जाने का मन ही नहीं, यह बात अलग है कि थिएटर से जुड़े लोगों को बहुत काम भी मिलता है। पर इस अभिनेता की दो अलग-अलग पहचाने हैं। पचास के दशक के लोग इसे हीरो के रूप में पहचानते हैं। वहीं 90 के दशक के लोग इसे बेताल के रूप में आज याद करते हैं। जी हा दोस्तों मैं बात कर रहा हूं देश के जाने माने बालीवुड अभिनेता सज्जन की।

सज्जन ने अपने फिल्मी करियर में कई बड़े एक्टर्स और डायरेक्टर संग काम किया। उनके निभाए कई अलग-अलग किरदारों में से एक बेताल का किरदार आज भी याद किया जाता है। सज्जन ने मधुबाला जैसी सुपरस्टार संग फिल्मों में काम किया था। अब भला बॉलीवुड की फिल्मों का हीरो रहा एक्टर टीवी का बेताल कैसे बना? आइए हम इस बारे में आपको बताते है। साजन का जन्म 15 जनवरी 1921 को जयपुर में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम सज्जन लाल पुरोहित था, लेकिन भारतीय फिल्म उद्योग में उन्हें उनके पहले नाम से ही जाना जाता था । सज्जन ने जोधपुर के जसवन्त कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की । उनकी इच्छा वकील बनने की थी, लेकिन अभिनेता बनने की नहीं। 1941 में सज्जन कलकत्ता (कोलकाता) गए थे और वहां उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की एक लैब में काम किया। उन्होंने फिल्मों में बतौर एक्स्ट्रा आर्टिस्ट के एंट्री ली थी। उन्होंने मासूम (1941) और चौरंगी (1942) में देखा गया था।

विश्व युद्ध 2 के दौरान सज्जन ने कलकत्ता को छोड़ दिया और मुंबई (बॉम्बे)आ गए थे। फिल्मों में काम करने का कीड़ा उन्हें मुंबई ले आया। कुछ फिल्मों में काम मिला, लेकिन मुंबई की वही पुरानी परेशानी कुछ दिनों बाद काम मिलना बंद हो गया। एक दिन सज्जन उदासी मूड में बैठे हुए थे। तभी पृथ्वीराजकपूर आए। उन्होंने सज्जन को बैठे हुए देख पूछा क्या बात है सज्जन तुम्हारे कौन से जहाज पानी में डूब गए जो इतने उदास बैठे हुए हो। सज्जन भी अपनी हाजिर जवाबी से बोल पड़े। नहीं जहाज तो नहीं डूबे, पर यह कैसी नगरी है कि जहां कोई काम ही नहीं देता। तब पृथ्वी राजकपूर ने सज्जन को सलाह दी कि किसी के असिस्टेंट बन जाओ और समय मिलने पर काम भी खोजते रहो। सज्जन ने पृथ्वी जी की बात मानते हुए उन्होंने फेमस डायरेक्टर केदार शर्मा के साथ बतौर एक्स्ट्रा असिस्टेंट काम शुरू कर दिया। तब उन्हें बहुत कम पैसे मिलते थे। एक दिन दुखी मन सज्जन से केदार जी से कहा इन पैसों में हमारा गुजारा नहीं होता तो केदार जी ने कहा कि एक आॅफिस में टेलीफोन आॅपरेटर की नौकरी दिलवा देता हूं। फिर कुछ समय उन्होंने यह नौकरी की। हालांकि केदार जी के पास रहते उस समय सुपरस्टार राजकपूर भी केदार के साथ बतौर असिस्टेंट काम किया करते थे। वहीं से राजकपूर से दोस्ती भी हो गई। दोनों का काफी समय साथ ही गुजरता था। फिर सज्जन ने टेलीफोन आॅपरेटर की नौकरी छोड़ डायरेक्टर गजानन जागीरदार और वकील साहिब के साथ भी बतौर असिस्टेंट काम किया और 35 रुपये की सैलरी पाई थी। पर इस काम से उनकी संतुष्टि नहीं हो रही थी। उन्होंने निर्णय लिया कि वापस पृथ्वी थिएटर ज्वाइन करूंगा। पर समस्या वहीं थी कि वहां नए कलाकारों को पृथ्वी थिएटर पैसे नहीं देता था। फिर भी सज्जन ने वहां काम करने का ठान लिया।

इतना ही नहीं उन्होंने काम करना शुरू भी कर दिया। तभी उनके काम को देखकर बी शांताराम ने उनका स्टेज परफार्मेंस देख अपनी फिल्म अपना देश में हीरो का रोल दे रहा हूं। पर शर्त यह है कि पृथ्वी थिएटर छोड़ना पड़ेगा। हीरो की बात तो सुनकर खुश तो बहुत हुए पर इस बात का दुख भी हुआ की थिएटर छोड़ना पड़ेगा। सज्जन ने तुरंत ही निर्णय लिया और जवाब दिया कि थिएटर तो नहीं छोड़ूगा, फिल्म भले ही छोड़ दू। जब यह बात थिएटर के लोगों को पता चली तो सभी लोगों ने सज्जन को इस काम के लिए बहुत सराहना की और यहीं से उनके कॅरियर को ऊंचाईयां मिलने लगी। एक के बाद एक काम मिलने लगे और फिर कभी पीछे मुडकर नहीं देखा।

धन्यवाद मूली से सज्जन ने की थी फिल्मी कॅरियर की शुरूआत
सज्जन ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत फिल्म धन्यवाद से की थी। इसके बाद वह अलग-अलग फिल्मों में काम कर एक प्रतिष्ठित साइड हीरो बने। उन्होंने नलिनी जयवंत, मधुबाला, नूतन जैसी फेमस अदाकारों संग काम किया। वह दिल से एक कवि थे और इस टैलेंट का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने फिल्म मीना (1944) के डायलॉग लिखे थे। दिल से कवि सज्जन ने अपनी प्रतिभा तब दिखाई जब उन्होंने मीना (1944) के लिए संवाद और दूर चलें (1946) और धन्यवाद (1948) के लिए गीत लिखे। उन्होंने पृथ्वी थिएटर में छोटी भूमिकाओं में भी अभिनय किया । उनकी अभिनय की पहली फिल्म धन्यवाद थी । उसके बाद 1950 में बॉम्बे थिएटर की मुकद्दर रिलीज हुई। नायिका थीं नलिनी जयवंत । तब तक सज्जन फिल्मों में अच्छी तरह स्थापित हो चुके थे। 1950 और 1960 के दशक में उन्होंने सैयां , रेल का डिब्बा , बहना , शीशा , माल्किन , निमोर्ही , कस्तूरी , मेहमान , लगन , गर्ल स्कूल , परिधान , 00 दूल्हे , घर-घर में जैसी फिल्मों में हीरो या साइड हीरो के रूप में काम किया। दियोअली , हा-हा-ही-ही-हू-हू , पूनम झांझर और हल्ला-गुल्ला । नायक के रूप में, उनकी आखिरी फिल्में काबुलीवाला और दो चोर थीं , और एक कलाकार के रूप में वह आखिरी बार 1986 में रिलीज हुई फिल्म शत्रु में राजेश खन्ना के साथ दिखाई दिए ।

फिल्म आंखे में दमदार अभिनय कर बनाई अलग पहचान
सज्जन ने रामानन्द सागर की सुपरहिट मूवी ‘आंखें’ में भी एक किरदार निभाया था। इस फिल्म से ही वह रामानंद सागर को भा गए थे। जब टीवी की दुनिया में कदम रखने का रामानंद सागर के मन में ख्याल आया तो उन्होंने विक्रम बेताल बनाया। इस शो में बेताल के लिए उन्होंने सबसे पहले सज्जन लाल को बुलाया और उन्होंने तुरंत हां भी कर दिया। बेताल के किरदार में सज्जन लाल पुरोहित सुपरहिट हो गए। मगर रामानंद सागर की रामायण में वह किसी भी किरदार में फिट नहीं बैठ पा रहे थे। जिसकी वजह से वह इस सीरियल में नजर नहीं आए।

जिसका मुख्य कारण था कि रामानंद सागर ने पूरी कोशिश करने के बाद भी रामायण में कहीं भी किसी भी रोल में सज्जन फिट नहीं होने पर जितना रामानंद सागर दुखी थे उतना दुख सज्जन को भी नहीं था। सज्जन ने एक बातचीत में बताया था कि मैंने इंडस्ट्री का बहुत शुक्र गुजार हूं, पर साथ ही साथ यह इंडस्ट्री बहुत जल्दी भुला भी देती है। यहां के खर्चे और लाइफ स्टाइल बड़े से बड़े कलाकारों को बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर देती है, लेकिन आज-कल के नए कलाकार फिल्मों के अलावा अलग जगहों पर पैसे इन्वेस्ट करते हैं, जिससे वह जीवन भर इंडस्ट्री से जुड़े रहते हैं। इस इंडस्ट्री ने कई ऐसे कलाकारों को गुमनामी के अंधेरों में धकेल दिया है जो नायाब किस्म के अभिनय के धनी थे। पर उनका जरा सा वक्त क्या बदला लोग उनसे रास्ता ही बदल लेते हैं। जबकि अन्य व्यवसायों में दस लोग साथ खड़े होने वाले होते हैं। यहां पर व्यक्ति को अकेले ही चलना होता है। यह कहते-कहते एक दम से बोल पड़े। यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता, अगर मुझे गिराकर अगर संभल सको तो चलो और यह शैर कहते ही उनके चेहरे पर अजीब उदासी सी छा गई। यह बातचीत उन्होंने दिसंबर 1999 में की थी। पर उनकी इस बातचीत के पीछे कितनी गहराई थी। यह बात समझने में मुझे सालों लग गए। इसके कुछ समय बाद 17 मई 2000 को इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए थे।

लेकिन अपने पीछे कहानियां छोड़ गए हैं, जो आने वाले अभिनय से जुड़े लोगों के लिए अपने-आप में मिशाल रहेंगी। मैं हमेशा कहता आया हूं और लिखता भी आया हूं कि फिल्म इंडस्ट्री को एक ऐसा मंच जरूर तैयार करना चाहिए, जिसमें पुराने अभिनेता-अभिनेत्रियों के जीवन का वर्णन के साथ-साथ उनके असल किस्से आने वाली नस्ल पहुंचे और उन लोगों का दुनिया में नाम बना रहे, जिन्होंने इस इंडस्ट्री के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया। वर्ना आने वाले समय में कई नाम गुमनाम में खो जाएंगे, जिनको कोई पहचानने वाला भी नहीं होगा। इस चकाचौंध से भरी दुनिया में कुछ ऐसा होना चाहिए जो हकीकत के करीब हो और उसे जानने-पहचानने का मौका सभी को मिले।

जय हो…

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER