राघवेंद्र सिंह
भाजपा में खल्क मोटा भाई का मुल्क छोटा भाई का और हुकुम अध्यक्ष का। छत्तीसगढ़ में सीएम के लिए आदिवासी नेता विष्णुदेव साय का नाम घोषित हो गया है। सोमवार दोपहर बाद मप्र में भी विधायक दल की बैठक के साथ ही कौन बनेगा सीएम..? का उत्तर भी मिल जाएगा। छग में भाजपा अध्यक्ष विष्णु देव साय सीएम की शपथ लेंगे और मप्र में भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का नाम भी सुर्खियों में बना हुआ है। हालांकि लाडली बहनों के भाई और बेटियों के जगत मामा सीएम शिवराज सिंह चौहान भी पांचवीं बार ताज पहनने के लिए सिर झुकाए खड़े हैं।
खल्क खुदा का और मुल्क बादशाह की लाइन थोड़ी कमीबेशी के साथ लगभग हरेक सियासी दल में गहरे तक पैठ कर गईं हैं। पहले यह सब कांग्रेस में ही था। दिल्ली की पसंद से ताजपोशी होती थी और हाईकमान के हुकुम पर हुकूमतें गिराई और बनाई जाती थी। लिहाजा कांग्रेस थोड़ी बेफिक्र हो सकती है क्योंकि जो वायरस उसमें काबिले एतराज थे बदस्तूर अब दूसरे दलों में जरिया ए हुकूमत दाखिल हो गया हैं।
खल्क खुदा का, मुल्क बादशाह का, हुकुम शहर कोतवाल का, हर खास और आम को आगाह किया जाता है, कि खबरदार रहें …
ये पंक्तियां 9 नवबंर 1974 को पत्रकारिता के हमारे पुरखे डॉ धर्मवीर भारती ने लिखीं थी। हालांकि तब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के (जेपी) जनांदोलन का समय था। देश में बेरोजगारी, महंगाई, युवा वर्ग और श्रमिक अशान्ति का माहौल था। इन दिनों हिंदी भाषी पट्टी के तीन राज्यों मप्र, छग और राजस्थान में भाजपा की एकतरफा जीत के बाद विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस भी डॉ भारती की कविता का पाठ करती जैसी दिखाई दे रही है। हैरान करने वाली बात यह हो सकती है कि इसमे सुर मिलाने वे भाजपाई भी हो सकते हैं जिन्हें सीएम की कुर्सी मिलने वाली थी पर बादशाह और कोतवाल के हुकुम के चलते मिल न सकी।
छत्तीसगढ़ में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाने का एलान हो गया है। इसकी नींव भाजपा ने तभी रख दी थी मप्र की आदिवासी महिला नेता अनुसूइका उइके को राज्यसभा सदस्य बनाने के बाद छत्तीसगढ़ का राज्यपाल बनाया था। खास बात यह भी है कि गौंड आदिवासी उइके को संघ व भाजपा राष्ट्रपति पद के लिए भी चर्चाएं चली थी। छग की तरह मप्र में भी बदलाव की बयार का अनुमान है। यहां दत्तात्रेय होसबोले के अत्यंत प्रिय सीएम पद की दौड़ से दूर होने का ऐलान करने वाले प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा सीएम पद के नैसर्गिक दावेदार हैं। वे संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत के विश्वस्त और चार बार के सीएम शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर ताजपोशी चाहते हैं। यद्द्पि चौहान ने भी कहा है कि वे सीएम के पद की रेस में वे पहले कभी थे और न आज हैं। मुख्यमंत्री पद के लिए केंद्रीय मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर भी प्रबल दावेदार हैं। तोमर की खास बात यह है कि वे सूबे की सियासत में सीएम शिवराज सिंह के संकटमोचक मित्रों में माने जाते हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लेकर युवा मोर्चा और भाजपा में विधायक -सांसद ,मंत्री , दो दो दफा प्रदेश बनने के सफर तक साथ साथ हैं। दोनो की जोड़ी ने प्रदेश में तोमर के अध्यक्ष और शिवराज सिंह चौहान के सीएम रहते पार्टी को सत्तारूढ़ कराने में अहम भूमिका अदा की थी। जाहिर है विदा होते सीएम की पसंद का प्रश्न आया तो तोमर उनकी पहली पसंद होंगे। यदि राजस्थान में सीएम के पद पर राजपूत नेता नही चुने जाने पर मप्र में तोमर का नाम और भी मजबूत माना जाएगा। राजस्थान में महारानी वसुंधरा राजे को नए सीएम के लिए मनाना भाजपा नेतृत्व के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा।
-संघ प्रमुख सरसंघ चालक डॉ मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के मन की हुई तो शिवराज और वीडी में से कोई एक सीएम।
– ओबीसी- आदिवासी ,जातिगत समीकरण नही चले तो मप्र में पीएम मोदी के निकटस्थ नरेंद्र तोमर सीएम बनने के सर्वाधिक निकट।
– राजस्थान में राजपूत सीएम बने तो मप्र में प्रह्लाद पटेल,ज्योतिरादित्य सिंधिया,कैलाश विजयवर्गीय के साथ आदिवासी नेता डॉ सुमेर सोलंकी या कोई अन्य का भी भाग्य चमक सकता है।
– संघ नेता पहले इस बात से बचते थे कि लोगों में यह संदेश न जाए कि भाजपा और सरकारों में नियुक्ति में उनका कुछ पदों को छोड़ दखल रहता है। भले ही ऐसा वे करते हों। मगर पिछले एक दशक से यह वृत्ति बढ़ती जा रही है और इससे बचने के बजाए यह प्रचारित होने पर अच्छा ही महसूस करते हैं। भाजपा में संगठन मंत्री, महामंत्री से लेकर सरकार में शिक्षा- संस्कृति से जुड़े विभाग व पदों तक उनकी रुचि रहती थी। लेकिन अब संघ परिवार में परिवर्तन देखा जा रहा है। इसी के चलते कदाचरण के कारण संघ से मुक्त किए गए नेताओं को भाजपा में नेताओं के स्थान पर मलाईदार पद मिलते देखे जाने लगे हैं।
जो सीएम न बन सके उन पर पूरी सहानुभूति के साथ मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल के शेर मौजू है-
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमां फिर भी कम निकले…