TIO, बेंगलुरू

कर्नाटक में दो दिन पहले ही आखिरी बचे दो नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें एक श्रींगेरी के किगा गांव में रहने वाला नक्सल कोथेहुंडा रविंद्र (44) और दूसरा कुंडापुरा का रहने वाला थोंबुटु लक्ष्मी उर्फ लक्ष्मी पूजार्थी (41) थे। इनमें से एक ने चिकमंगलूर, जबकि दूसरे ने उडुपी जिले में सरेंडर किया। इसी के साथ राज्य की सिद्धारमैया सरकार ने दावा किया कि कर्नाटक अब नक्सल मुक्त राज्य बन चुका है। वैसे तो यह अपने आप में चौंकाने वाली बात है कि जिस राज्य में देश का आईटी हब- बंगलूरू मौजूद है, वहां नक्सल समस्या 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक तक बनी हुई थी। लेकिन इसे हटाने के लिए जो अभियान चलाया गया, वह अपने आप में काफी उपलब्धियां समेटे हुए हैं।

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर कर्नाटक में नक्सलवाद का क्या इतिहास रहा? राज्य को नक्सल मुक्त कैसे बनाया गया? इसके लिए क्या नीति अपनाई गई? नक्सलियों के इन आत्मसमर्पणों पर राज्य में कैसे श्रेय लेने की राजनीति शुरू हो गई है? आइये जानते हैं…

1. कर्नाटक में क्या है नक्सलवाद का इतिहास?
कर्नाटक में नक्सलवाद से जुड़ी हिंसक घटनाओं का इतिहास करीब पांच दशक पुराना है। कर्नाटक में नक्सलवाद के हिंसक बनने की अधिकतर घटनाएं 2000 के दौर में हुईं। 2005 में कबिनाले के हेब्री में पुलिस जीप में बमबारी का मामला हो या 2007 में अगुंबे में एक सब-इंस्पेक्टर की हत्या का मामला हो या फिर बात हो 2008 में नादपलु में भोज शेट्टी और उनके रिश्तेदार सदाशिव शेट्टी की हत्या की। कर्नाटक में नक्सली घटनाएं लगातार सिर उठाती रहीं।

हालांकि, पुलिस की चौकसी और सरकार की माओवाद को खत्म करने की कोशिशें लगातार जारी रहीं और 2010 में ही केंद्र सरकार ने कर्नाटक को नक्सल प्रभावित से आजाद करार दिया। मुख्यत: मलनाड क्षेत्र में कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो कर्नाटक में इसका प्रभाव काफी कम रहा।

कैसे नक्सल मुक्त बना कर्नाटक?
2016 में केरल भागे नक्सली, वहां के माओवादी संगठन का नहीं मिला साथ
कर्नाटक में अलग-अलग सरकारों के नेतृत्व में नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने की कोशिशें जारी रहीं। इन कोशिशें के चलते 2016 में नौ नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया। इसके ठीक बाद 19 नक्सलियों का एक समूह पड़ोसी राज्य- केरल में चला गया। पुलिस ने इनकी खोज की कोशिश जारी रखीं।

कर्नाटक लौटने की कोशिश के दौरान सुरक्षाबलों ने नक्सल नेतृत्व के कई चेहरों को मार गिराया गया। इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने भी नक्सलियों के खिलाफ अभियान में तेजी दिखाई और 2023 में पश्चिमी घाट जोनल कमेटी के प्रमुख संजय दीपक राव को हैदराबाद से गिरफ्तार कर लिया। दो महीने बाद ही आंध्र प्रदेश की नक्सल कविता उर्फ लक्ष्मी को एनकाउंटर में मार गिराया गया।

एक के बाद एक नाकामी की वजह से कर्नाटक के नक्सल संगठन को केरल के माओवादी संगठनों से मदद मिलनी बंद हो गई। इस फूट का कर्नाटक के नक्सल-रोधी दस्ते को फायदा मिला। उसे बीते साल नवंबर में कर्नाटक में नक्सलियों के सरगना विक्रम गौड़ा के पश्चिमी घाट से लगे एक क्षेत्र में लौटने की जानकारी मिली। एएनएफ ने यहां जाल बिछाकर विक्रम गौड़ा को मार गिराया। बताया जाता है कि विक्रम पर 100 से ज्यादा केस थे और वह कर्नाटक में नक्सलवाद को बढ़ाने वाला प्रमुख चेहरा था।

केरल से लौटा नक्सलियों का समूह, कर्नाटक पुलिस ने कराया सरेंडर
2024 में जब केरल भागे आठ नक्सली कर्नाटक लौटे, तो पुलिस, खुफिया एजेंसियों और कर्नाटक के नक्सल-रोधी बल (अठऋ) का नेटवर्क सक्रिय रहा। इस नेटवर्क ने इन सभी नक्सलियों से आत्मसमर्पण कराने का लक्ष्य रखा।
पुलिस को कर्नाटक को नक्सल मुक्त बनाने में सबसे बड़ी सफलता फरवरी 2024 में मिली, जब उसने माओवादी नेता अंगाड़ी सुरेश उर्फ प्रदीप को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया। 49 वर्षीय सुरेश सीपीआई (माओवादी) के पश्चिमी घाट जोनल कमेटी का हिस्सा रहा था। पकड़े जाने के बाद उसने जेल से ही अपनी पत्नी और बागी वंजाक्षी को चिट्ठी लिखी और उससे सरेंडर करने की अपील की।

पुलिस ने इस चिट्ठी को पश्चिमी घाट पर स्थित कई गांवों में बांटना शुरू किया। उन्हें उम्मीद थी कि अगर वंजाक्षी को सरेंडर करने पर मजबूर कर लिया गया तो बाकी नक्सलियों को पकड़ना आसान हो जाएगा। आखिरकार 8 जनवरी 2025 को वंजाक्षी और 5 अन्य नक्सलियों ने बंगलूरू में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के दफ्तर के बाहर सरेंडर कर दिया। नक्सलियों के इस बड़े आत्मसमर्पण के बाद कर्नाटक सरकार को सिर्फ कोतेहुंडा रविंद्र की तलाश थी, जिसे कर्नाटक का आखिरी बचा नक्सल करार दिया गया था। अब बीते हफ्ते रविंद्र की गिरफ्तारी के बाद कर्नाटक नक्सल मुक्त करार दे दिया गया।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER