अरविंद तिवारी

गांधी नेहरू परिवार की तीन पीढिय़ों से वास्ता रखने वाले कांग्रेस के दिग्गज कमलनाथ तीखे तेवर दिखाने के बाद एकाएक बैकफुट पर आ गए। कहा यह जा रहा था कि कमलनाथ सांसद बेटे नकुलनाथ के साथ भाजपा में जा रहे हैं और डेढ़ दर्जन से ज्यादा कांग्रेस विधायक इस सफर में उनके साथ रहेंगे। छिंदवाड़ा से भोपाल होते हुए जब वे दिल्ली पहुंचे तो दल-बदल की बात और जोर पकड़ गई। 24 घंटे बाद ही सुर बदल गए और तरह-तरह की नई कहानियां सामने आने लगी। अब उनके इर्द-गिर्द सियासत करने वाले ही कह रहे हैं कि बात बनी नहीं, इसलिए ‘इंटरवल’ हो गया। वैसे कमलनाथ का बैकफुट पर आना उनके मिजाज के विपरीत ही है।

सरकार डॉ. मोहन यादव की, सहमति सुरेश सोनी की

निगम, मंडल और आयोग के 90 प्रतिशत से ज्यादा पदाधिकारी बेदखल कर दिए गए। नई नियुक्तियां लोकसभा चुनाव के बाद होना है। हटाए गए नेताओं के साथ ही पद पाने के इच्छुक नेताओं ने भी ‘परफार्मेंस’ दिखाने के साथ ही परिक्रमा भी शुरू कर दी है। सबसे ज्यादा भीड़ संघ के दिग्गज सुरेश सोनी के यहां देखने को मिल रही है। वे जहां भी पहुंचते हैं, दावेदार धोक लगाने पहुंच जाते हैं। कहा यह जा रहा है कि मोहन सरकार के दौर में निगम-मंडल की नियुक्ति में सोनी की भूमिका सबसे अहम रहना है। दूसरे शब्दों में कहें तो आदेश तो सरकार से जारी होंगे, लेकिन बिना सोनी की सहमति के बात बनेगी नहीं।

यूं मायने रखता है अशोक सिंह का राज्यसभा में जाना

जीतू पटवारी से लेकर अरुण यादव और कमलनाथ तक के नाम मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए चले, लेकिन मौका मिला ग्वालियर के अशोक सिंह को। खांटी कांग्रेसी परिवार से ताल्लुक रखने वाले अशोक सिंह के पिता राजेंद्र सिंह कांग्रेस की राजनीति में सिंधिया घराने के घोर विरोधी माने जाते थे। खुद अशोक सिंह चार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और शिकस्त खाने के बाद भी पूरा समय कांग्रेस को देते हैं। उन्हें राज्यसभा में मौका दिलवाने में बरास्ता नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भंवर जितेन्द्र सिंह की अहम भूमिका रही। दोनों ने पिछड़े वर्ग से वास्ता रखने वाले इस नेता का नाम दमदारी से रखा और मंजूरी भी दिलवा दी। हकीकत तो यही है अब कहने वाले कुछ भी कहें।

बड़ी जीत के बावजूद अड़चन तो बड़ी ही है

बीते चार महीने में प्रधानमंत्री दो बार झाबुआ चुके हैं। स्वाभाविक है झाबुआ सीट इस बार भी अपने पाले में रखने में भाजपा कोई कसर बाकी नहीं रख रही है। अभी यहां से गुमानसिंह डामोर सांसद हैं। जिनके खाते में कांग्रेस के कद्दावर नेता कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे विक्रांत भूरिया को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में शिकस्त देने की उपलब्धि दर्ज है। मौका तो इस बार फिर डामोर को ही मिलना चाहिए, लेकिन संघ से वास्ता रखने वाली भाजपा की एक मजबूत लॉबी यहां से राजाराम कटारा का नाम दमदारी से आगे बढ़ा रही है। शिवगंगा अभियान की कमान संभालने वाले कटारा विधानसभा के टिकट के लिए भी दावेदार थे, पर तब बात नहीं बनी थी।

दिल्ली से ही होगा मुख्य सचिव का फैसला

मुख्य सचिव वीरा राणा को 6 माह का एक्सटेंशन मिलता है या फिर मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव की कमान लोकसभा चुनाव के पहले किसी नए अफसर को मिलेगी, इसका फैसला दिल्ली से ही होगा। राणा 31 मार्च को सेवानिवृत्त हो रही हैं। उनके एक्सटेंशन की कोई पहल अभी सरकार की ओर से हुई नहीं है। मार्च के पहले पखवाड़े में चुनाव आचार संहिता लग जाएगी। सरकार की कोशिश रहेगी कि उसके पहले फैसला हो जाए, नहीं तो बात चुनाव आयोग तक जाएगी। यदि प्रदेश के किसी अफसर को मौका देने पर सहमति बनती है तो फिर संजय बंदोपाध्याय, मोहम्मद सुलेमान और राजेश राजौरा में से किसी एक को मौका मिल सकता है। यदि दिल्ली की ओर निगाहें करें तो बात अनुराग जैन से आगे नहीं बढ़ती है।

पहले उनकी राह अलग थी, अब ये अलग रास्ते पर

पुष्यमित्र भार्गव जब महापौर बने थे, तब प्रतिभा पाल निगमायुक्त थी। चूंकि तब के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महापौर को पसंद नहीं करते थे, इसलिए निगमायुक्त भी अलग ही रास्ते पर चलती थीं। अब न शिवराज प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, न ही प्रतिभा पाल निगमायुक्त। लेकिन बात अब भी नहीं बन रही है। महापौर और निगमायुक्त अलग-अलग रास्तों पर चलते नजर आ रहे हैं। महापौर परिषद से भी निगमायुक्त का तालमेल जम नहीं पा रहा है। निमगायुक्त के कई फैसलों पर महापौर तल्ख प्रतिक्रिया भी दे चुके हैं। अब इंतजार इंदौर को महापौर की पसंद का निगमायुक्त मिलने का है। देखते हैं कैलाश विजयवर्गीय कितनी मदद करते हैं।

इस सूची में एक नया नाम और…

शिवराज सिंह चौहान के नजदीकी अफसर तो पहले से ही ‘नए सरकार’ के निशाने पर रहे। चाहे मनीष सिंह हों या नीरज वशिष्ट या फिर शिवराज वर्मा। इस सूची में अब नया नाम जुड़ गया है, नीरज वशिष्ट के नजदीकी रिश्तेदार विनित तिवारी का, जिन्हें एक वजनदार पद से बेदखल कर मंत्रालय में लूपलाईन में रख दिया गया है।

चलते-चलते

इंदौर डायोसिस के बिशप चाको जल्दी ही रिटायर होने वाले हैं। अपनी सौम्यता और शालीन व्यवहार के कारण एक अलग पहचान रखने वाले धर्मगुरु का शहर के लोगों से भी अच्छा तालमेल रहा। बिशप चाको का स्थान फादर थामस मैथ्यू लेंगे। जो अभी सेंटपॉल स्कूल के प्रबंधक और रेड चर्च के पेरिश-प्रिस्ट हैं।

पुछल्ला

इंदौर के पूर्व कलेक्टर मनीष सिंह और लोकसभा अध्यक्ष रह चुके देश के पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल समधी बनने जा रहे हैं। पाटिल की पोती रुद्राली, मनीष सिंह के एडवोकेट बेटे कुशाग्र सिंह के साथ दाम्पत्य सूत्र में बंध रही है। मुख्य समारोह दिल्ली में होगा और उसके बाद भोपाल में भी एक दावत। इंदौरियों तक निमंत्रण पहुंच चुके हैं।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER