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भारतीय रिजर्व बैंक यानी RBI ने गुरुवार को रेपो रेट में इजाफा न करने का फैसला किया है। यानी ब्याज दर 6.50% बनी रहेगी। इससे पहले RBI ने रेपो रेट में लगातार 6 बार इजाफा किया था। आज के RBI के फैसले से पहले एक्सपर्ट अनुमान लगा रहे थे कि रेपो रेट में 0.25% का इजाफा किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हाल ही में फेडरल रिजर्व, यूरोपियन सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्लैंड समेत दुनिया के तमाम सेंट्रल बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ाई थीं।
RBI ने 2022-23 में 6 बार में ब्याज दरों में 2.50% की बढ़ोतरी की है। मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग हर दो महीने में होती है। पिछले वित्त वर्ष की पहली मीटिंग अप्रैल में हुई थी। तब RBI ने रेपो रेट को 4% पर स्थिर रखा था, लेकिन 2 और 3 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट को 0.40% बढ़ाकर 4.40% कर दिया। 22 मई 2020 के बाद रेपो रेट में ये बदलाव हुआ था।
इसके बाद 6 से 8 जून को हुई मीटिंग में रेपो रेट में 0.50% इजाफा किया। इससे रेपो रेट 4.40% से बढ़कर 4.90% हो गई। फिर अगस्त में इसे 0.50% बढ़ाया गया, जिससे ये 5.40% पर पहुंच गई। सितंबर में ब्याज दरें 5.90% हो गईं। फिर दिसंबर में 6.25% पर पहुंच गईं। इसके बाद फरवरी 2023 में ब्याज दरें 6.25% से बढ़ाकर 6.50% कर दी गईं थीं।
RBI के पास रेपो रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो, RBI रेपो रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को RBI से मिलेने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है।
इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में RBI रेपो रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को RBI से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है। इस उदाहरण से समझते हैं। कोरोना काल में जब इकोनॉमिक एक्टिविटी ठप हो गई थीं तो डिमांड में कमी आई थी। ऐसे में RBI ने ब्याज दरों को कम करके इकोनॉमी में मनी फ्लो को बढ़ाया था।