TIO, नई दिल्ली।

हेलिकॉप्टर हादसे में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की आकस्मिक मौत भारत के लिए भी बड़ा नुकसान है। ये रईसी ही थे, जिन्होंने चीन और पाकिस्तान की ओर से दबाव डाले जाने के बावजूद चाबहार बंदरगाह भारत को सौंपने का रास्ता साफ किया। यही नहीं, ईरान के इस्लामिक देश होने के बाजवूद रईसी ने कश्मीर के मसले पर भी हमेशा भारतीय रुख का समर्थन किया।

भारत ने बीते सप्ताह ही ईरान के साथ चाबहार स्थित शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह के संचालन व विकास के लिए 10 वर्ष का अनुबंध किया है। यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक पहुंच का रास्ता देता है। चीन ने पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह पर जब से पैर जमाए हैं, तभी से भारत के लिए रणनीतिक तौर पर यह जरूरी हो गया था कि अरब सागर में भारत अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए चाबहार में मौजूद रहे। 2003 में पहली बार भारत-ईरान के बीच इस बंदरगाह के विकास और संचालन को लेकर सहमति पत्र पर दस्तखत किए गए थे। लेकिन, दो दशक तक बंदरगाह से संचालन का दीर्घकालिक समझौता अलग-अलग कारणों से लटकता रहा। 2017 में भारत ने बेहेश्ती बंदरगाह पर टर्मिनल का निर्माण कर उसका संचालन शुरू कर दिया। लेकिन, दीर्घकालिक समझौता 2024 में हुआ।

भले ही ईरान की सत्ता और विदेश नीति सर्वोच्च नेता अली खामनेई के ही हाथों में है लेकिन लेकिन रईसी जैसे उनके वफादार एक दायरे में इन नीतियों पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव भी डालते हैं। भारतीय हितों के प्रति संवेदनशीलता रखने वाले रईसी ने इस दायरे में से रिश्ते बढ़ाने की गुंजाइश निकाली। ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामनेई भारत के साथ चाबहार समझौते को लेकर अनिश्चय की स्थिति में थे। इसी वजह से दो दशक तक ईरान के किसी भी राष्ट्रपति ने इस समझौते को आगे बढ़ाने में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन, जब रईसी राष्ट्रपति बने, तो ईरान मुश्किल हालात में था, जहां उसे भारत के सहयोग की जरूरत थी। यह बात भी राज नहीं है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ईरान से तेल खरीदकर उसे जरूरी आर्थिक राहत देता रहा है। रईसी ने भी इस समझौते को लेकर दृ़ढ़ता दिखाई और पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान रईसी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के कुछ महीने बाद ही यह समझौता अमल में आ गया।

घनिष्ठ संबंध…फिर भी चीन के हाथों में खेलने से बचे
अमेरिकी प्रतिबंधों के शिकार ईरान के चीन के साथ स्वाभाविक रूप से घनिष्ठ संबंध रहे हैं। चीन ईरानी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। इसके बावजूद रईसी ने अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही तय किया था कि चीन के साथ घनिष्ठता के बावजूद भारत के साथ करीबी रिश्ते रखे जाएंगे।

रईसी ने पीएम मोदी को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था। पीएम मोदी के प्रतिनिधि के तौर पर विदेश मंत्री एस जयशंकर उनके शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे थे।अफगानिस्तान, इस्राइल-हमास, यमन, लीबिया जैसे तमाम देशों में अस्थिरता के दौर में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी भारत के साथ निकटता से सहयोग करते दिखे। बहरहाल, 50 दिन बाद जब ईरान का नया राष्ट्रपति चुना जाएगा, तब तय होगा कि भारत के ईरान के साथ संबंध अब किस दिशा में आगे बढ़ेंगे।

मेजबान पाकिस्तान को कश्मीर पर दिया झटका
पिछले माह रईसी के पाकिस्तान दौरे में साझा प्रेस वक्तव्य में पाकिस्तान की तरफ से कश्मीर का जिक्र किया गया, जिसका रईसी ने समर्थन नहीं किया और सिर्फ गाजा तक सीमित रहे। बाद में जब भारत ने उनकी सरकार से स्पष्टीकरण मांगा, तो साफ कहा कि कश्मीर पर ईरान का रुख जरा भी नहीं बदला है। इस्लामाबाद में कश्मीर साझा वक्तव्य का नहीं, बल्कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के वक्तव्य का हिस्सा था। असल में पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर कश्मीर मुद्दे पर लामबंदी के प्रयास करता रहता है। लेकिन, रईसी ने पाकिस्तान की चालबाजियों से कभी ईरान के साथ भारत द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं होने दिया है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER