TIO, चंडीगढ़।

केंद्र सरकार की ओर से मसूर, उड़द, अरहर (तूर), मक्की और कपास की फसल पर अनुबंध की शर्त पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी का प्रस्ताव किसानों ने नामंजूर कर दिया है। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि सरकार के साथ वार्ता जारी रखेंगे। 21 फरवरी की सुबह 11 बजे दिल्ली कूच किया जाएगा। दातासिंह वाला बॉर्डर पर लगातार लंगर चल रहे हैं। इसमें सभी किसानों के लिए हर समय भोजन तैयार रहता है। सुबह ही सेवादार लंगर बनाने शुरू कर देते हैं, जो देर रात तक चलता रहता है। अब यहां माहौल किसी गुरुद्वारे या घर से कम नहीं है। किसानों को केवल अपनी मांगें पूरी करवाने की चिंता है।

किसानों की बॉर्डर पर लगातार बढ़ रही संख्या
दातासिंह वाला बॉर्डर पर किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हरियाणा के भी काफी किसान पंजाब की तरफ बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं। धीरे-धीरे किसानों का काफिला बढ़ता जा रहा है। इस बार महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही है। महिलाएं अपने बच्चों को लेकर मोर्चा संभाल रही हैं।

हाईवे की लाइटों से मिल रही बिजली
ट्रॉलियों में आए सैकड़ों किसानों के पास अपने मोबाइल फोन, लाइट आदि जलाने के लिए कई साधन हैं। उन्होंने राजमार्ग पर लगी लाइटों के कनेक्शनों को खोलकर उनसे अपने बिजली के तार जोड़ दिए हैं। इससे उनके बिजली के उपकरण चल पा रहे हैं। वहीं, कहीं पर किसान ट्रैक्टर से बिजली बना रहे हैं। जिस जगह सुबह से लेकर रात्रि तक किसानों का मंच पर संबोधन हो रहा है उस लाउड स्पीकर के लिए बिजली को भी ट्रैक्टर से बनाया जा रहा है। यह ट्रेक्टर दिनभर स्टॉर्ट रहता है।

वार्ता और टकराव दोनों के लिए तैयार
किसान नेता जयसिंह जलबेड़ा ने कहा कि 21 फरवरी को हम दिल्ली कूच के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। पहले हमारी कोशिश है कि शांतिपूर्ण वार्ता से हल निकल जाए, अगर हल नहीं निकलता है तो दिल्ली कूच करेंगे। चाहें फिर टकराव में लाठियां और आंसू गैस के गोले ही क्यों न झेलने पड़ जाएं। वहीं हरियाणा में किसानों को काफी सख्ती से सरकार और प्रशासन ने रोक रखा है हम बैरिकेड से आगे बढ़ेंगे तो हरियाणा के किसान भी हमारे साथ आगे जुड़ जाएंगे।

सरकार का फामूर्ला किसानों के साथ मजाक
किसान नेता रणजीत राजू ने बताया कि सरकार का एमएसपी से जुड़ा प्रस्ताव किसी काम का नहीं है। वह कह रहे हैं हमारे पास डाटा है और रिकॉर्ड है। अगर किसान धान छोड़कर मक्का, बाजरा या कोई दूसरी फसल बोते हैं तो न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी दिया जाएगा। मगर धान और गेहूं पंजाब हरियाणा में है। हरियाणा में भी कुछ क्षेत्र में ही धान होता है। मगर जो दूसरे राज्य हैं वह क्या करेंगे। जैसे राजस्थान में हम तो चना, सरसों, गेहूं, ग्वार, बाजरा, ज्वार, अरहर, उड़द और दूसरी फसल बोते हैं, उनका क्या होगा। अब कर्नाटक की तरफ किसान बीज की खेती करता है उसे कैसे इस फामूर्ले से एमएसपी मिलेगा। सरकार को सभी किसानों की तरफ देखना होगा। यह फामूर्ला तो किसानों के साथ मजाक जैसा है। अभी भी सरकार किसानों को उलझाने का काम कर रही है।

सरकार एमएसपी नहीं, खरीद की गारंटी दे रही : डल्लेवाल
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि एमएसपी की कानूनी गारंटी के बदले केंद्रीय मंत्रियों की ओर से जो प्रस्ताव सामने आया है, वह हमारी मांगों की सहमति के मापदंडों पर बहुत दूर है। दरअसल, मंत्रियों ने किसान संगठनों को एमएसपी की नहीं, बल्कि खरीद के कॉन्ट्रैक्ट की गारंटी दी है। यानी करार के तहत सरकार की नोडल एजेंसियों के माध्यम से पांच साल के लिए फसलों की खरीद सुनिनिश्चत की जा रही है। पांच साल के बाद सरकार का अगला कदम क्या होगा, इस पर कोई प्लान नहीं है।

पंजाब के मुख्यमंत्री तीन बार बैठक में हुए शामिल
किसानों की तीन प्रमुख मांगें हैं। इनमें सभी फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्जमाफी और बिजली अधिनियम वापस लेना शामिल हैं। पांच या सात साल के करार से प्रस्ताव से किसानों को कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि इस प्रस्ताव के साथ केंद्रीय मंत्रियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि खरीद की कोई तय सीमा नहीं होगी। एमएसपी की कानूनी गारंटी पर अब तक केंद्रीय मंत्रियों और किसान संगठनों के बीच चंडीगढ़ में चार बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन हल नहीं निकल पाया है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद तीन बार इस बैठक में शामिल हो चुके हैं।

सभी किसान संगठनों के साथ बातचीत की, लेकिन…
इससे पहले रविवार रात को चौथे दौर की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने धान और गेहूं के अलावा पांच अन्य फसलों पर एमएसपी गारंटी का प्रस्ताव पेश किया था। इसके लिए किसानों को भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नैफेड) और भारतीय कपास निगम (सीसीआई) से पांच साल का करार करना होगा। डल्लेवाल ने कहा कि वह फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए किसी प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट की प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे। डल्लेवाल ने कहा कि सोमवार को उन्होंने सभी किसान संगठनों के साथ बातचीत की, लेकिन पांच फसलों पर पांच साल के लिए कॉन्ट्रैक्ट वाले प्रस्ताव पर सहमति नहीं बन पा रही।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER