राकेश अचल

नूपुरध्वनि अब घंटाध्वनि में तब्दील हो चुकी है.अब उसकी प्रतिध्वनियां देश की सीमाओं को पार कर तमाम इस्लामिक मुल्कों में सुनाई दे रहीं हैं,इसलिए ये सही समय मौक़ा है कि हमारी सरकार हमारे अंदरूनी मामलों में दखल की तथाकथित तमाम कोशिश का मुंहतोड़ जबाब दे और प्रमाणित करे कि भारत के मामले में चूं-चपड़ करने की किसी को कोई जरूरत नहीं है ,क्योंकि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो धर्मनिरपेक्ष है और ईश्वर-अल्लाह में कोई भेद नहीं करता .
नूपुर शर्मा द्वारा दिए गए बयान से पैगमबर मोहम्मद साहब का अपमान हुआ या नहीं ये तय करने वाले हम और आप कोई नहीं होते .हाँ पैगमबर साहब के अनुयायियों की भावनाओं को आहत होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता. इस कथित अपराध के लिए नूपुर और नवीन जिंदल के खिलाफ राजनीतिक स्तर पार कार्रवाई के साथ ही विधिक कार्रवाई भी की जा रही है. उनके खिलाफ घृणा फ़ैलाने वाले बयान देने का मामला दर्ज है .यदि वे सचमुच दोषी पायी जाएँगी तो उन्हें बाकायदा सजा भी मिल सकती है,क्योंकि हमारे यहां इसका प्रावधान है .

ईश निंदा और किसी की धार्मिक भावनाओं को भड़काने के मामले में सरकार को अतिरिक्त संवेदनशीलता बरतना चाहिए .
इस मामले को लेकर इस्लामिक देश से कतर से शुरू हुई प्रतिक्रिया अब ओमान,यूएई,इंडोनेशिया से होती हुई मलेशिया तक जा पहुंची है .ऐसे में भारत सरकार का दायित्व बनता है कि वो फौरन इस मामले में दखल करे और बाहर की दुनिया को सन्देश दे कि भारत अपने अंदरूनी मामले खुद निबटायेगा,किसी को उसमें दखल देने की न जरूरत है और न अधिकार है ,क्योंकि भारत में दुनिया की इस्लामिक आबादी का पांचवा हिस्सा आज से नहीं बल्कि सदियों से पूरी नागरिक आजादी के साथ रह रहा है .आजादी के पहले से रह रहा है और आजादी के बाद भी रह रहा है. देश के विभाजन के बाद भी ये आबादी अपनी मर्जी से हिन्दुस्तान में है .
हिदुंस्तान को हिन्दुओं का स्थान बनाने की मौजूदा सत्तारूढ़ दल की सनक की वजह से ही भारत के सामने ये समस्याएं पैदा हुईं हैं. बीते 75 साल में ये पहला मौक़ा है जब किसी धर्मिक मामले को लेकर भारत के बाहर छोटे-छोटे मुल्कों ने अपना मुंह खोला है ,अन्यथा भारत की सम्प्रभुता,एकता,,अखंडता इतनी मजबूत है कि कोई भी इसकी और आँख उठाकर नहीं देख पाया ,यहां तक कि विस्तारवादी चीन भी .चीन की और से भी जो हरकतें हुईं हैं वे भी बीते 8 साल की उपज हैं .जाहिर है कि इस सबके लिए सिर्फ और सिर्फ हमारी जाँची-परखी विदेश नीति को त्यागना है .

दुनिया में बढ़ती धार्मिकता कट्टरता के बीच हम ही एकमात्र ऐसे देश हैं जो विविध धर्मों,पूजा पद्यतियों के मानने की आजादी देते हुए समरसता के साथ रहते आये हैं. हमने इस्लाम के जन्म के पहले से बसुधैव कुटुंबकम का सिद्धांत माना ही नहीं है बल्कि इस पर अमल करके दिखाया है .हमारी विदेश नीति में इस मुद्दे को लेकर कभी कोई भ्रम पैदा नहीं हुआ. दुनिया के तमाम इस्लामिक देशों के साथ हमारे पुस्तैनी रिश्ते रहे हैं ,किन्तु बीते कुछ सालों में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से अनुख की वजह से हमारी सरकार ने विदेश नीति में तमाम तब्दीलियां कर डालीं और अब उसका खमियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है .

भारत की विदेश नीति की कमजोरी का ही नतीजा है कि हमारा समर्थक रहा अमेरिका भी मानव अधिकारों के कथित उललंघन और अब अल्पसंख़्यकों के मामले को लेकर हमें टोकने की जुर्रत कर रहा है .पहले ऐसा कभी नहीं हुआ ,क्योंकि हमारी विदेश नीति में सब कुछ साफ़ था .हमे नेता किसी विदेशी नेता के चुनाव प्रचार का अंग नहीं बने थे और न उन्होंने विदेशों में जाकर अपनी जांघ उघड़कर दिखाई थी .तारीख गवाह है कि बीते 8 साल में वो सब हुआ है जो पहले कभी नहीं हुआ .जो पहले कभी नहीं हुआ और भविष्य में नहीं होगा ,ये जरूरी नहीं है. हमें नए प्रयोग करना चाहिए किन्तु देश की अस्मिता की कीमत पर नहीं .

देश में ये पहली बार हुआ है कि योजना बनाकर अल्पसंख्यकों के पूजाघरों का खनन कराया जा रहा है ,उसके लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाया जा रहा है .अल्पसंख्यकों को चीन्ह-चिन्हकर दलगत राजनीति में अप्रासंगिक बनाने के लिए उन्हें राज्यसभा जैसे उच्च सदनों से वंचित रखा जा रहा है . स्वाभाविक है इन सारे कदमों की प्रतिक्रिया होगी क्योंकि ये सब कदम हमारी सरकार के ‘ सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के छद्म को उजागर कर रहे हैं .सरकार अपनी जिद पर अड़ी है .

ताजा प्रसंग में एक बात और है कि भारत के अल्पसंख्यकों को भी ये तय कर लेना चाहिए कि वे घर के मामले घर में सुलझाएंगे ,किसी और को उसमें दखल देने की इजाजत नहीं देंगे और ऐसी तमाम कोशिशों का विरोध करेंगे .धर्म एक चीज है और मुल्क दूसरी बड़ी चीज जो हर तरह से धर्म से बड़ी चीज है .आज ये नामुमकिन है कि देश के 18 करोड़ अल्पसंख्यक धार्मिक आधार पर देश के बाहर कर दिए जाएँ इसलिए अल्पसंख्यकों को भी मान लेना चाहिए कि वे भारत के जन्मजात नागरिक हैं इसलिए उन्हें यहां कि अस्मिता,सार्वभौमकिता और अखण्डता की रक्षा करते हुए ही कोई प्रतिक्रिया करना है .

व्यावहारिक बात है कि कुछ सिरफिरों की वजह से देश को दांव पर नहीं लगाया जा सकता. सिरफिरे इधर भी हैं और उधर भी.इनका काम ही रिश्तोंमें धर्म के आधार पर खटास पैदा करना है .लेकिन हर भारतीय का दायित्व इन कोशिशों को नाकाम करना है .जो ऐसा नहीं कर रहे वे देश के साथ द्रोह कर रहे हैं. जाने में या अनजाने में .ईश निंदा से दुनिया में कभी किसी ने किसी ईश्वर को आहत होते हुए नहीं देखा. ईश्वर जहाँ भी है चैन से है.उसकी शक्ल और नाम कुछ भी हों चाहे .परेशान केवल उसके मानने वाले हैं. अरे भाई ईश्वर सर्वशक्तिमान है ,यानि अकबर है .अल्लाह को अकबर क्यों कहते हैं,क्योंकि वो सर्वशक्तिमान है और जो सर्वशक्तिमान होता है उसके ऊपर निंदा या प्रशंसा का कोई असर नहीं होता .
ईश निंदा के कथित अपराध की सजा ईश्वर ही दे सकता है ,आप और हम कौन होते हैं भला ? हम ज्यादा से ज्यादा इस अपराध के लिए बनाये गए कानूनों का सहारा ले सकते हैं ,लेते भी हैं .ऐसे में देश के भीतर और बाहर देश के बाहर बेकार कि प्रतिक्रियाओं की मुखालफत खुद अल्पसंख्यकों को करना चाहिए..सड़कों पर उतरने या पथराव करने से बेहतर है की आप अदालतों का सहारा लें .बहुसंख्यक भारतीय तो ऐसा करेंगे ही .आइये हम ऊपर वाले से सबको सन्मति देने की प्रार्थना करें .क्योंकि हम सब उसी की संतान है .सन्मति से ही बात बनेगी .आपको याद होगा की वर्षों पहले मशहूर पेंटर एमएफ हुसैन इसी तरह के मामले को लेकर बहुसंख्यकों के निशाने पर आये थे और अंतत: उन्होंने भारत छोड़ कर कतर में ही शरण ले ली थी .हुसैन और नूपुर ष्षर्मा में आखिर क्या भेद है ?दोनों के अपने एजेंडे हैं लेकिन उन्हें देश पर नहीं थोपा जा सकता .

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER