TIO, सागर
चरखे की चाहत और अनंतपुरा गांव के युवक जेठालाल भाई के स्वदेशी वस्त्र प्रेम से प्रभावित होकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 88 साल पहले 1 दिसंबर 1933 को सागर जिले के रहली के छोटे से ग्राम अनंतपुरा आए थे। बापू ने अनंतपुरा गांव में रात्रि विश्राम कर पूरे 15 घंटे बिताए थे। बापू की यात्रा के बाद से रहली के समीपस्थ ग्राम अनंतपुरा को “गांधी ग्राम” के रूप में जाना जाने लगा। उस समय के दो सौ घरों के छोटे से ग्राम अनंतपुरा में अंग्रेजी शासनकाल के दौरान जेठालाल भाई नामक युवक द्वारा खादी आश्रम का संचालन किया जाता था। इस आश्रम में गांव के लोगों को रोजगार प्रदान किया जाता था, साथ ही स्वदेशी वस्त्रों और स्वदेशी विचारधारा का प्रचार भी किया जाता था। जेठालाल पत्र व्यवहार के माध्यम से गांधीजी से मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। जेठालाल की राष्ट्रभक्ति और स्वदेशी प्रेम से प्रभावित होकर गांधी जी अनंतपुरा जेठालाल का हौसला बढ़ाने आए थे। हालांकि, आज जेठालाल के परिजन अनंतपुरा में नहीं रहते। आजादी के बाद पूरा परिवार नागपुर चला गया था और खादी आश्रम के अवशेष भी अब नहीं बचे हैं। लोगों को इस बात का दुख है।
1 दिसंबर 1933 को बापू दोपहर 3:30 बजे अनंतपुरा गांव पहुंचे थे। देवरी से अनंतपुरा आते समय बापू का पूरे रास्ते में स्वागत किया गया था। गांव में पहुंचकर सबसे पहले बापू जेठालाल से मिले और खादी आश्रम का निरीक्षण किया। खादी आश्रम से बापू इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अनंतपुरा गांव के बारे में एक संपादकीय लिखी। गांव के मध्य बने चबूतरे से सभा को संबोधित करते हुए बापू ने छुआछूत मिटाने की अपील की और चरखे के महत्व को समझाते हुए कहा था कि “चरखा देश के करोड़ों भाईयों का धी, दूध और रोटी है।” सायंकालीन प्रार्थना सभा के बाद बापू ने झोपड़ियों में जाकर लोगों के हालचाल पूछे। रात्रि विश्राम के बाद बापू ने प्रात:कालीन प्रार्थना सभा की और फिर सुबह 6:30 बजे अनंतपुरा ग्राम से दमोह के लिए रवाना हुए। इस यात्रा में उनके साथ स्व. व्यौहार राजेन्द्र सिंह और स्व. पं. रविशंकर शुक्ल भी थे।
नई पीढ़ी अनभिज्ञ
बापू की अनंतपुरा यात्रा के प्रत्यक्षदर्शी और उस समय की पीढ़ी के लोग अब नहीं रहे, नई पीढ़ी बापू की इस यात्रा से पूरी तरह अनजान है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने अपने दादा-परदादा से गांधी जी की इस ऐतिहासिक यात्रा के बारे में सुना था।