TIO BHOPAL
एक लेखक की इच्छा होती है कि उसका लिखा हुआ पढा जाये, लोग उस पर चर्चा करें, टीका टिप्पणी करें, नुक्ताचीनी करें, उसके विचारों को जानें. पाठक सहमत हों या न हों पर उन तक अपनी बात पहुँचाना ही उद्देश्य होता है. लेकिन लेखन को पाठक तक पहुँचने से पहले एक व्यवस्था यानि सिस्टम से गुज़रना होता है.
ये एक ऐसी व्यवस्था है जिसके कारण कई बार श्रेष्ठ रचनाएं पाठक तक पहुंच ही नही पातीं या छद्म नामो से पहुँचती हैं. हमारा समाज लेखकों साहित्यकारों से अत्यधिक नैतिकता की अपेक्षा रखता है और साथ ही साथ वो पूंजीपतियों को एक तरह का खलनायक समझता है. दोनो ही धारणाओं पर अलग अलग दृष्टिकोण से सार्थक बहस और विमर्श की आवश्यकता को दर्शाता है नाटक …”चौथी सिगरेट”…..