राकेश अचल

मध्यप्रदेश देश के उन गिने-चुने राज्यों में से है जहां पूर्व मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश के लिए समस्या बने हुए हैं. ये पूर्व मुख्यमंत्री अपनी-अपनी पार्टी के बंटाधार माने जाते हैं ,हालांकि इनकी भूमिका मौजूदा मुख्यमंत्री के तारणहार जैसी ही है ,मुद्दों से आम जनता का ध्यान हटाने और सरकार को राहत पहुँचाने के लिए ये पूर्व मुख्यमंत्री अपनी पूरी ताकत लगा दे रहे हैं .
सबसे पहले बात करते है मप्र में एक दशक तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह की. दिग्विजय सिंह सरकार की नाकामियों और दम्भ की वजह से ही मप्र में कांग्रेस के 2003 में पांव उखड़े थे , पूरे पंद्रह साल तक कांग्रेस सत्ता में वापस नहीं लौटी.प्राय्श्चत के तौर पर दिग्विजय सिंह ने पूरे एक दशक तक न कोई चुना लड़ा और न पार्टी में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी ली .लेकिन 2018 में जब जनादेश कांग्रेस के पक्ष में आया तो दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में मप्र में अपना ध्वस्त किला फिर खड़ा कर लिया .

केंद्रीय संगठन में काम करते हुए इस दौरान दिग्विजय सिंह पर देश के अनेक राज्यों में कांग्रेस की सत्ता से दूरी बनाये रखने में भाजपा की मदद करने के आरोप लगे लेकिन दिग्विजय सिंह की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा .वे लगातार विवादों में रहकर जीवित रहने वाले कांग्रेस के नेता बने रहे .इस बीच उन्होंने दो काम किये ,एक अपने बेटे को राजनीति में अपना उत्तराधिकारी बनाकर स्थापित करा लिया दूसरा अपना घर दोबारा बसा लिया .इस बीच उन्होंने नर्मदा परिक्रमा कर आपजी बिखरी हुई लोकप्रियता को भी बहाल किया .लेकिन असल काम किया अपनी ही पार्टी की सरकार को गिराने का.
कांग्रेस की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 18 महीने में इतना छका दिया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न सिर्फ पार्टी छोड़ दी बल्कि कमलनाथ सरकार को गिराकर एक बार फिर राज्य में भाजपा की सरकार बनवा दी

.दिग्विजय की इस उपलब्धि को आप जिस रूप में लेना चाहें ,लेने के लिए स्वतंत्र हैं .दिग्विजय सिंह की वजह से कांग्रेस की सरकार गयी और सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस संगठन में भी बिखराव आया लेकिन दिग्विजय सिंह की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा .वे बीते दो साल से पहले की तरह मजे में हैं .

हाल के दिनों में दिग्विजय सिंह ने दो और ऐसे काम किये जो ये साबित करते हैं कि वे कांग्रेस के लिए कम भाजपा के लिए ज्यादा काम करते हैं .प्रदेश में जब-जब कांग्रेस शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ आक्रामक मुद्रा में आयी दिग्विजय सिंह ने उसकी हवा निकाल दी और खुद किसी ने किसी बहाने एक समानांतर भूमिका अख्तियार कर ली .कभी मुख्यमंत्री के खिलाफ खुद धरने पर बैठ गए तो कभी खुद ऐसे बयान दे दिए जिससे असल मुदा पार्श्व में चला गया .
हाल ही में खरगोन दंगों के बाद जब कांग्रेस को आक्रामक होकर काम करना था और सरकार के खिलाफ माहौल बनना था तब दिग्विजय सिंह ने एक विवादास्पद ट्वीट कर सारा ध्यान अपने ऊपर केंद्रित कर लिया .लोग प्रदेश सरकार के बुलडोजरों की गड़गड़ाहट भूल गए .प्रदेश सरकार को इससे बड़ी राहत मिली .दिग्विजय सिंह जानबूझकर जेल में एक ऐसे आदमी से मिलने जा पहुंचे जिससे मिलने की फिलहाल कोई जरूरत नहीं थी .ऐसी अनेक घटनाओं को जोड़कर देखें तो आपको दिग्विजय सिंह की भूमिका समझ में आ जाएगी .

.मध्यप्रदेश की जनता से छल करने वाली दूसरी पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती हैं. उमा भारती को ही प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार के साथ ही कांग्रेस को उखड फेंकने और प्रदेश में भाजपा की सत्ता में वापसी का श्रेय जाता है ,लेकिन वे बामुश्किल 9 माह ही मुख्यमंत्री रह पायीं .उन्हें पार्टी ने एक मामूली से अपराध के मामले में सजा होने के बाद नैतिकता के आधार पर सत्ता से हटाया तो दोबारा वापस नहीं आने दिया .उमा भारती ने पार्टी से बगावत की,अलग पार्टी बनाई ,चुनाव लड़ा और कामयाब न होने पर थक-हारकर वापस पार्टी में लौट आयीं .पार्टी ने उन्हें स्वीकार भी कर लिया .
आज स्थिति ये है कि उमा जी भाजपा की एक अतृप्त आत्मा मानी जाती हैं. वे जब तब अपनी ही पार्टी कोअस्थिर करने के लिए छोटे-मोटे प्रहसन करती रहतीं हैं .वे भाजपा का दिग्विजय सिंह संस्करण मानी जाती हैं. उन्होंने प्रदेश में शराबबंदी का आंदोलन शुरू किया और शराब की एक दूकान में घुसकर पथराव कर आयीं ,लेकिन प्रदेश सरकार ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया .मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हिकमत अमली से काम लिया और उनके आंदोलन की हवा निकाल दी .उमा श्री का दुर्भाग्य ये हैं कि उन्हें केंद्र से कोई समर्थन हासिल नहीं हो पाया है .

.प्रदेश के तीसरे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ हैं ,जो अपने ही तरीके से राजनीति करते हैं. कमलनाथ उन नेताओं में से हैं जो एक्ला चलते हैं .जिन मुद्दों पर दिग्विजय सिंह शिवराज सिंह चौहान की सरकार को घेरते हैं ,कमलनाथ उन्हीं मुद्दों पर भाजपा के साथ खड़े हो जाते हैं .कमलनाथ अपनी पार्टी के किस नेता की कब हवा खराब कर दें वे खुद नहीं जानते .वे दो साल से पार्टी के अध्यक्ष भी है,सदन में विपक्ष के नेता भी .प्रदेश में जब पूरी कांग्रेस औंधे मुंह पड़ी थी तब कमलनाथ ने अपने बेटे नकुलनाथ को चुनाव जिताकर दिखा दिया कि उनके अपने गढ़ में भाजपा भी उनके खिलाफ खड़ी नहीं होती .
प्रदेश के इन तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के मन में सत्ता के प्रति प्रेम रत्ती भर कम नहीं हुआ है. दिग्विजय सिंह एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बना चाहते हैं .

उमा भारती का तो दोबारा मुख्यमंत्री बना एक अधूरा ख्वाब है ही और रहे कमलनाथ तो उन्हें लगता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में वे आने तरीके से कांग्रेस को फिर सत्ता में वापस लाएंगे और फिर एक बार मुख्यमंत्री बनेंगे .राजनीति की ये तीनों अतृप्त आत्माएं जन सरोकारों को पीछे कर खुद आगे खड़ी हैं .जनता को आंदोलित करने के बजाय ये तीनों खुद के लिए आंदोलन में लगे हुए हैं .तीनों में से एक खरगोन में बुलडोजर संहिता के खिलाफ पीड़ितों के आंसू पौंछने नहीं गया .जनता इन तीनों के छल को पहचानती है या नहीं ये जनता जाने .हम तो इतना जानते हैं कि यदि ये तीनों न होते तो आज प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य कुछ और ही होता .

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER