कांग्रेस पार्लियामेंट्री कमेटी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को PM मोदी और उनकी सरकार को लेकर अपनी राय दी है। उन्होंने कहा कि देश को चुप करा देने से देश की परेशानियां हल नहीं हो जाएंगी। PM मोदी जरूरी मुद्दों पर चुप हैं। उनकी सरकार के कामकाज से करोड़ों लोगों की जिंदगी प्रभावित होती है। बड़े मुद्दों पर जो भी जायज सवाल पूछा जाता है, प्रधानमंत्री उस पर चुप्पी साध लेते हैं।
सोनिया ने कहा कि भारत के लोग अब यह जान चुके हैं कि मौजूदा हालात में PM मोदी की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। जब वे विपक्ष के खिलाफ गुस्सा जाहिर नहीं कर रहे होते हैं या आज की परेशानियों के लिए बीते जमाने के नेताओं पर आरोप नहीं लगा रहे होते हैं, तो उनके सभी बयानों से जरूरी मुद्दे या तो गायब होते हैं, या वे बड़ी-बड़ी, लुभावनी बातें करके इन मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं। हालांकि, उनके एक्शन से साफ पता चलता है कि इस सरकार की असली मंशा क्या है।
सोनिया गांधी ने कहा कि देश को चुप करा देने से देश की परेशानियां हल नहीं हो जाएंगी। PM मोदी जरूरी मुद्दों पर चुप हैं, उनकी सरकार के कामकाज से करोड़ों लोगों की जिंदगी प्रभावित होती है, इन्हें लेकर हमारे जो जायज सवाल हैं, उन पर वे चुप हैं। किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने के अपने वादे को पूरा करने में नाकाम होने के बाद पीएम बड़े आराम से चुप हो गए हैं। लेकिन बढ़ते खर्च और फसल की घटती कीमत वाली उनकी समस्या आज बनी हुई है।
वित्त मंत्री ने अपनी बजट की स्पीच में बेरोजगारी और महंगाई का नाम भी नहीं लिया, जैसे कि ये समस्याएं हैं ही नहीं। उनकी ये चुप्पी उन लोगों के किस काम की है, जो रोजाना दूध, सब्जी, तेल और गैस भी नहीं खरीद पाते हैं। ये चुप्पी उस युवा के किस काम की है जो अब तक की सर्वाधिक बेरोजगारी दर से जूझ रहा है। चीन के साथ बॉर्डर के मसले पर हमने देखा है कि कैसे पीएम मोदी चीनी घुसपैठ को नकारते रहे हैं, सरकार इस मामले में संसद में चर्चा को रोकती आई है और विदेश मंत्री ने हार मान लेने वाला रवैया अपना लिया है।
सोनिया ने कहा कि BJP और RSS के लोगों ने देश में जिस नफरत और हिंसा को बढ़ावा दिया था, वह अब बढ़ती जा रही है और PM इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। उन्होंने एक बार भी शांति या सौहार्द्र बनाए रखने की बात नहीं कही है या दोषियों पर लगाम कसने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की है, ऐसे में उन्हें सजा मिलना तो दूर की बात है।
सरकार के सामने मजबूत विपक्ष था, जो अपने सवालों पर टिका हुआ था। इस वजह से नरेंद्र मोदी सरकार ने विपक्ष की आवाज दबाने के लिए ऐसे कदम उठाए, जो पहले कभी नहीं उठाए गए थे। सरकार ने विपक्षी सांसदों की स्पीच हटाई, हमें चर्चा करने से रोका, संसद सदस्यों पर हमला किया और आखिर में बिजली की रफ्तार से एक कांग्रेस सांसद की सदस्यता रद्द कर दी।
सोनिया ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने CBI और ED का जो दुरुपयोग किया है, वह सबको पता है। 95% से ज्यादा राजनीतिक केस सिर्फ विपक्षी पार्टियों के खिलाफ दाखिल किए गए हैं और और वे लोग जो भाजपा जॉइन कर लेते हैं, उनके खिलाफ केस किसी जादू की तरह गायब हो जाते हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का जर्नलिस्ट्स, एक्टिविस्ट्स और थिंक-टैंक्स के खिलाफ किया गया इस्तेमाल चौंकाने वाला है। PM सच्चाई और न्याय के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन PM के चुने गए एक बिजनेसमैन पर जब फ्रॉड का आरोप लगता है तो वह नजरअंदाज कर दिया जाता है। इंटरपोल ने एक भगोड़े मेहुल चौकसी के खिलाफ नोटिस वापस ले लिया और बिलकिस बानो के रेप के दोषियों को रिहा कर दिया गया, जिसके बाद वे भाजपा नेताओं के साथ मंच साझा करते दिखे।
न्यायपालिका की विश्वसनीयता को खत्म करने की योजनाबद्ध कोशिशें अब चरम पर पहुंच गई हैं। केंद्रीय कानून मंत्री रिटायर्ड जजों को एंटी-नेशनल कहते हैं और धमकी देते हैं कि उन्हें कीमत चुकानी पड़ेगी। यह भाषा जानबूझकर लोगों को गुमराह करने और जजों को डराने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
न्होंने कहा कि मीडिया की आजादी तो काफी पहले ही सरकार की राजनीतिक धमकियों की भेंट चढ़ चुकी है। इसमें भाजपा के दोस्तों का आर्थिक दखल बड़ा कारण है। अब न्यूज चैनलों पर शाम की डिबेट सरकार से सवाल करने वालों को चुप कराने के लिए होती है। इतना ही नहीं, सरकार ने इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के नियमों में बदलाव करके खुद को ये कानूनी ताकत भी दे दी है कि फेक न्यूज का लेबल लगाकर किसी भी खबर की कानूनी सुरक्षा को खत्म कर सकते हैं।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में साफ किया था कि सरकार की आलोचना करना कानूनी कार्रवाई का आधार नहीं होना चाहिए। क्या सरकार सुन रही है? इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा और RSS के वकीलों की एक फौज हर उस प्लेटफॉर्म को परेशान करने के लिए तैयार रहते हैं जो उनके महान नेता के बारे में आलोचना करता है।
सोनिया ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में PM मोदी और उनकी सरकार ने भारतीय लोकतंत्र के तीनों स्तंभों- न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को उखाड़कर फेंक दिया है। PM के एक्शन बताते हैं कि उन्हें लोकतंत्र और लोकतांत्रिक जवाबदेही से कितनी नफरत है।
संसद की हालिया कार्यवाही को देख लीजिए। हमने देखा कि कैसे सरकार ने योजना बनाकर संसद को लगातार भंग किया और विपक्ष को उन मुद्दों को उठाने से रोका जो इस देश की जनता के लिए बेहद जरूरी थे। इन मुद्दों में बेरोजगारी, महंगाई, सालाना बजट और अडाणी स्कैम से जुड़े सवालों पर चर्चा शामिल थी।
सोनिया ने कहा कि पीएम की सभी कोशिशों के बावजूद, भारत के लोग चुप नहीं कराए जा सकते हैं और हम चुप होंगे भी नहीं। आने वाले कुछ महीनों में हमारे लोकतंत्र की कड़ी परीक्षा होनी है। हमारा देश इस वक्त दोराहे पर है। क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार हर शक्ति का गलत इस्तेमाल करने पर आमादा है और बड़े राज्यों में चुनावों को प्रभावित कर रही है।