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अभी केवल कर्नाटक के चुनाव सिर पर हैं और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के चुनावों को सात-आठ महीने बाक़ी हैं, लेकिन कर्नाटक से भी ज़्यादा और बड़ी तैयारी इन चार राज्यों में चल रही है। कर्नाटक सहित इन पाँच राज्यों में 864 विधानसभा सीटें हैं। यानी 110 लोकसभा क्षेत्र। बात बड़ी है। हालाँकि देश में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बड़ा अंतर होता है।

विधानसभा चुनाव ज़्यादातर स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं जबकि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर। वैसे इन दिनों चुनावों की तासीर बदल गई है। अब चुनावों में लोगों से, आम आदमी से जुड़े मुद्दे कम और जातिवाद, सम्प्रदायवाद ज़्यादा हावी रहते हैं। चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियाँ तैयारी भी इसी दिशा में करती हुई दिखती हैं।

मप्र में कोई पार्टी टंट्या भील से जुड़े आदिवासी समुदाय को रिझाने में लगी हुई है तो राजस्थान में जाट, ब्राह्मण, मीणा, गुर्जर और राजपूतों को मनाने-रिझाने की होड़ लगी हुई है। छत्तीसगढ़ में भी तैयारी तो ज़ोरों पर है, लेकिन पाँच साल भाजपा ने यहाँ कुछ किया नहीं, ऐसा लगता है। यहाँ कांग्रेस का शासन है और वही आगे भी रहने की संभावना दिखाई देती है। हालाँकि चुनाव में हवा बदलते देर नहीं लगती, इसलिए अभी से पक्के तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

राजस्थान में कांग्रेस सत्ता क़ायम रखने की लड़ाई लड़ रही है जबकि भाजपा गहलोत शासन की कमियाँ-ख़ामियाँ गिना-गिनाकर अपना राज लाने के लिए संघर्ष कर रही है। उधर तेलंगाना में बीआरएस के सामने किसी अन्य पार्टी का टिकना बड़ा मुश्किल लग रहा है। कर्नाटक में भाजपा अपनी सरकार बचाने में जी-जान से जुटी हुई है। लगता है हर पाँच साल में सत्ता बदलने का अड़तीस साल पुराना यहाँ का रिवाज इस बार बदल जाएगा।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER