TIO, रीवा।
गिद्ध मुर्दाखोर पक्षी होते हैं जो सड़े गले मांस को खाते हैं जिसमें असंख्य घातक जीवाणु होते हैं। इस तरह गिद्ध प्रकृति के सफाईकर्मी होते हैं ये जहां मौजूद होते हैं वहां के पारिस्थिति की तंत्र को स्वच्छ व स्वस्थ करते हैं। परंतु बीते कुछ दशकों में गिद्धों की संख्या काफी हद तक कम हुई है। इसके प्रमुख कारणों में से एक डाइक्लोफेनेक दवा का मवेशी के उपचार हेतु उपयोग है। उपचारित बीमार मवेशी के मरने के बाद जब गिद्ध उसके मांस को खाते हैं तो यह दवा गिद्ध के गुर्दों को खराब कर देती है जिससे कुछ ही दिनों में गिद्ध की मृत्यु हो जाती है।
भारत सरकार ने वर्ष 2008 में डाइक्लोफेनेक का जानवरों मवेशी के उपचार हेतु उपयोग प्रतिबंधित एवं किया था। इसी वर्ष एवं जैसी हानिकारक दवाओं का भी जानवरों मवेशी के उपचार हेतु उपयोग प्रतिबंधित किया गया है। इनके अलावा प्रतिबंधित तो नहीं है पर गिद्धों के लिए हानिकारक है। परंतु अज्ञानतावश कई लोग अभी भी इन दवाओं का उपयोग कर रहे हैं। इन हानिकारक दवाओं के बारे में संबंधितों को जागरूक करने के लिए रीवा वन विभाग ने जटायु संरक्षण अभियान की शुरूवात की है। इसके अंतर्गत वनकर्मी दवा की दुकानों गौशाला पशु चिकित्सालय एवं गावों में जाकर दवा विक्रेताओं गौशाला प्रबंधकों, पशु चिकित्सकों एवं ग्रामीण गौ स्वामियों, गौसेवकों को जागरूक कर रहे हैं। और हानिकारक दवाओं के स्थान पर इनके स्थान पर अथवा जैसी सुरक्षित दवाओं के उपयोग की सलाह दें रहे हैं।
वन विभाग करेगा कड़ी कर्रवाई
अगर लगातार समझाइश के बाद भी प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री अथवा उपयोग किया जाता है तो वन विभाग द्वारा वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है। इसके अतिरिक्त वनकर्मियों द्वारा सतत रूप से दूरबीन द्वारा गिद्दों और उनके घोसलों की निगरानी की जा रही है। अभी तक इस ओर सिरमौर वन परिक्षेत्र में सबसे अधिक सजगता से कार्य किया गया है। इनमें शुभम दुबे वन परिक्षेत्र अधिकारी, प्रमोद द्विवेदी कार्यवाहक उपवन क्षेत्रपाल, रामयश रावत कार्यवाहक वनपाल, राजेंद्र साकेत कार्यवाहक वनपाल, रामसुजान मिश्र वनपाल, दीप कुमार सिंह वनरक्षक, सुखलाल साकेत वनरक्षक, अनुराग मिश्रा वनरक्षक, विनीत सिंह वनरक्षक, पुष्पराज सिंह वनरक्षक, दीपक गुप्ता वनरक्षक शामिल हैं।